Trending

भाषा शिक्षणः भाषा और बोली के मनोविज्ञान की पड़ताल

संचार और भाषा पर
करते हुए विचार
मुझे सहसा याद आया कि
मैंने बहुत कुछ सीखा है
क्लॉस में अपने प्रिय अध्यापक को
गौर से बोलते हुए सुनने के दौरान
असहमति वाले विषय पर दोस्तों से
अनायास झगड़ते और बहस करते हुए….

सीखने का सफर नन्हें-नन्हें कदमों से
होते हुए आज यहां तक आया है
बहुत पीछे मुड़के देखता हूं तो
चंदामामा,नंदन,बालहंस,लोटपोट
पुआल और छत पर किताबों के बीच
चोरी-छिपे रखकर पढ़ी गई
कामिक्सों की धुंधली यादें
मन के आसमान पर तैरती है….

अंगारा का प्रकृति के साथ जुड़ाव
राम-रहीम की राष्ट्रभक्ति
बांकेलाल की चालबाजियां,
सुपर कमांडो ध्रुव की परिस्थितियों को
समझकर तुरत-फुरत जवाब देने की अदा
आज भी हैरान कर जाती है….

बालमन की तमाम जिज्ञासाओं को
उड़ने के लिए आसमान बख़्शा था
इन तमाम किताबों नें जिनका पढ़ना
घर के लोगों की नजरों में भटकाने वाला था
समय और संसाधन की बरबादी थी
भाषा सिखाने में इन किताबों की
भूमिका बड़ी महत्वपूर्ण रही है….

घर की बोली में मनोरंजन और
गहरे ज्ञान की तरफ जाने का अभाव
खींच रहा था एक आदर्श की तरफ
जो मानकीकृत और सामाजिक स्तर पर
सहजता से स्वीकृत हो ……….

इस सफर में स्कूल की भाषा के प्रति
दृष्टि नें मेरी सोच को बड़ी गहराई से
प्रभावित किया और वहां बोली जाने वाली
मानकीकृत हिन्दी भाषा मेरी मातृजुबां अवधी का
विकल्प बन बैठी जिसमें मैं अपने मन की बातों को
बोल तो सकता था लेकिन लिख नहीं सकता था…..

इसके साथ ही अपनी बोली के प्रति
एक हीनता बोध का भाव स्कूल नें
 जाने -अन्जानें मेरे भीतर गहरे  पैठा दिया
 जिसका पता मुझे बहुत बाद में चलता है
मैं धीरे-धीरे हिन्दी में सहज होने लगा
अपनी बोली से सप्रयास कटने लगा….

विश्वविद्यालय की पढ़ाई के दौरान
अपनी बोली से कटने और हिन्दी में
दीक्षित – प्रशिक्षित होने की रफ्तार
सहसा और तेज हो गई
वहां आने वाले अधिकांश लोग
इसी भाषा में बोलते और सोचते थे….

यहां आकर अपना सामना
अंग्रेजी के हौव्वे से हुआ
लगा विना इसकी जानकारी के
तो हम कुछ भी नहीं
कई विषयों की बेहतरीन
 किताबें अंग्रेजी में हैं….

सालों तक हिन्दी के अभ्यास के कारण
अंग्रेजी से उतनी गहराई में जुड़ न पाया था
साहित्य से लगाव था, कविताएं पढ़ता था
बड़े-बड़े पैसेज याद हो जाते थे…

सबसे ज्यादा हैरान करने वाला पहलू था कि
अंग्रजी को घर वालों का भी समर्थन प्राप्त था
वे मुझसे अक्सर कहा करते थे कि
बीए करना है तो अंग्रजी तो लेनी ही है…

लेकिन बीएचयू में कला व सामाजिक के
स्पष्ट विभाजन नें अंग्रजी को बतौर भाषा
देखने की दृष्टि दी जिसके कारण
बाकी विषयों को पढ़ने का मौका मिला
जिसमें हमेशा से आकर्षित करने वाला
मनोविज्ञान भी शामिल  हुआ….

लेकिन अब तक
अपनी बोली हिन्दी भाषा के
आगे आत्म-समर्पण कर चुकी थी
हिन्दी भाषा अपने आत्मसम्मान के लिए
तथाकथित विदेशी भाषा अंग्रजी से जूझ रही थी….

आदर्शवादी मन का सामना
तमाम सवालों से हो रहा था
जिनमें से कुछ सवाल तीखे और
 जटिल बन सामने आ रहे
तो कुछ धुंध में खो गए थे…………

मैं भाषा के अंर्तसंबंध को पत्रकारिता का पढ़ाई के दौरान बेहतर ढंग से समझ पाया। पत्रकारिता के एक विषय    “कला और संस्कृति” के अध्ययन से लोक कला और लोक संस्कृति के बारे में थोड़ी-बहुत समझ बनी। इससे लोक परंपराओं को एक नई दृष्टि से देखने समझने की कोशिश कर पाया । लोक की शुद्धता और संस्कृति की सर्वोच्चता नें मन को सोचने का एक नया क्षितिज दिया। पूरे सफर के दौरान भाषाई दृष्टि से मुझे सबसे ज्यादा अचंभा मेरे कविता लेखन नें किया। जिनकी भाषा का स्तर देककर मुझे हैरानी होती थी। मैं न जाने कैसे …अपने मन के  भावों को तमाम अन्जान शब्दों के माध्यम से व्यक्त कर पाता था। जिन शब्दों की मुझे साफ समझ न थी वे भी मेरी बात को कहनें में मेरी मदद करते थे। साथ के जो दोस्त दसवीं क्लॉस में लोकगीत लिखा करते थे। मैं उन्हें देखकर हैरान होता था। आज यह बात समझ में आती है कि वे मुझसे ज्यादा लोक संस्कृति और अपनी बोली के करीब थे।

4 Comments on भाषा शिक्षणः भाषा और बोली के मनोविज्ञान की पड़ताल

  1. आपकी काबिल-ए-गौर प्रतिक्रिया के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया और आभार।

  2. आपकी काबिल-ए-गौर प्रतिक्रिया के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया और आभार।

  3. हमारी भाषा ही हमारी जान है.. दूसरी भाषा काम चलाने भर ही ठीक है .बाकी समय की बर्बादी है..

  4. हमारी भाषा ही हमारी जान है.. दूसरी भाषा काम चलाने भर ही ठीक है .बाकी समय की बर्बादी है..

इस लेख के बारे में अपनी टिप्पणी लिखें

Discover more from एजुकेशन मिरर

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading