नर्सरी एडमीशनः “मैनेजमेंट कोटा” ख़त्म, बदली प्रवेश की प्रक्रिया
दिल्ली की सरकार ने सरकारी सहायता प्राप्त निजी स्कूलों में नर्सरी में प्रवेश के लिए 20 फ़ीसदी के मैनेजमेंट कोटे को समाप्त कर दिया है. प्रवेश प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए नया प्वाइंट सिस्टम लागू किया गया है.
दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग के आदेश को तत्काल प्रभाव से लागू कर दिया गया है. नर्सरी में दाख़िले की प्रक्रिया अगले महीने 15 जनवरी से शुरु हो रही है, 31 जनवरी तक छोटे बच्चों के दाख़िले के लिए आवेदन किए जा सकेंगे जानिए नए आदेश से कैसे बदलेगी प्रवेश प्रक्रिया और क्या होगा असर?
इसके कारण ओपन सीटों की संख्या में वृद्धि हो जाएगी. इसके साथ-साथ निजी स्कूलों के एकाधिकार और मनमाना डोनेशन वसूलने वाली स्थिति पर विराम लगेगा. दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग ने पूर्व प्राथमिक (नर्सरी) कक्षाओं में दाख़िले की प्रक्रिया को बेहतर बनाने के नए दिशा निर्देश जारी किए हैं, जो तत्काल प्रभाव से लागू होंगे.
क्या है नए आदेश में?
पूर्व प्राथमिक शिक्षा के लिए दाख़िले वाली सीटों को चार भागों में बाँटा गया है.
1. आर्थिक रूप से कमज़ोर बच्चों के लिए 25 फीसदी सीटें आरक्षित रहेंगी. (इसमें अल्पसंख्यक स्कूलों को शामिल नहीं किया गया है.)2. पाँच प्रतिशत सीटें स्कूल के कर्मचारियों और स्टॉफ के बच्चों के लिए होगा. इसमें खाली बची सीटें खुली सीटों में स्थानांतरित हो जाएंगी.
3. सहशिक्षा (को-एज्यूकेशन) वाले स्कूलों में पाँच फीसदी सीटें लड़कियों के लिए आरक्षित होंगी.
4. इसके अतिरिक्त बची सभी सीटें खुली सीटें (ओपन सीट्स) होंगी.
क्या होगा असरः मैनेजमेंट कोटे की 20 फीसदी सीटें समाप्त हो जाएंगी. इससे सीटों की संख्या बढ़ जाएगी. निजी स्कूल मैनेजमेंट कोटे के लिए मनमानी डोनेशन लेते थे. इससे निजी स्कूल संचालक अभिभावकों से बच्चों के प्रवेश के नाम पर डोनेशन नहीं ले सकेंगे. खुली सीटों के लिए अपनाई जा रही नई दाख़िला प्रक्रिया काफ़ी पारदर्शी है. इससे नर्सरी कक्षाओं में बच्चों के प्रवेश की प्रक्रिया आसान हो जाएगी. उपराज्यपाल के नए प्रावधानों से अभिभावकों में ख़ुशी है तो निजी स्कूल संचालक फ़ैसले से ख़ुश नहीं हैं.
क्या है प्वाइंट सिस्टमः
नर्सरी कक्षाओं में प्रवेश के लिए प्वाइंट (अंक) सिस्टम लागू किया गया है. इसके स्थाई मापदण्डों के आधार पर एडमीशन की पूरी प्रक्रिया संपन्न की जाएगी.
इन मापदण्डों में अभिभावकों की समस्याओं के निदान का पूरा ध्यान रखा गया है.
- नर्सरी में दाखिले के लिए छह किलोमीटर के दायरे में आने वाले बच्चों को 70 अंक दिए जाएंगे.
- अगर स्कूल जाने वाले बच्चे का भाई या बहन उसी स्कूल में पढ़ाई कर रहे हैं तो इसके लिए भी 20 अंक दिए जाएंगे.
- अगर अभिभावकों ने उसी स्कूल में पढ़ाई की है तो बच्चों को पाँच अंक और मिलेंगे.
- अंतरराज्यीय स्थानांतरण वाली स्थितियों में पाँच अंक दिए जाएंगे.
क्या है मायनेः प्वाइंट सिस्टम के तहत निर्धारित सौ अंकों की बच्चों के प्रवेश में महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी. नर्सरी में प्रवेश के लिए बच्चे की न्यूनतम उम्र तीन साल होनी चाहिए. प्वाइंट सिस्टम में निजी स्कूलों की मनमानी नहीं चलेगी. उनको निर्धारित चार बिंदुओं को ही ध्यान में रखकर बच्चों को प्रवेश देना होगा. दूरी के लिए अधिकतम अंक निर्धारित होने के कारण बच्चों को करीब से स्कूलों में दाखिले की संभालना कई गुना बढ़ जाएगी. एक ही परिवार के बच्चों को अलग-अलग पढ़ाने वाली स्थितियों से भी अभिभावकों को राहत मिलेगी.
अल्पसंख्यक स्कूलों के लिए बदला प्रावधाऩः
अल्पसंख्यक स्कूलों में शिक्षा का अधिकार कानून के तहत कमज़ोर और लाभहीन वर्ग के छात्रों के लिए 25 फ़ीसदी आरक्षण की अनिवार्यता नहीं है. लेकिन उच्च न्यायालय के एक आदेश को ध्यान में रखकर उपराज्यपाल की तरफ से नया प्रावधान लागू किया गया है. इसके मुताबिक़ उन अल्पसंख्यक स्कूलों को 20 फ़ीसदी बच्चों को निःशुल्क शिक्षा देनी होगी, जिनको सरकार की तरफ़ से या किसी संस्था की द्वारा ज़मीन की आवंटन किया गया है. आर्थिक रूप से कमज़ोर 20 फ़ीसदी बच्चों को स्कूल की तरफ से शिक्षा पूरी होने तक पढ़ाना होगा.
- इन स्कूलों में भी कर्मचारियों और स्टॉफ़ के लिए पाँच प्रतिशत सीटें आरक्षित रहेंगी.
- सहशिक्षा वाले स्कूलों में बालिकाओं के लिए पाँच फ़ीसदी कोटा निर्धारित किया गया है.
- अल्पसंख्यक स्कूलों को संबंधित समुदाय के छात्र-छात्राओं के लिए सीटें आरक्षित करने का अधिकार होगा. लेकिन इसकी प्रक्रिया और पूरी जानकारी सार्वजनिक करनी होगी.
सरकारी सेवाओं के लिए स्थापित स्कूलों के लिए प्रावधानः
- अन्य स्कूलों की तरह लाभहीन वर्ग के छात्रों के लिए 25 फ़ीसदी सीटें आरक्षित रहेंगी.
- कर्मचारी और स्टॉफ़ के लिए पाँच फ़ीसदी सीटें आरक्षित रहेंगी.
- सरकारी सेवाओं में कार्यरत लोगों के लिए सीटें आरक्षित करने का अधिकार होगा. लेकिन बच्चों के प्रवेश के लिए पारदर्शी प्रक्रिया अपनानी होगी.
शेष सीटें खुली सीटें मानी जाएंगी. जिन पर प्रवेश प्वाइंट सिस्टम के आधार पर करना होगा.
इसके अतिरिक्त स्कूलों को छह किलोमीटर के दायरे को चिन्हित करना होगा. दाख़िला प्रक्रिया शुरू होने से पहले प्रकाशित करना होगा ताकि पूरी पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सके.
राजधानी दिल्ली में तो बदलाव की बयार बह रही है. लेकिन इस तरह के फ़ैसलों का इंतज़ार देश के बाकी राज्यों को भी है. ताकि निजी स्कूल संचालकों की मनमानी को रोका जा सके. अपनी सामाजिक जिम्मेदारी अपनाने और बच्चों के प्रवेश के लिए पारदर्शी प्रक्रिया अपनाने के लिए सकारात्मक दबाव बनाया जा सके.
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