स्कूल और बच्चेः कैसा रहा साल 2014?

पेशावर चरमपंथी हमले में मारे गए छात्रों की याद में दो मिनट का मौन रखते बच्चे। (तस्वीरः साभार द हिंदू)
वैश्विक स्तर पर बच्चों के लिए कैसा रहा साल 2014? इस सवाल के जवाब में कहा जा सकता है कि इस साल बच्चों के ख़िलाफ़ होने वाली हिंसा में वैश्विक स्तर पर बढ़ोत्तरी हुई। दुनियाभर की अनेक शिक्षण संस्थाओं पर हमले हुए। बच्चों का अपहरण किया गया। उनकी हत्या की गई। स्कूल के शिक्षकों को पढ़ाने का काम करने के लिए मारा गया। स्कूल में काम करने वाले स्टॉफ़ को निशाना बनाया गया।
इसके अलावा स्कूलों में बच्चों को प्रताड़ित करने की घटनाएं बढ़ी हैं। बच्चों के ख़िलाफ़ यौन हिंसा के बढ़ते मामलों के कारण भारत में अभिभावकों को सड़कों पर उतरना पड़ा। तो वहीं शिक्षकों की प्रताड़ना के कारण कुछ बच्चों ने मौत को गले लगा। इसके अलावा एमडीएम (स्कूल में दोपहर का भोजन) खाने के बाद बच्चों के बीमार होने की ख़बरें भी पूरे साल आती रहीं। यह सारी स्थितियां बच्चों के ख़िलाफ़ हिंसा के बढ़ते ख़तरे और भावी चुनौतियों की तरफ़ संकेत करती हैं।
बच्चों की सुरक्षा एक वैश्विक चिंता
साल 2014 के अप्रैल महीने में नाइजीरिया में पश्चिमी शिक्षा और लड़कियों की पढ़ाई का विरोध करने वाले चरमपंथी संगठन ‘बोको हराम’ ने एक स्कूल से 200 से ज़्यादा स्कूली लड़कियों को अगवा कर लिया था। इस अपहरण की घटना के दौरान कुछ लड़कियों को भाग निकलने का मौका मिला। उन्होंने अपने जो दर्दनाक आपबीती सुनाई वह दिल दहला देने वाली थी। इनमें से कई लड़कियों की शादी की गई। उनको बेचा गया। ईसाई लड़कियों का धर्म परिवर्तन किया गया। उनको मुस्लिम बनाया गया। वहां की जैल में क़ैद सभी चरमपंथियों को रिहा करने के बदले बंधक लड़कियों को आज़ाद करने की शर्त रखी गई।
इस तरह की परिस्थितियां बताती हैं कि दुनिया में चरमपंथी संगठन अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए बच्चों को ढाल बना रहे हैं। उनको मौत के घाट उतार रहे हैं। उनके स्कूलों को आग के हवाले कर रहे हैं। स्कूल की दीवारों को गोलियों से छलनी कर रहे हैं। तालीम हासिल करना और स्कूल में सुरक्षित महसूस करना दुनिया के हर बच्चे का अधिकार और मानवाधिकार है। 26 दिसंबर को पेशावर पर हमले की जिम्मेदारी लेने वाले चरमपंथी संगठन तालिबान का कहना है कि उसने उत्तरी वजीरिस्तान में होने वाली सेना का कार्रवाई का बदला लिया है। यानि इस हमले में भी बदला लेने के लिए स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों और छात्रों को निशाना बनाया गया। इस हमले भी बर्बरता ने पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया।बच्चों के लिए दुनिया कितनी महफूज है? यह सवाल लोगों के मन में उठने लगा।
यह चिंता केवल पाकिस्तान की नहीं थी। यह चिंता भारत की भी थी। यहां भी लोगों की आँखें नम थीं। उन्हें दुख था कि मासूम बच्चों को सेना और तालिबान की आपसी जंग में निशाना क्यों बनाया जा रहा है? इसी दिन यमन में हुए एक कारण धमाके में स्कूल जाने वाली तकरीबन 15 लड़कियों की मौत हो गई। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि वैश्विक स्तर पर बच्चों के ख़िलाफ़ होने वाली हिंसा, शिक्षण संस्थाओं पर होने वाले हमले, शिक्षकों की हत्या इस बात का संकेत करती है कि इस तरह के मामलों में बढ़ोत्तरी हो रही है। इस बीतने वाले साल 2014 से समूची दुनिया का सबक यही होगा कि बच्चों के ख़िलाफ़ होने वाली बर्बर हिंसा को रोकें और स्कूल को निशाना बनाने के मंसूबों को नाकाम को पराजित करें। ताकि दुनिया के बच्चे खौफ के साए से बाहर आ सकें।
भारत की स्थिति
इस साल भारत के विभिन्न स्कूलों में बच्चों के ख़िलाफ़ हिंसा व यौन हिंसा के बहुत सारे मामले आए। इसमें बेंगुलुरू के स्कूलों में बच्चों के ख़िलाफ़ बार-बार यौन उत्पीड़न की शिकायतों के कारणों अभिभावकों को अपना विरोध जताने के लिए सड़क पर आना पड़ा। इसमें से अधिकांश मामले निजी स्कूलों के ख़िलाफ़ थे। 26 नवंबर को फरीदाबाद के एक स्कूल में होमवर्क न पूरा करने पर अध्यापिका की डांट के बाद आठवीं कक्षा के एक बच्चे न स्कूल में अपनी आत्महत्या की कोशिश की। इस छात्र की माँ का कहना है कि बच्चे ने अपना होमवर्क पूरा किया था। वह कॉपी ले जाना भूल गया था। इस छात्र की एक महीने के भीतर मौत हो गई।
इस छात्र की मौत का जिम्मेदार कौन है? क्या केवल वह अध्यापिका जिन्होंने होमवर्क न पूरा करने के लिए बच्चे को डांटा और उसे हीन भावना से ग्रस्त कर दिया। उसके आत्मसम्मान को कुचल दिया। इस घटना के लिए निजी स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षकों पर बच्चों के बेहतर प्रदर्शन के लिए बनाया जाने वाला अतिरिक्त दबाव, विद्यालय प्रशासन की लापरवाही, अभिभावकों और सरकार की तरफ़ से निजी स्कूलों को मिलने वाली ढील की भी कुछ भूमिका है। बेंगलुरू में नर्सरी में पढ़ने वाली तीन साल की बच्ची से बलात्कार की घटना सामने आने के बाद मामले की जाँच हो रही थी।
अभिभावकों का टूटता भरोसा
खुद को ‘इंटरनेशनल स्कूल’ बताने वाले इस निजी शिक्षण संस्थान के पास नर्सरी स्कूल संचालित करने की भी अनुमति नहीं थी। लेकिन यहां पहली कक्षा से लेकर सातवीं तक की पढ़ाई हो रही थी। इस स्कूल के ख़िलाफ़ धोखाधड़ी का मामला दर्ज़ किया गया। वहां के कमिश्नर ने कहा कि स्कूल ने आम जनता के साथ धोखा किया है। इससे पूर्व नए सत्र की शुरुआत में जुलाई में दक्षिण-पूर्व बेंगुलरू में एक छह वर्षीय छात्रा के साथ कथित बलात्कार के बाद पुलिस ने सभी स्कूलों को आवश्यक दिशा-निर्देश जारी किए थे।इस मामले के बाद अभिभावकों ने व्यापक प्रदर्शन करके अपना विरोध जताया था। इन घटनाओं से भारत में बच्चों के खिलाफ होने वाली हिंसा, स्कूलों में उनकी असुरक्षा एक गंभीर स्थिति की तरफ़ संकेत करती है।
वर्तमान में स्कूलों के सुधार की तमाम योजनाओं में बच्चों की सुरक्षा को प्राथमिकता के साथ शामिल किया जाना चाहिए ताकि बच्चों को स्कूल में एक भयमुक्त माहौल में शिक्षा मिले। इसके लिए अभिभावकों के साथ पीटीएम व एसएमसी के माध्यम से निरंतर संवाद होता रहे और बच्चों के ख़िलाफ़ होने वाली हिंसा के खिलाफ तत्परता के क़दम उठाया जा सके। स्कूल में बच्चों के लिए एक सुरक्षित माहौल बनाया जा सके, जहाँ वह पूरी आज़ादी के साथ अपने बचपन का आनंद ले सकें। शिक्षा का अपना हक़ हासिल कर सकें। हम उम्मीद करते हैं आने वाला साल 2015 बच्चों की सुरक्षा से जुड़े तमाम सवालों का जवाब लेकर आएगा। बच्चों के लिए बेहतर दुनिया बनाने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।
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