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बच्चों की डायरीः चुण्डावाड़ा महल देखने की कहानी

स्कूल के बच्चों में काफी उत्साह था। वे काफी खुश लग रहे थे। आज के दर्शनीय स्थल के रूप में स्कूल के पास के एक महल को चुना गया था। जिसे लोग चुण्डावाड़ा महल के नाम से जानते हैं। हालांकी इसके बाद की बस्ती बरोठी गांव में आती है। जनगणना के दौरान महल को बरोठी में ही गिना जाता है। इस मसले पर भ्रमण से पूर्व शिक्षकों के बीच आपस में बातें हो रही थी। सारे बच्चों नें दो पंक्तियां बनाकर महल की तरफ चलना शुरु किया। उनके शिक्षक रास्ते में फसलों, पेड़-पौधों और फूलों के बारे में पूछ रहे थे। वे घरों के बारे में भी बातें कर रहे थे।
गांव के बीच से होकर जाने वाली सड़क पर वे पैदल टहलते हुए निकले। तालाब के किनारे से होते हुए महल तक पहुंचे। बच्चों के सफर के दौरान अध्यापकों की तरफ से कुछ बातें आ रही थीं कि इस तरह के भ्रमण से नयापन आता है। रोज-रोज के माहौल से अलग अनुभव होता है। अतः इस तरह के भ्रमण होते रहने चाहिए। वहां से वापस आकर बच्चों नें अगले दिन अपने-अपने अनुभव लिखे। मनीषा वरहात नें अपने अनुभव लिखते हुए कहा कि मैनें सड़क पर जाते हुए गाड़ियां देखीं। तालाब के किनारे से गुजरते हुए घोड़ा देखा। जो हमें देखकर नाचने लगा। पहाडी़ पर औरतें लकड़ियां इकट्ठी कर रही थीं। तालाब में जलकुंभी है। तालाब में मछलियां तैर रही थीं। हमने तालाब के किनारे फोटो भी खींचे। 
कक्षा आठवीं की अरुणा लिखती है कि एक दिन हम सब भ्रमण के लिए निकले। हमने रास्ते में आने वाली हर चीज देखी। तालाब देखा। जिसमें बहुत सारे फूल लगे थे। हम सोच रहे थे कि एक दिन पिकनिक पर जाना है। वहा हमें बहुत सारी चीजें देखने को मिलेंगी। रास्ते में छोटा सा पहाड़ भी दिखा। पहाड़ के ऊपर चढ़ते हुए हम महल तक पहंचे। महल के पास के पेड़ मुझे बहुत अच्छे लगे। हंसा डामोर लिखती हैं कि महल के कच्चे रास्ते पर बहुत सारे घर थे। आधे कच्चे और आधे पक्के थे। एक-दो दुकानें भी दिखीं। खेतों में गेहूं की फसल लगी थी। चने के खेत भी थे। सड़के के किनारे खाकरे (ढाक या टेंशू)  के पेड़ थे। ज्स पर फूल लदे हुए थे। सड़क के किनारे हैंण्डपंप लगे हुए थे। कुछ कुंएं भी खुदे हुए थे। लोग कहते हैं कि पहाड़ों पर कभी जंगली जानवर रहा करते थे। तालाब के किनारे वाले रास्ते पर दारू का एक अड्डा भी था। 
तालाब में फूल भी थे। तालाब के किनारे एक स्कूल भी दिखी। तालाब बहुत बड़ा था। बड़े तालाब मुझे अच्छे लगते हैं। तालाब के उस पार मैनें एक मकान भी देखा।  अंजली कोपसा लिखती हैं कि हम पहाड़ों पर चढ़ते हुए चुण्डावाड़ा महल तक पहुंचे। महल के आगे कई सारे पेड़ थे। महल में खंभे थे। वहां कमरे भी थे। हमनें महल के अंदर जाकर देखा। महल बहुत सुंदर था।

सर बता रहे थे इसे महाराज लक्ष्मण सिंह ने बनवाया था। कभी यहां पर बिजली भी आती थी। महल के पास में बिजली के खंभे लगे हुए थे। महल के गेट पर बल्ब लगाने की टोपी थी। जो पुरानी और जर्जर हो गई है। राधा भगोरा नें सफर के बारे में अपना अनुभव साझा करते हुए कहा कि महल दूर से तो साफ सुथरा दिखाई देता है। लेकिन भीतर दुर्गंध आ रही थी। महल अंदर से देखने में काफी अच्छा है। इसके बड़े-बड़े खंभे हैं। महल के पास एक छोटा सा मंदिर बना हुआ था। लेकिन इस मंदिर में किसी नें भी दर्शन नहीं किया। 

हम सब साथ में महल आए थे, इसलिए बहुत अच्छा लग रहा था। महल के गेट की सीढियों पर हम सबने बैठकर फोटों खिंचवाई। उसके बाद हम माता जी का दर्शन करने के लिए गुफा मंदिर की ओर चले। रास्ते में एक कुआं था। जिसमें ढेर सारे मेंढक थे। मेढक बड़े-बड़े थे। रास्ते के पास पड़ने वाले कुंएं पर रहट लगी थी। मंदिर से वापस लौटकर हम सबने रहट का पानी पीया। रहट चलाई। आपस में बैठकर बातें की। उसके बाद पेट्रोल पंप के रास्ते से हाइवे की ओर चले जहां हमें रस पीने के लिए जाना था। हमने रास्ते में ईंटें पकती हुई देखीं। घरों के आगे बैल बंधे हुए थे। खेतों में महिलाएं काम कर रही थीं। खजूर के पेंड़ पर चिड़ियों का घोंसला बना हुआ था। बकरियां खेतों में घास चर रही थीं। लोग घरों पर आराम कर रहे थे। लोग घरों से बाहर आकर हमें देख रहे थे कि इतने सारे बच्चे कहां से आए हैं। 
हमनें सावधानी से हाइवे पार किया और रस पीने के लिए खेत के पास लगे कोल्हू पर गए। वहां ट्रैक्टर से कोल्हू चलाया गया। हमारे गुरु जी लोगों नें गन्ना लगाने का काम हाथ में लिया। बच्चों नें बैठकर इंतजार किया। कोई-कोई गन्ना लाने में मदद कर रहा था। इस तरह आधे-एक घंटे में रस बनकर तैयार हो गया। सबने एक-दो गिलास गन्ने का रस पीया। गुरू जी लोगों नें रस पिलाने का काम हाथ में लिया। कुछ बच्चे भी काम में हाथ बंटा रहे थे। रस पीकर हमने लाइन बनाई और वापस घरों की ओर लौटे। रास्ते में जिस-जिस के घर आ रहे थे। वे सब एक-एक करके अपने घर जा रहे थे। गुरु जी लोग अपने-अपने घर को निकले। तो कुछ गुरु जी जिनका घर स्कूल की तरफ था, उनके साथ बाकी बच्चे आगे की ओर निकले। अरुणा नें बताया कि उसने रास्ते में पड़ने वाली दुकान से अपने और सहेलियों के लिए चॉकलेट खरीदी।  
मनीषा वरहात लिखती हैं कि हम सबने वहां पर खाने के लिए खेत वाले से गन्ने खरीदे। घर जाकर रोटी खाई। क्रिकेट खेली। शाम को रोटी बनाई। फिर सबने मिलकर खाना खाया। उसके बाद सो गए। रात में जोर-जोर से बिजली कड़क रही थी। जोरों की बारिश हो रही थी। दिन के सुहाने सफर से रात की बारि के नजारे तक की याद बच्चों नें अपने लेखन से दिला दी। उनके लिखे को पढ़ते हुए लगता है कि उनके देखने का दायरा कितना विस्तृत है। (उन्होनें अपने अनुभव लिखने के दौरान हर एक चीज को बड़े गौर से देखा। उसको अपने लेखन का हिस्सा बनाने की कोशिश भी की। एक छात्रा ने तो बहुत बारीकी से अपनी बात कही कि भ्रमण के दौरान बहुत सारे अनुभव हुए कि किसी काम को कैसे किया जाता है ?जैसे जब हम अपने विद्यालय से रवाना हुए थे तो हमें सीधी लाइन बनाने को कहा गया। लड़कियां आगे और लड़के पीछे ी तरफ लगे। सड़के के किनारे-किनारे चलते हुए गए। )

नोट- (बसंत पंचमी के दिन पूरी स्कूल किसी दर्शनीय स्थल पर जाती है। उसके बाद सारे लोग गन्ने का रस पीते हैं। उसके बाद अपने-अपने घरों को विदा लेते हैं। )

4 Comments on बच्चों की डायरीः चुण्डावाड़ा महल देखने की कहानी

  1. मैं ऐसे जीवन के आखिरी महीनों के हर पल को जीने और समेटने की कोशिश कर रहा हूं। बहुत-बहुत शुक्रिया अमृता जी।

  2. मैं ऐसे जीवन के आखिरी महीनों के हर पल को जीने और समेटने की कोशिश कर रहा हूं। बहुत-बहुत शुक्रिया अमृता जी।

  3. कुछ ऐसा ही जीवन जीने का मन हो रहा है..

  4. कुछ ऐसा ही जीवन जीने का मन हो रहा है..

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