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सरकारी स्कूलों का माहौल कैसा होता है?

अपने शिक्षक के साथ खुशी साझा करते बच्चे

बच्चे सच में कमाल करते हैं
भूल वे बेहिसाब करते हैं


मगर इतने सच्चे कि जल्दी ही
अपनी गलती सुधार करते  हैं


उनकी हरकतों से उपजती है हंसी
  टीचर जी को आता है बेहिसाब गुस्सा


लेकिन वे भी धीरज से काम लेते हैं
आखिर वे उनके ही तो बच्चे हैं

विद्यालय एक परिवार की तरह होता है. यहाँ के माहौल में काफी अपनापन व्याप्त होता है. यहाँ घटने वाली घटनाएं अपने में कई कहानियाँ समेटे होती हैं ऐसी ही एक कहानी सुनाता हूँ आपको.

एक दिन दोपहर में स्कूल की छुट्टी होने पर एक अद्भुत घटना घटी. उस  दिन शनिवार  था. स्कूल में तीन दिनों के लिए छुट्टी होने वाली थी. स्कूल अब बुद्धवार को खुलेगा यह ख़बर बच्चों को छुट्टी के समय सामूहिक रूप से बताई गयी.  बच्चे ख़ुशी से उछलते हुए अपने घरों की तरफ जा रहे थे. आठवीं  के कुछ बच्चों को टीचर  ने सभी कक्षाओं का दरवाजा बंद करने के लिए के लिए रोक लिया. जब सारी क्लास के दरवाजे बंद हो गए तो सबने देखा कि ऑफिस के बगल वाली आठवीं कक्षा के दरवाजे खुले हैं. उसकी चाभी गुम हो गयी थी.  टीचर  कह रहे थे कि कोई बच्चा  शरारत करके उनको उठा ले गया है. बात यहीं से शुरू हुई कि दरवाजे को बंद कैसे किया जाए..

सारे टीचर परेशान थे कि ताले कि चाभी गुम हो गयी अब क्या करें ? किसी की जीप के जाने का समय हो रहा था. किसी की बस छूट रही थी. मजे की बात यह की कक्षा के दुसरे दरवाजे में कोई कुण्डी ही नहीं थी.पहले गाते में पहले ही एक ताला फंसा पड़ा था. उसमे दूसरा लगाने की कोई तरकीब काम नहीं कर रही थी. पहले मैडम लोग जीप के लिए निकल गयीं , वे लेट हो रही थीं . करीब आधे घंटे तक माथा-पच्ची करने के बाद बाकी शिक्षकों ने मुझसे कहा कि आपको तो यहीं रहना है.(उस समय में एक महीने के लिए उसी गाँव में रहकर लोगों को बच्चों के नामांकन के लिए जागरूक कर रहा था. इसके साथ ही बच्चों को पढ़ा भी रहा था. जो मेरी ट्रेनिंग का हिस्सा था. ) आप किसी तरीके से दरवाजा बंद करवा दीजिये.

इसके बाद हम सारे लोग स्कूल की पगडंडी से गाँव की तरफ जाने लगे., ताकि गाँव में किसी के घर से दरवाजे को बंद करने के लिए कोई सांकल ले आयें और इस समस्या का कोई हल ढूंढ सकें. इतने में हमारे साथी अध्यापक ने मुझसे कहा कि ” वृजेश जी दरवाजा जल्दी बंद करवा देना वर्ना बच्चे अन्दर घुस जायेंगे. ” यह बात सुनकर मुझे जोर की हँसी आ रही थी. मैंने अपने साथ चल रहे बच्चों का सहारा लेकर अपना ध्यान दुसरे ओर भटकाने का प्रयास किया. क्यूंकि बाकी अध्यापकों की गंभीर मुख मुद्रा देखकर मुझसे हँसा भी नहीं जा रहा था. मै सोच रह था कि स्कूल भी अजीब मुसीबत का घर है. कल बच्चों छोटे बच्चों ने तीसरी कक्षा के दरवाजे में लगे ताले में सींक वाली झाड़ू कि सींक घुसा दी थी. जिसे निकालने का हम सब जातां कर रहे थे और आज चाभी ही गुम हो गयी. ऊपर से क्लास चलते समय टीचर को पढ़ाने कि चिंता थी. बच्चे बाहर भाग रहे थे तो उनको बुला-बुला कर अन्दर बिठा रहे थे. “अब स्कूल बंद हो गया तो इस बात की चिंता है कि बच्चे अन्दर न घुस जाएं.” कभी कोई बच्चा दीवारों पर दिल बना रहा है. तो कभी कोई और समस्या सामने खडी है.

मुझे तो बस इतना समझ में आया कि स्कूल का मतलब टीचरों के लिए सिर्फ पढ़ना-पढ़ाना नहीं है. उन्हें बच्चों के आपसी सहयोग से बनी पहेलियों को भी सुलझाना पड़ता है. यहाँ और भी काम हैं पढाई के सिवा…

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