Trending

शिक्षा के बारे में कुछ विचार

सिर्फ क्लास और स्कूल तक “भयमुक्त वातावरण” की बात सीमित नहीं होनी चाहिए। बच्चा जिस परिवेश से आता है (यानी समाज) वहां का वातावरण भी भयमुक्त होना चाहिए। पॉवर के दम पर लोगों को क्रश करने (दबाने) की होड़ का खामियाजा पूरे समाज को भुगतना पड़ता है।


स्कूल और कॉलेज जाने वाले छात्रों पर सिलेबस (पाठ्यक्रम) के बोझ से अध्यापक और प्रोफेसर बहुत अच्छी तरह वाकिफ हैं। लेकिन उसमें बदलाव की बात करने के लिए कोई आगे नहीं आता। उनको अपनी तकलीफ तो समझ में आती है। लेकिन वे छात्रों की तकलीफ को उनकी नजर से शायद देख नहीं पाते। यह वक्त से उपजी संवेदनहीनता भी हो सकती है कि कुछ हो नहीं सकता क्या करें ?


कुछ लोगों को बोलते समय ख्याल भी नहीं होता कि क्या बोल रहे हैं ? प्राथमिक शिक्षा के एक वरिष्ठ अधिकारी ने आज प्रधानाध्यापकों की एक सभा में कहा कि आरटीई आ गया तो क्या हुआ ? बच्चों को मारो-पीटो कोई बात नहीं। लेकिन उनको अनुशासन में रखकर पढ़ाना बहुत जरूरी है। कुछ नीतियों को चूल्हे के हवाले कर देना चाहिए….उनका यही सोचना होगा। ऐसा वक्तव्य देते हुए।किसी नें कुछ कहा भी नहीं…..भाई जो बच्चे सुबह से आपके स्वागत में लगे हैं। चाय-पानी पिला रहे हैं, उनको पीटकर आप क्या साबित करना चाहते हैं? आपके अक्ल पर पत्थर पड़ गया है क्या?


बच्चों को जागरूक करने की जरूरत है। आखिर उन मासूम बच्चों को तो पता चले कि उनके टीचर उनके बारे में क्या सोचते हैं। बच्चों और जानवरों में कोई अंतर है या नहीं, यह फर्क बच्चे बहुत अच्छे से समझ सकते हैं। जिनके दिमाग कुंद हैं। जिनके शब्द भोथरे हैं..उनकी बात और है। 

बच्चों को 8वीं तक प्रमोट करने और अंततः पास करने को आदिवासी अंचल के नेता एक षडयंत्र के रूप में देखते हैं। उनका कहना है कि सरकार उनके बच्चों को पढ़ा लिखा मजदूर बनाना चाहती है। यह बात प्रधानाध्यापकों की सभा में एक पूर्व विधायक नें कही।

उपरोक्त बातें हमें सोचने के लिए मजबूर करती हैं कि हमें अपनी शिक्षा व्यवस्था और पड़ोस के स्कूल के बारे में सोचने की जरूरत है कि वहां क्या चल रहा है ?

6 Comments on शिक्षा के बारे में कुछ विचार

  1. हम तीसरी नीति की बात कर रहे हैं कि जिस बात का वादा हम लोगों से कर रहे हैं, वे पूरे होने चाहिए। ताकि नीतियों के पिटारे के जादू में लोग गुम न हो जाए और हाथ खड़े कर दें कि क्या करें शिक्षा में तो इतने ज्यादा प्रयोग हो रहे हैं। यह बात शिक्षक समुदाय के लोग अक्सर शिकायती लहजे में कहते हैं।

  2. हम तीसरी नीति की बात कर रहे हैं कि जिस बात का वादा हम लोगों से कर रहे हैं, वे पूरे होने चाहिए। ताकि नीतियों के पिटारे के जादू में लोग गुम न हो जाए और हाथ खड़े कर दें कि क्या करें शिक्षा में तो इतने ज्यादा प्रयोग हो रहे हैं। यह बात शिक्षक समुदाय के लोग अक्सर शिकायती लहजे में कहते हैं।

  3. बहुत-बहुत शुक्रिया अमृता जी।

  4. बहुत-बहुत शुक्रिया अमृता जी।

  5. दोहरी नीति ही समाज को पतन की और ले जा रहा है .जिसका प्रमाण आपने दिया ही .

  6. दोहरी नीति ही समाज को पतन की और ले जा रहा है .जिसका प्रमाण आपने दिया ही .

इस लेख के बारे में अपनी टिप्पणी लिखें

%d bloggers like this: