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कहानीः गिनतियों के गांव में

स्कूल में बच्चों से बात करते हुए कहानी के माध्यम से अपनी बात रखी। उनसे मैनें कहा कि हर कहानी का शीर्षक होता है तो हम भी अपना कहानी को एक नाम देंगे “गिनतियो के गांव में”
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इस क्लास में उनको अंग्रेजी पढ़ाने वाली शिक्षिका भी मौजूद थीं। यह कहानी अमूर्त माने जाने वाले विषय गणित को भाषा से जोड़ने की एक कोशिश भर थी। 
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गिनतियों का एक गांव था। उसका नाम था चुण्डावाड़ा। गांव में घुसते समय सबसे पहले इकाई का घर पड़ता था। इकाई के घर में नौ संख्याएं रह सकती थीं। जब इकाई के घर में कोई दसवीं संख्या आती थी, तो सारी संख्याएं नई आने वाली संख्या को अपने साथ लेकर दहाई के घर चली जाती थीँ। ताकि दसवी संख्या (आने वाली संख्या) को अकेले न रहना पड़े।
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गिनतियों के गांव के भी हमारे गांव की तरह कुछ नियम थे।  सबसे पहले इकाई, फिर दहाई फिर सैकड़ा का घर पड़ता था। इकाई के घर में नौ संख्याएं रह सकती थीं। दहाई  के घर में नौ कमरे थे। हर कमरे में दस संख्याएं रह सकते थीं। सैकड़े के घर में भी नौ कमरे थे । लेकिन सैकड़े के हर घर में सौ संख्याएं रह सकती थीं। इस तरह गांव की कुल अधिकतम आबादी नौ सौ निन्यानवे हो सकती थी। सभी गिनतियां अपने  गांव की खुशहाली को बनाए रखने के लिए हर हाल में नियमों का पालन करती थीं।  इस तरह सारे लोग आपस में मिलजुलकर प्यार से रहते थे।
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इसके अलावा उनका कुछ और नियम थे जैसे- तकलीफ या जरूरत के वक्त सबसे पहले नजदीक वोले पड़ोसी से सहायता मांगी जाएगी। जैसे अगर इकाई को जरूरत पड़ती है तो वह दहाई से मदद मांगेगी । अगर दहाई को जरूरत पड़ती है तो वह सैकड़े से मदद मांगेगी। अगर किसी झगड़े की नौबत आती है तो सारे गांव के लोग एक साथ बैठकर मामले को सुलझाने के लिए कोई रास्ता निकालेंगे। इससे गांव की सारी व्यवस्था सुचारु रूप से चल रही थी। वे सब खुशहाल थे।
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एक बार गांव में बहुत बड़ा मेला लगा। लोग आते रहे। एक के बाद एक इकाई, दहाई, सैकड़ा सबके घर भर गएएक संख्या बाहर घूम रही थी। सारे गांव में घूमती रही लेकिन उसे कहीं भी रहने की जगह नहीं मिली। इकाई ने कहा कि उसका घर तो भर गया है। दहाई नें भी मदद करने में खुद को असमर्थ बताकर हाथ खड़े कर दिए और सैकड़े से गुहार लगाई। लेकिन सैकड़े ने कहा कि वह भी बाकी लोगों की तरह चिंता में है कि क्या किया जाए?
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इस समस्या का समाधान निकालने के लिए सबने एक सभा बुलाई। सभा में खूब जोरदार बहस हई। सबने कहा कि किसी को भी नियम के खिलाफ जाकर अपने घर में रखना ठीक नहीं है। नियमों से समझौत करने से किसी एक को तो सहूलियत मिलेगी लेकिन बाकी सारे लोगों का सुकून से रहना कठिन हो जाएगा। इसलिए हमें इस  दुविधा से बाहर आने के लिए कोई रास्ता निकालना पड़ेगा। और हम अपने किसी साथी को इस तरह अकेला नहीं  छोड़ सकते।
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इस मुद्दे पर बहस और लम्बी बातचीत के बाद सबनें निर्णय लिया कि हम एक और बड़ा घर बनाएंगे ताकि हमारे नियम पालन की परंपरा भी बने रहे और संख्याओं  की उलझन भी खत्म हो । सबने मिलकर नए घर को  नाम दिया “हजार ” यानी ऐसा घर जिसमें हजारों लोगों के रहने की व्यवस्था हो। इस तरह उनकी मुश्किल का समाधान निकला। सारी गिनतियां बहुत खुश हुईं। लेकिन उनको दुःख था कि उस अकेली गिनती को बाहर से ही मेला देखकर लौटना पड़ा। वे उसको अपने घर में नहीं रख पाईं।

4 Comments on कहानीः गिनतियों के गांव में

  1. पल्लवी जी, आपका बहुत-बहुत शुक्रिया अपनी बात साझा करने के लिए। यह जानकर अच्छा लगा कि आपको इस आलेख से बच्चों के साथ काम करने में मदद मिली। एजुकेशन मिरर पर आपके सुझावों व विचारों का स्वागत है।

  2. This article help me alot …….This is the easiest and effective way to introduce this topic to kids…..

  3. विश्वजीत भाई नियम बनाने का काम तो मैथमेटीशियन लोगों का है। नियम ऐसे बनते है ताकि गिनतियों के गांव में व्यवस्था बरकरार रहे।

  4. Virjesh bhai,,,Is ko padhke to har kisiko Gintiyon ke gaav me ek baar aapke saath jane ki iccha honewali hein,,,Par mera ek sawal hein.is Gintiyon ke gaav me Niyam kaun aur kaise banata hein!!!!

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