बच्चों के मन की बातः 20 साल बाद क्या होगा?
राजस्थान के एक सरकारी स्कूल में आठवीं कक्षा के बच्चों ने अपने मन की बात लिखी। इसमें उन्होंने बताया कि बीस साल बाद उनकी ज़िंदगी और उनके आसपास का परिवेश कैसे बदल रहा होगा ? बदलते माहौल में वे किस तरह की भूमिकाओं का निर्वहन कर रहे होंगे ? बच्चों के लिए भविष्य की संभावनाओं में गोता लगाने वाले अनुभव पढ़िए इस पोस्ट में।
राजेन्द्र कटारा लिखते हैं, “बीस साल बाद मैं बड़ा हो जाऊंगा। हमारी पढ़ाई पूरी हो जाएगी। हम पास हो जाएंगे । हम सबको कोई न कोई नौकरी मिल जाएगी। हमारी शादी भी हो जाएगी। आधे लड़के तो शादी के बाद अहमदाबाद, हिम्मतनगर और दिल्ली काम करने चले जाएंगे और बाकी नौकरी पर लग जाएंगे।”
त्योहार कैसे मनाएंगे?
राजेंद्र आगे लिखते हैं, “बाहर नौकरी करने के बाद जब हम होली, दीपावली जैसे त्योहारों पर घर लौटेंगे तो पैसे लेकर आएंगे। अपनी पत्नी और माता-पिता को पैसे देंगे। तब तक हमारे बच्चे बड़े हो जाएंगे। उनकी पढ़ाई पूरी होने के बाद उनकी भी नौकरी लग जाएगी। उनकी भी शादी हो जाएगी। तब उनके भी बच्चे हो जाएंगे। वे जो भी कमा कर लाएंगे, अपनी पत्नी को देंगे।”
राजेन्द्र की बातों से साफ जाहिर है कि पलायन होना तो तय है। काम और नौकरी के सिलसिले में घर छोड़ने के लिए भी वे मानसिक रूप से तैयार हैं। बाहर जहां वे काम के सिलसिले में जाएंगे, वहां अपनी पत्नी और माता-पिता को नहीं ले जा सकते। इसलिए नौकरी से घर वापस आने पर उनको पैसे देंगे ताकि वे अपनी देखभाल कर सकें। शादी को वे जीवन के अनिवार्य हिस्से के रूप में देखते हैं। वे पत्नी के अस्तित्व को बच्चों के साथ जोड़कर परिभाषित करते हैं। वे उनसे अपेक्षा रखते हैं कि वे घर पर रहकर घरेलू कामों जैसे खेती-बारी, पशुपालन और खाना बनाने में माता-पिता का सहयोग करेंगी।
बच्चों के लेखन में उपरोक्त बातों का आना, इस तथ्य की तरफ संकेत करता है कि वे आस-पड़ोस में होने वाले तमाम जीवन व्यवहारों से परिचित हैं। वे अपने जीवन की सार्थकता इन्हीं सामाजिक भूमिकाओं के निर्वहन में समझते हैं। इसलिए वे अपने बच्चों की भूमिकाओं के बारे में बात करते हुए, अपनी भूमिकाएं उन्हें सौंपते हुए नज़र आते हैं।
मैं बड़ी होकर स्कूटी चलाऊंगी
लड़कियों के सपनों में भी नौकरी और बेहतर जीवन के सपने आकार ले रहे हैं। जो उनके लेखन से समझी जा सकती है। हंसा कुमारी डामोर लिखती हैं, “बीस साल बाद हम बड़े हो जाएंगे। फिर नौकरी पर लगेंगे। हम बदल जाएंगे। गांव भी बदल जाएगा। मेरा एक सपना है कि मैं डॉक्टर बनूं।”
हंसा आगे लिखती हैं, “बीस साल में तो सबकुछ बदल जाएगा। गांव के सारे लोग बदल जाएंगे। हम अभी जिस स्कूल में पढ़ रहे हैं, वहां के गुरू जी याद आएंगे। दुकानें बदल सकती हैं। किसी का मकान बदल सकता है। बीस साल के बाद हम शादी शुदा हो जाएंगे। जो अभी बड़े हैं, वे मर जाएंगे। जो छोटे बच्चे हैं, वे बड़े हो जाएंगे। हमारी स्कूल की खाली जगह पर भी कमरे बन जाएंगे। स्कूल का पूरा सामान बदल जाएगा। हमारी स्कूल भी बदल जाएगी। हो सकता है कि हमारी गाड़ी भी बदल जाए।”
सभी बच्चों के लेखन में बड़े होने, नौकरी करने की बात साझी है। आठवीं कक्षा की छात्रा मनीषा वरहात सुंदर लेखनी में साफ-साफ लिखती हैं, “बीस साल बाद बड़े होकर हम किसी नौकरी पर लग जाएंगे। हमारा नाम आगे बढ़ेगा। हम अपने गुरुजी और मैडम के बारे में सोचेंगे। हमारी बहने, भाई और सारी सहेलियां अलग-अलग नौकरी पर लगेंगी। कोई स्कूल में मैडम बनेंगी। कोई नर्स बनेंगी। मैं बड़ी होकर स्कूटी चलाऊंगी।”
मनीषा कहती हैं, “हमारे माता-पिता पैसे देकर पढ़ाई करवा रहे हैं। हम अभी तेरह-चौदह साल के बच्चे हैं। बीस साल के बाद हम बहुत बड़े हो जाएंगे। हम बड़े होकर नन्हें-मुन्ने बच्चों की पढ़ाई करवाएंगे। मेरा सपना है कि मैं मैडम बनना चाहती हूं। बीस साल में हमारा सपना और हमारी याद पूरी हो जाएगी। मेरा एक सपना है कि मैं पिकनिक पर जाना चाहती हूं। आने वाले कल में हमारा हर सपना पूरा हो जाएगा।”
हाँ, अमृता जी। बिल्कुल ठीक कहा आपने, “बच्चे भी सबकुछ समझते हैं। वे अपने आसपास के जीवन को बड़ी बारीकी से देख रहे होते हैं। विभिन्न सामााजिक भूमिकाओं में अपने भविष्य की तस्वीर से रूबरू हो रहे होते हैं। अपने जीवन के सपनों को आकार दे रहे होते हैं। अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए नन्ही-नन्ही कोशिशों के सहारे आगे बढ़ रहे होते हैं। एक आदिवासी इलाक़े में लड़कियों का नौकरी करने के बारे में सोचना, स्कूटी चलाने का ख्वाब देखना और पिकनिक पर जाने जैसे सपनों को लेकर फिक्रमंद होना बताता है कि हमारी समाज धीरे-धीरे बदलाव से गुजर रहा है। लड़कों ने अपने जीवन की जो तस्वीर पेश की है, वह यथार्थ के काफी करीब है।”
बच्चे भी सब कुछ समझते हैं..