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पासबुक से किताबें बेहतर – प्रीति

आजकल स्कूलों में परीक्षाएं चल रही है। बच्चे पढ़े हुए पाठ के दोहरान में लगे हैं। इसमें उनकी मार्गदर्शक है पासबुक। कक्षा में पढ़ने के दौरान किताबों का उपयोग होता है। उसके बाद की सारी जिम्मेदारी पासबुक के हवाले हो जाती है।
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बच्चे मानते हैं कि परीक्षाओं में जो सवाल आते हैं, उनका जवाब पासबुक में लिखा होता है। इसलिए पासबुक पढ़नी पड़ेगी। बहुत से शिक्षक भी स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने के लिए पासबुक का ही इस्तेमाल करते हैं। इसके कारण बच्चों के बीच पासबुक (गाइड्स) का क्रेज इतना बढ़ गया है कि स्कूल में ज्यादातर बच्चों के पास किताबें भले न हों, पासबुक जरूर मिल जाएगी।
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आज एक छात्रा से बात हो रही थी। वह बहुत दुःखी थी। उसने बताया, “परीक्षा के लि मैं जो सवाल याद करके  गयी थी, वे तो परीक्षा में आए ही नहीं।
 पासबुक के बारे में उसकी स्पष्ट राय है, “पासबुक में सवालों के लंबे-लंबे जवाब दिए होते हैं। उससे तो बेहतर किताब है। जिसमें खोजने पर सवालों के छोटे उत्तर आसानी से मिल जाते हैं। किताब और पासबुक का बेहतरीन विश्लेषण सुनकर मैं दंग रह गया।”
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 इस छात्रा का नाम प्रीति है। वह सातवीं कक्षा में पढ़ती है।  उसका परिवार कोलकाता से राजस्थान में आकर रह रहा है। उसके घर पर चोरी हो गई है। बच्ची बता रही थी कि घर का सारा सामान चोरी हो गया। केवल सिल बट्टा बचा है। चोर सारा सामान घर से उठा ले गए। उसकी मम्मी नें बताया कि दिन में तो लोग घर की रखवाली कर सकते हैं। लेकिन रात में उनके घर की रखवाली कौन करता। बच्ची नें बताया कि उसका घर हाबड़ा ब्रिज के पास में पड़ता है। वह बड़ी होकर डॉक्टर बनना चाहती है। पढ़ने में काफी कुशाग्र बुद्धि है। लेकिन निम्न मध्यम वर्गीय परिवार के लिए सपनों को सच कर पाना काफी कठिन काम है। उससे मिलकर काफी अच्छा लगा। विशेषकर उसके सोचने के तरीके और किसी बात को रखने की स्पष्ता नें तो खासतौर पर प्रभावित किया।
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उसका पूरा परिवार दो-तीन महिनों के लिए पश्चिम बंगाल जा रहा है। प्रीति को भी परिवार के साथा जाना पड़ेगा। ऐसे में घर में बात हो रही थी कि क्या किया जाय ताकि उसकी पढ़ाई प्रभावित न हो तो कुछ सुझाव जो उसकी तरफ से आ रहे थे कि सहेली के घर पर रुकना। लेकिन उनकी मम्मी का कहना है कि सहेली के घर पर रुकने में कोई दिक्कत तो नहीं है, लेकिन कई महीनों की बात है। इस कारण से उन्हें यह सुझाव पसंद नहीं आया। इसके साथ ही उनका यह भी कहना था कि अगर प्रीति की तबियत खराब होती है तो दो-तीन दिन तो वहां से आने में ही लग जाएंगे।
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प्रीति की चार-पांच साल की एक छोटी बहन भी है जो स्कूल जाने में आनाकानी करती है। तो उसकी मम्मी नें कहा कि छोटी थी तो स्कूल जाने की जिद करती थी। अब स्कूल जाने का समय आया तो जाने से मना करती है। घर में टेलीविजन पर इसे कार्टून देखना बहुत अच्छा लगता है। जब लाइट होती है तो यह टीवी से चिपकी रहती है। बड़ी होने पर इसे हॉस्टल में डालना है। दिनभर घर पर मस्ती करती रहती है। मम्मी की बात से प्रीति को ऐतराज था कि वह हमें क्यों यह सब बातें बता रही है। उसकी छवि के प्रति सतर्कता गौर करने वाली थी कि हम लोग क्या कहेंगे ? हमने स्पष्ट किया कि हम केवल सुन रहे हैं। कोई राय नहीं बना रहे हैं। ताकि उसके मन को छवि वाले पहलू पर तसल्ली मिले कि उसकी छवि को लेकर हम कोई गलत धारणा नहीं बना रहे हैं कि उसका परिवार कैसा है, क्या है?
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उनके कोई रिश्तेदार डूंगरपुर में रहते हैं। वहां पर प्रीति के रहने की बात हो रही थी। ताकि नजदीकी सरकारी स्कूल में उसकी पढ़ाई चलती रहे। उसके पापा ने सुझाव दिया कि अंग्रेजी और गणित की  किताबें लेती चलों और वहां पर पढ़ लेना। प्रीति ने किताबों की लिस्ट में विज्ञान का नाम भी जोड़ा। जिससे उसकी उसके लक्ष्य के प्रति जागरूकता का पता चलता है।  उसकी छोटी बहन नें बोला कि पासबुक लेते जाओ। उसमें सारे विषय मिल जाएंगी। वह पासबुक को उठाने की कोशिश कर रही थी। लेकिन उठा नहीं पाई।  पासबुक को मोटी किताब कहने पर प्रीति हंस रही थी। इसी समय उसने पासबुक पर अपनी राय जाहिर की कि उससे तो किताबें भली हैं जिसमें सवालों के छोटे-छोटे जवाब खोजने पर मिल जाते हैं।

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