शिक्षकों की भूमिकाः भविष्य की तैयारी है जरूरी
महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंसटीन नें कहा था कि “कल्पना ज्ञान से भी ज्यादा शक्तिशाली है।” इंसानों ने अपने मन की कल्पनाओं को साकार करने की प्रक्रिया में तमाम आविष्कार किए और खूबसूरत चीजों का निर्माण किया। साइकिल जैसी अनोखी चीज़ का आविष्कार मैकमिलन ने किया, जबकि बल्ब का आविष्कार एडिशन ने किया।
एक सहज सा सवाल मन में आता है कि उन्होने यह आविष्कार क्यों किए? शायद मैकमिलन लोगों के जीवन की रफ़्तार को बढ़ाना चाहते थे। वे मशीन के माध्यम से रफ़्तार को इंसानी जिंदगी का हिस्सा बनाना चाहते थे। जबकि एडिशन लोगों की जिंदगी में रौशनी लाना चाहते थे। अपने आविष्कार की सफलता तक पहुंचने के लिए उन्होंने सैकड़ों असफल प्रयोग किए, लेकिन हार नहीं मानी। वे अंततः दुनिया को रोशनी देने में कामयाब हुए।
शिक्षकों की भूमिका है महत्वपूर्ण
हमारे समाज में शिक्षकों की भूमिका किसी वैज्ञानिक, कलाकार और रचनाकार से कम नहीं है। वे दुनिया को बेहतर बनाने में अपना योगदान शिक्षा की रौशनी फैलाकर कर रहे हैं। विशेषकर हमारे देश के सरकारी स्कूलों में हज़ारों बच्चे ऐसे हैं, जिनके घर में पहले कभी कोई स्कूल नहीं गया। हो सकता है कि इनके माता-पिता स्कूल जाने से डरते रहे हों, उनके पास स्कूल की फ़ीस देने के पैसे न रहें हो, मजदूरी और अन्य पारिवारिक कारणों से आगे की पढ़ाई न कर पाएं हो। मगर अभी तो उनके बच्चों को शिक्षा का अधिकार अधिनियम कानून के तहत पढ़ने का मौका मिल रहा है, इसलिए वे स्कूल आ रहे हैं।
अध्यापक ऐसे बच्चों के जीवन में शिक्षा के माध्यम से बदलाव का बीजारोपण कर रहे हैं। स्कूलों में आने वाले बच्चे एक नन्हे-नन्हे से बीज हैं, जो एक दिन बड़े होकर, अपने आसपास के लोगों को छाया और फल देंगे। हमारे देश के प्रख्यात वैज्ञानिक और मिसाइल मैन डाक्टर अब्दुल कलाम ने अपने देश को लेकर एक सपना देखा। जिसे विजन-2020 के नाम से जाना जाता है। उनका सपना है कि 2020 तक भारत विकसित देश बने। हर बच्चा स्कूल जाए। पढ़ाई पूरी करने वाले नवयुवकों के हाथ में रोजगार हों, जो रोजगार से वंचित रह गए हैं, वे स्वरोजगार का रास्ता चुने, अपने गाँव और शहर में काम करें। सारे लोग मिलकर देश के सकारात्मक विकास में अपना योगदान दें।
डॉ.कलाम को बच्चों से बहुत प्यार है। स्कूल जाने वाले बच्चों से लेकर, कॉलेज और विश्वविद्यालय की पढ़ाई करने वाले छात्र-छात्राओं से उनको मिलना बहुत अच्छा लगता है। वे जानते हैं कि देश का भविष्य स्कूल, कॉलेज जाने वाले,शिक्षित और जागरूक लोगों के हाथों में है। इसलिए उनसे संवाद करते हैं। देश के विकास में उनसे अपना योगदान देने का निवेदन करते हैं। देश के नाम दिए संबोधनों में अनेकों बार वे अपने शिक्षकों का जिक्र करते हैं, जो उनको पढ़ाने के लिए प्रकृति की गोद गये। वहां पर पक्षियों के उड़ने का प्रत्यक्ष दृश्य दिखाकर विज्ञान के सवाल समझाते थे। वे कहते हैं कि मैं अपने जीवन जो भी बन सके, उसमें मेरे शिक्षकों का बहुत बड़ा योगदान है।
हमारे प्रधानाध्यापक और शिक्षक भी अपने बच्चों के लिए सपनें देखते हैं। स्कूल में पढ़ने के लिए आने वाले सारे बच्चे भी तो हमारे, हमारे गाँव, बागड़ धरा, राजस्थान और देश के बच्चे हैं। उनके लिए भी हमारे मन में कुछ सपनें हैं कि स्कूल आने वाला हर बच्चा स्कूल से जाते-जाते कम से कम बोलना, सुनकर समझना, पढ़ना ,लिखना , गणित-विज्ञान और अंग्रेजी की आधारभूत समझ लेकर निकले। ताकि अपने आगे के जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना कर सके। अगले दस-बीस सालों में आदिवासी अंचल विकास की दौड़ में आगे बढ़ रहा होगा। शिक्षा के क्षेत्र में आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल हो रहा होगा। स्कूल के भौतिक संसाधनों से इतर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की बात हो रही होगी।
इसलिए हम सबको सोचना होगा कि आगे आने वाले समय की हमारी क्या तैयारी है ? आने वाले समय की क्या चुनौतियां होंगी ? आने वाले वक़्त में कौन से नए सवाल उभरेंगे? उनका जवाब हम कैसे खोजेंगे ? उक़्त परिस्थितियों का सामना हम कैसे कर रहे होंगे ? आदि सवालों के लिए हमें अभी से तैयार रहना होगा। शिक्षकों और प्रधानाध्यापकों को बच्चों के बेहतर भविष्य का, उनको शिक्षा के क्षेत्र को उन्नति के मार्ग पर ले जाने का सपना देखना होगा। अगर हम उदास-हताश और निराश बैठे रहेंगे तो आने वाली पीढ़ी हमसे पूछने वाली है कि हमने उनके लिए क्या-क्या किया ? तब शायद हम उनको अपने अधूरे रह गए प्रयासों के बारे में बताते हुए, उनको पूरा करने के अनुरोध के साथ-साथ जिम्मेदारी देकर अपने हिस्से का फर्ज अदा कर सकेंगे ।
बहुत ही बढ़िया पोस्ट है।
बहुत-बहुत शुक्रिया ब्लॉग बुलेटिन के लिए मेरी पोस्ट का चयन करने के लिए।
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आज की ब्लॉग बुलेटिन गर्मी आ गई… ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है … सादर आभार !
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must likha hai !
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