‘बच्चों को ऐसी घुट्टी पिलानी चाहिए कि….
आकाशवाड़ी पर दो कार्यक्रम सुनने का मौका मिला एक का विषय था ‘महिलाओं के ख़िलाफ हिंसा’ और दूसरा ‘साइबर क्राइम की तरफ़ युवाओं के बढ़ते आकर्षण का….दोनों कार्यक्रमों में बात अंततः बच्चों की शिक्षा पर आकर टिकी…पहले कार्यक्रम में एक एंकर ने कहा “‘बच्चों को ऐसी घुट्टी पिलाई जानी चाहिए कि हर समस्या हल हो जाए।”
आज दूसरे कार्यक्रम में एक विशेषज्ञ महोदय ने कहा, “बच्चों का दिमाग इस तरीके से विकसित किया जाना चाहिए ताकि वह सकारात्मक तरीके से चीज़ों को देखें।” उनके समाधान का तरीका बच्चों के मस्तिष्क के विकास को एक ख़ास दिशा देने से था।
हैरानी की बात है कि सब बच्चों के पीछे ही हाथ धोकर पड़े हैं…..आखिर क्यों?
इन बातों को सुनते हुए लगता है कि कहीं ऐसा न हो कि भारत में बच्चों के मस्तिष्क विकास को ख़ास दिशा देने की प्रतियोगिता शुरू हो जाए।
वैसे भी भारत में ज्ञानियों की कमी तो है नहीं। यहां तो निष्कर्ष पहले निकाल लेते हैं। शोध के बारे में पूछो तो कहते हैं कि यह तो हज़ारों साल पहले भी होता था।
कौन समझाए भाई लोगों को…..कि कम से कम बच्चों को तो उनकी ज़िंदगी चैन से जीने दो….कभी भाषा बदलते हो….कभी पाठ्यक्रम बदलते हो…तो कभी स्कूल ही बंद कर देते हो कि काहें यहां जा रहे हो…..वहां चले जाओ….तुम्हारा स्कूल वहां खिसक गया है। (राजस्थान में बहुत से स्कूलों को बंद कर दिया गया और बड़ी स्कूलों के साथ मिला दिया गया।)
बच्चे भी सोचते होंगे कि ई शिक्षक लोगों का खोपड़ी खिसक गया है….या अधिकारी लोगों को ही कुछ हो गया है कि जो मन में आ रहा है…कर रहे हैं….कोई पूछने और टोकने वाला नहीं है…
बाल संसद और स्कूल में मन की बात….अरे ऊ सब तो मन की व्यथा कहने और लोकतंत्र की डेमो क्लॉस लेने के लिए….सब सच थोड़े होत है। थोड़ा सच और थोड़ा दिखावा…ऐसे ही तो होता है ज़िंदगी का असल नाटक.
बिल्कुल सही बात कही आपने कि बच्चों को किसी ख़ास मूल्य के बदलना ग़लत है। बेहतर होगा कि मूल्यों को बच्चों के अनुरूप बदला जाए ताकि उनका बचपन महफूज रहे।
बच्चे हमारे समाज का हिस्सा हैं. जैसी सोच और सभ्यता समाज कि होती है वह मूल्य ही बच्चों में भी पनपते हैं इसलिए बच्चों को नहीं बल्कि सामाजिक मूल्यों को बदलने कि ज़रूरत है.