उसे पढ़ाई नहीं, नौकरी करनी है…
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उदयपुर में मजदूरी के लिए खड़े स्कूली बच्चे |
एक बच्चे की मां उसको स्कूल में पढ़ने के लिए लेकर आयी थीं। उसे मैं लेकर कक्षा में गया, सारे बच्चों से पूछा कि पहचानते हो इसे तो सारे एक श्वर में बोले…हां पहचानते हैं। उनकी खुशी और उत्साह देखने लायक था। वह कक्षा में बैठ गया। उसकी कक्षा में एक कहानी सुनाई गई।उसको कहानी की तरह किसी से हुई काल्पनिक बातचीत को लिखने का काम मिला था। लेकिन लिखने में उसका मन नहीं लग रहा था। खाने की छुट्टी में वह बाहर आ गया और वापस घर चला गया था।
उसके घर वाले उसे अपने साथ लेकर वापस आए थे। वे कह रहे थे कि कक्षा आठवीं मे पढ़ रहे हो, कुछ महीनों की बात है। इसे पास कर लो। उसके बाद सोचना कि यहां पढ़ाई करनी है कि नहीं। लेकिन वह नहीं मान रहा था। उसका कहना है कि वह पढ़ाई नहीं, नौकरी (काम) करना चाहता है। पढ़ाई करने के बजाय वह पैसे कमाना चाहता है।
उस स्कूल के प्रधानाध्यापक उसे पिछले दो दिन से समझा रहे हैं लेकिन वह मानने को तैयार नहीं है। उनका का कहना है कि वह आसपास के लड़कों के प्रभाव में आ गया है। जो अहमदाबाद और मुंबई में काम करते हैं।उसको लगता है कि उनकी जिंदगी बहुत बेहतर है। उनकी बाहरी चमक-दमक और रौनक तो दिखाई पड़ती है, लेकिन भीतरी तकलीफ तो वे बताते नहीं कि कितनी दिक्कत होती है ? प्रधानाध्यापक नें कहा कि भटकने की यह कौन सी उम्र है ? उसके बाद उसके भाई से बात हो रही थी। जो बाहर काम करता है। उसनें भी उसे समझाने की कोशिश करी, लेकिन सारी बातों का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। उसने बोला किसी से शादी करनी है क्या ? गांव में घूमना है क्या ? क्या करना है बताओ ? लेकिन उसके दिमाग में एक ही बात घुसी है कि ” काम करना है। पैसे कमाने हैं। पढ़ाई नहीं करनी है। ”
प्रधानाध्यापक नें बताया कि उसी कक्षा में एक और लड़का है सागर नाम का। वह दो साल पहले मेडिकल में काम करता था। वह वहां पर रहता तो दवाई इत्यादि का नाम तो सीख ही लेता। लेकिन उसका मालिक उससे चौबिसो घंटे काम करवाता था। जिससे परेशान होकर उसने काम छोड़ दिया। उसके माता-पिता ने कई बार कहा कि मेरे लड़के का एडमीशन ले लो तो फिर मैनें एडमीशन लिया। लड़का भी रो रहा था कि काम नहीं करना है। मुझे तो पढ़ाई करनी है। अब वह आठवीं में है। नियमित स्कूल आ रहा है। तो मैनें कहा कि उससे बात करवा दीजिए, हो सकता है कुछ असर पड़े। उन्होनें बताया कि उससे बात हुई। लेकिन फिर भी उसके मन पर कोई असर नहीं हुआ।
उस स्कूल के प्रधानाध्यापक उसे पिछले दो दिन से समझा रहे हैं लेकिन वह मानने को तैयार नहीं है। उनका का कहना है कि वह आसपास के लड़कों के प्रभाव में आ गया है। जो अहमदाबाद और मुंबई में काम करते हैं।उसको लगता है कि उनकी जिंदगी बहुत बेहतर है। उनकी बाहरी चमक-दमक और रौनक तो दिखाई पड़ती है, लेकिन भीतरी तकलीफ तो वे बताते नहीं कि कितनी दिक्कत होती है ? प्रधानाध्यापक नें कहा कि भटकने की यह कौन सी उम्र है ? उसके बाद उसके भाई से बात हो रही थी। जो बाहर काम करता है। उसनें भी उसे समझाने की कोशिश करी, लेकिन सारी बातों का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। उसने बोला किसी से शादी करनी है क्या ? गांव में घूमना है क्या ? क्या करना है बताओ ? लेकिन उसके दिमाग में एक ही बात घुसी है कि ” काम करना है। पैसे कमाने हैं। पढ़ाई नहीं करनी है। ”
प्रधानाध्यापक नें बताया कि उसी कक्षा में एक और लड़का है सागर नाम का। वह दो साल पहले मेडिकल में काम करता था। वह वहां पर रहता तो दवाई इत्यादि का नाम तो सीख ही लेता। लेकिन उसका मालिक उससे चौबिसो घंटे काम करवाता था। जिससे परेशान होकर उसने काम छोड़ दिया। उसके माता-पिता ने कई बार कहा कि मेरे लड़के का एडमीशन ले लो तो फिर मैनें एडमीशन लिया। लड़का भी रो रहा था कि काम नहीं करना है। मुझे तो पढ़ाई करनी है। अब वह आठवीं में है। नियमित स्कूल आ रहा है। तो मैनें कहा कि उससे बात करवा दीजिए, हो सकता है कुछ असर पड़े। उन्होनें बताया कि उससे बात हुई। लेकिन फिर भी उसके मन पर कोई असर नहीं हुआ।
आखिर में प्रधानाध्यापक जी नें बोला कि समय ले लो। सोच लो। उसके बाद फैसला करो कि पढ़ाई करनी है या काम करना है। हम अभी कह रहे हैं, अगर मान लेते हो तो पढ़ाई आगे की जिंदगी में काम आने वाली है। लाइसेंस बनवाने के लिए और अनेक तरह के कामों के लिए आठवीं के प्रमाण पत्र व अंकपत्र की जरूरत होती है। अतः कुछ महीनों की बात है, आठवीं तक की पढ़ाई तो पूरी कर लो।
Keep this going please, great job!Feel free to visit my weblog … website
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