पढ़ाई में कमजोर बच्चे, कौन है जिम्मेदार?
उच्च प्राथमिक स्कूल में पढ़ाने वाले राजस्थान के एक शिक्षक कहते हैं, “प्राथमिक स्तर पर बच्चों की पढ़ाई-लिखाई पर शिक्षक साथी विशेष ध्यान नहीं देते। इस कारण से बच्चों का शैक्षिक स्तर काफी कम है। छठीं कक्षा में हम बच्चों को एबीसीडी और अ, आ लिखना और मात्रा लगाना थोड़ी सिखाएंगे।”
यही बच्चे आगे जाकर 10वीं की परीक्षाओं में बड़े स्तर पर बच्चे फेल हो रहे हैं। एक स्कूल का रिजल्ट 40 से 50 फीसदी रहता है। ऐसे में शिक्षकों को लिखित जवाब देना पड़ता है कि इतने ज्यादा बच्चे क्यों फेल हो रहे हैं? शिक्षक का मानना है कि इसकी सबसे बड़ी वजह प्राथमिक व उच्च प्राथमिक स्तर पर बच्चों के ऊपर ध्यान न देना है।
शिक्षकों की क्षमता
प्राथमिक स्कूलों से आने वाले बच्चों को पढ़ना-लिखना नहीं आता। ऐसे में हम क्या कर सकते हैं? एक समय के बाद हमारे हाथ में ज्यादा कुछ नहीं होता। वे बताते हैं कि उनकी स्थिति ऐसे चौराहे पर खड़े शिक्षक की है जो हर साला सैकड़ों बच्चों को फेल होते हुए देखता है।
एक उच्च माध्यमिक स्कूल के प्रधानाचार्य का कहना है, “शिक्षकों में पढ़ाने की क्षमता में भी गिरावट आई है। वे खुद किताबें पढ़नें में दिलचस्पी नहीं लेते। जिसके कारण उनकी समझ में बढ़ोत्तरी नहीं हो रही है। इसके साथ-साथ अभी पाठ्यक्रम में बदलाव हो रहा है। शिक्षा के क्षेत्र में तमाम बदलाव हो रहे हैं। जिसका सामना करने के लिए हमें अपने स्तर पर भी तैयारी करनी होगी। लेकिन हम उस तैयारी में कहीं न कहीं पीछे पड़ रहे हैं।”
कौन जिम्मेदार ?
ऐसे में सवाल उठता है कि अगर बच्चे फेल हो रहें हैं तो उसके लिए कौन जिम्मेदार है ? सबसे खास बात कि जिम्मेदारी लेने से कतराने की सामान्य प्रवृत्ति लोगों में देखी जाती है। शिक्षक समुदाय भी इसका अपवाद नहीं है। वे भी बच्चों के पढ़ने-लिखने में पिछड़ने के लिए अभिभावकों का अशिक्षित होना, बच्चे के ऊपर घर पर ध्यान न देना, स्कूल में अनियमित होना, शिक्षा में होने वाले प्रयोग, दिनों दिन बढ़ती ट्रेनिंग, डाक के बढ़ते काम का हवाला देते हैं।
इसके साथ ही शिक्षकों की कमी, शिक्षकों की पारिवारिक समस्याओं में उलझे होना, स्कूल में कम समय देना, छोटे बच्चों को पढ़ाने में कम दिलचस्पी लेना, विषय शिक्षकों का अभाव इत्यादि अनेक कारण गिनाते हैं। जो काफी हद तक सही हैं। मगर दूसरों पर अपने हिस्से की जिम्मेदारी थोपने से समस्या का समाधान निकलने की रही सही उम्मीद भी खत्म हो जाती है।
सूरत बदलनी चाहिए
ऐसी स्थिति में बदलाव होना चाहिए। ताकि शिक्षकों के बारे में लोगों की राय बदले। वे विश्वास कर सकें कि शिक्षक अपने सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने के लिए तत्पर हैं। वे समस्याओं का समाधान चाहते हैं और अपनी तरफ से हर संभव हल निकालने की कोशिश कर रहे हैं।

पठन कौशल के विकास में निरंतर अभ्यास की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
लोग शिक्षकों की परेशानी समझ सकें, इसके लिए समुदाय, अधिकारियों और स्कूल के स्टॉफ का आपस में बैठकर ईमानदार बात करना बहुत जरूरी है। इससे समस्याओं का समाधान तलाशने का रास्ता निकालने में मदद मिलेगी। इसका एक तरीका समस्याओं की प्राथमिकता तय करने के बाद उनको क्रमबद्ध तरीके से हल करना हो सकता है।
उदाहरण के तौर पर अगर किसी स्कूल में बच्चे अनियमित हैं तो एसएमसी की बैठक में बात हो सकती है। प्रधानाध्यापक और शिक्षक समुदाय में लोगों से कारण जानने के लिए जा सकते हैं। बच्चों से बात कर सकते हैं कि वे स्कूल क्यों नहीं आते, उनका मन नहीं लगता क्या? या फिर परिवार के लोग उनके ऊपर घर का काम करने के लिए दबाव बनाते हैं। वास्तविक स्थितियों को समझने के बाद बनी राय समस्याओं के समाधान में मदद करेगी।
समाधान के लिए पहल करें शिक्षक
समुदाय के अतिरिक्त स्कूल के स्तर पर बच्चों को किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इसके बारे में भी सभी शिक्षकों को आपस में बैठकर बात करनी चाहिए कि कैसे कक्षा-कक्ष में शिक्षण प्रक्रिया को बेहतर बना सकते हैं, कैसे कोई अध्यापक साथी अध्यापक को पढ़ाने की प्रक्रिया को रोचक बनाने के लिए कुछ सुझाव दे सकता है। ताकि क्लास के ज्यादा से ज्यादा बच्चों की भागीदारी हासिल की जा सके। इससे बच्चों का शैक्षिक स्तर बढ़ेगा और पढ़ने में उनकी रुचि का निर्माण भी होगा।
आखिर में कह सकते हैं कि शिक्षक खुद समस्याओं के समाधान की दिशा में पहल करें। ताकि अपने बारे में लोगों की सोच को बदल सकें। इससे उनको काम करने में समुदाय के जागरूक लोगों का सहयोग मिलेगा। अगर बच्चा पढ़ना-लिखना सीखता है। आत्मविश्वास के साथ सवालों के जवाब देता है तो अभिभावक भी स्कूल आते हैं कि कौन शिक्षक उनके बच्चों को इतने अच्छे से पढ़ा रहे हैं।
समुदाय को स्कूल से जोड़ने का सबसे अच्छा माध्यम बच्चे ही हैं। अगर वे पढ़ाई में कमज़ोर नहीं होंगे तो अभिभावकों का शिक्षकों के ऊपर भरोसा बढ़ेगा और शिक्षक अभिभावकों के हिस्से वाली जिम्मेदारी पर भरोसे के साथ बात कर पाएंगे क्योंकि उन्होंने अपने हिस्से की मेहनत की है। ऐसे में उनकी बात का भी अभिभावकों के ऊपर ज्यादा गहरा असर होगा।
Nice thinking dear..
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Bat to sahi hai bhai par resposbility se to sab bhagte hai…….
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