डाइट प्रिंसिपल आभा मेहता से एक मुलाकात

हमारी बातचीत स्कूल के प्रधानाध्यापकों के व्यवहार, व्यवस्था के महत्वपूर्ण बिंदुओं से होते हुए , प्रशासनिक व शैक्षणिक मॉनिंटरिंग की स्थिति , जिम्मेदारियों के प्रति नजरिए से लेकर, भाषा व बोली के सवालों से होते हुए बहुत आगे तक गुजरी। मुलाकात के मुख्य बिंदुओं की तरफ वापस आते हैं।
1.कार्य़क्रम का प्रारंभ करने से पहले हमने बीइओ और आरपी की ट्रेनिंग एसआईइआरटी में रखी थी ताकि उस स्तर से लोगों का सहयोग प्राप्त किया जा सके। लेकिन उस स्तर से बहुत कम रुचि देखने को मिली। जिसे भविष्य में बढ़ाने की संभावनाओं पर सोचने की जरूरत है। ताकि एक बेहतर सपोर्ट सिस्टम विकसित हो सके। हेडमास्टर को आरपी से , आरपी को एबीइओ से, एबीओं को डीईओ से सपोर्ट मिल सके। इस पूरी व्यव्स्था से डाइट को सपोर्ट मिले और अगर डाइट कोई काम कर रही है तो उसको एसआईइआरटी से पूरा सहयोग मिले। जहां पर एसआईइआऱटी को लगता है कि वह मदद करने में सक्षम नहीं है तो एनसीईआरटी से सहयोग लेकर हमारी मदद के ताकि हम हम अपने काम को सक्रियता से कर पाएं। काम में आने् वाली किसी तरह की मुश्किल का शीघ्रता से समाधान खोजा जा सके।
2. उन्होनें बताया कि प्रारंभ में प्रधानाध्यापकों को एडेप्स के लिए प्रेरित करना एक बड़ी चुनौती थी। इसलिए हमनें सबके साथ गुजरात के स्कूलों की विजिट करने के साथ-साथ वहां के प्रधानाध्यापकों से इनके संवाद का कार्यक्रम रखा। इनके सवाल थे कि क्या आपको भी डाक बनानी पड़ती है, जनगणना का काम करना पड़ता है तो उनके जवाब थे कि हां करना पड़ता है। आप कैसे अपने स्कूलों को इतना व्यवस्थित रख पाते हैं। तो जवाब मिला कि यहां का सपोर्ट सिस्टम बहुत अच्छा है। किसी परेशानी का निदान करने के लिए एख प्रभावशाली व्यवस्था काम कर रही है। जिसके कारण हम अपने काम को बेहतर ढंग से कर पा रहे हैं। वहां की विजिट के बाद हमनें यहां लागू हो सकने वाली गतिविधियों का चयन किया और ऊपर से अनुमोदन लिया। अब इससे जुड़े प्रधानाध्यापकों में सकारात्मक बदलाव आ रहा है। बच्चों की भी स्कूल में दिलचस्पी बढ़ रही है। वै भी बढ़चढ़कर स्कूल में होने वाली गतिविधियों में अपनी भागीदारी दर्ज करा रहे हैं।
4. इसके साथ-साथ मैनें क्यों ? वाले पहलू पर बात करने की जरूरत पर जोर दिया। अगर हम कोई कार्यक्रम या गतिविधि लागू कर रहे हैं तो अध्यापकों के अलावा बच्चों से भी बात हो। उनको बताया जाय कि हम इस गतिविधि को क्यों कर रहे हैं हमें इससे क्या फायदा होने वाला है। अगर हम उनको समझाने की कोशिश करेंगे तो उनके सवालों की दिशा बदल जाएगी। जो काम को आसान और प्रभावशाली बनाने के इर्द-गिर्द घूमेगी।
5. अध्यापकों में भी पढ़ने की प्रवृत्ति विकसित करने की कोशिश की जाए। ताकि उनको वर्तमान में हो रहे नवीन प्रयोगों से रूबरू करवाया जा सके। पढ़ने से उनको अपना काम ज्यादा बेहतर ढंग से करने के लिए विचार भी मिलेंगे। वे यथास्थिति से बाहर आकर चीजों के बारे में सोचना शुरू करेंगे। जो बदलाव की प्रक्रिया में उनको संबल प्रदान करेगा।
6. हमने पासबुक के प्रभाव पर भी बात करी कि कैसे यह बच्चों के सोचने की क्षमता को प्रभावित कर रही है। इसके बारे में गंभीरता से सोचने की जरूरत है ताकि कोई विकल्प खोजा जा सके। इस तरह तमाम मुद्दों को छूने और उसके बारे में अपनी समझ को साफ करने का मौका मिला। इसका एक सुझाव आया कि बच्चे और अध्यापक मिलकर सवालों के जो जवाब तैयार करें उसे आगे के सत्र के लिए सहायक सामग्री की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है।
आभा जी ने अपने कार्य़काल के दौरान कई प्रयोग किए “कर्म” विच्छीवाड़ा में उन्होनें सक्रियता से काम किया। जो कमजोर बच्चों को जीरो पीरियड बनाकर सपार्ट देने के कांसेप्ट पर काम करता है। इसमें बच्चों को उनकी बोली “बागड़ी” में पढ़ाना भी शामिल है। ताकि उनके स्थानीय ज्ञान व जानकारी को सीखने की प्रक्रिया में सहायक बनाया जा सके। इसके बाद उन्होनें “एडेप्स” ( एडवांसमेंट इन एजूकेशन परफोरमेंस थ्रू टीचर्स सपोर्ट ) की क्रियान्विति का रोडमैप और गाइड लाइन बनाने की आपने जिम्मेदारी ली है। बच्चों के लिए बालगीत की सीडी बनवाने का सुंदर काम आपने किया।
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