Trending

स्कूल का आख़िरी दिनः ख़ुशी और आंसू साथ-साथ मिले

आज स्कूल में रुकने का मन था. लेकिन वापसी तो पहले से तय थी. स्कूल के प्ले ग्राउण्ड में खेलते बच्चों को आख़िरी बार ग़ौर से देख रहा था. अपने स्कूल के प्रधानाध्यापक और शिक्षकों को अपनी तरफ़ हैरानी से देखते हुए निहार रहा था. मैंने कभी नहीं सोचा था कि स्कूल में आने और गांव के लोगों से जुड़ने का यह सफ़र इतना खूबसूरत होगा.

मैं अपने विलेज इमर्सन वाले घर के लोगों से कहना चाहता था कि मैं परिंदे की मानिंद आपके साथ रहा. पिजड़े की तरह कुछ बंधन भी थे. मगर जाते-जाते मैं आपको अपने पंख देना चाहता हूं कि आप जब भी चाहें मुझे याद कर सकते हैं. मैं आप सभी से इस भरोसे के साथ अलविदा कहुंगा कि इन लम्हों को मेरे लिए भुलाना बहुत मुश्किल हैं.

मैंने आप लोगों से शब्दों को मायने देना और शब्दों का अर्थ पाना सीखा है. अपनी खोई हुई सहजता को मैंने फिर से पा लिया है. आपसे मिलने के पहले मेरे ख़ास दोस्त कहा करते थे कि अरे! तुम तो प्रोफ़ेशनल हो गए हो. पहले तो तुम्हारी बातें ऐसी नहीं लगती थीं. तुम्हारी बातों में जो अपनापन महसूस होता था, वह कहीं खो सा गया है. उस अपनेपन का आभास फिर से दिलाने के लिए और भावनाओं की बंजर ज़मीन फिर से उर्बर बनाने के लिए आप सभी का बहुत-बहुत शुक्रिया. राजस्थान की मिट्टी से मिली मोहब्बत की ख़ुशबू ज़िंदगी में बहुत दूर तक बिखरने वाली है. जीवन के सफ़र में आप लोगों से मिला प्यार और अपनापन हमेशा मेरे साथ रहेगा.

आप लोगों से बिछड़ते हुए आंखों में आंसू हैं, लेकिन चेहरे पर एक ख़ुशी का भाव है. जीवन के बारे में एक स्पष्टता है. आसान शब्दों में मन की बातों को जाहिर करने का कौशल आप लोगों से सीखा है. क्योंकि आप लोगों से बात करते हुए कभी भी भारी भरकम शब्दों की जरूरत नहीं पड़ी. भावनाओं की राह में शब्द कभी बाधा नहीं बने. चाहें गांव की धांड़ी पर रहने वाली बुजुर्ग दादी से बात करना हो या गांव के बाकी बच्चों के साथ क्रिकेट का खेल खेलना और मारवाड़ी बोलने वाले लोगों से हिंदी में बात करने की कोशिश करना. उनका यह कहना है कि हिंदी ऐसी बोली जाती है मैं पानी पी रहा हूं. मैं रोटी खा रहा हूं…आज भी याद आता है.

इस सिलसिले में महसूस होता है कि भाषा में अपनेपन की उष्मा तो बोलियों से ही आती है और बोलियों से कटने वाली या बोलियों को दबाने वाली कोई भी भाषा संपन्न नहीं हो सकती और आम लोगों की भावनाओं का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकती. स्कूल से वापसी के वक़्त महसूस हो रहा था कि बच्चों ने जो चित्र बनाएं हैं, उसमें रंग भरना बाकी है. इससे सबक मिला कि ज़िंदगी में किसी भी काम को कल पर न टालने की आदत अपनानी है ताकि तमाम सवालों को सुलझाया जा सके. क्योंकि सवालों की पूरी फ़ाइल से निपटना, चुनिंदा सवालों को सुलझाने की तुलना में हमेशा ही मुश्किल रहा है. तो स्कूल के अनुभवों के बारे में फिर लिखते हैं. आज के लिए इतना ही. पढ़ने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया.

इस लेख के बारे में अपनी टिप्पणी लिखें

Discover more from एजुकेशन मिरर

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading