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यूपी बोर्डः कुछ पास हुए, कुछ फेल हुए…चर्चा तो टॉपर की है

  • DSCN1264यूपी बोर्ड के रिजल्ट आ गए हैं। फिर टॉपर्स की चर्चा हो रही है। फिर लड़कियों के बाजी मारने की बात हो रही है।
  • अस्सी-पचासी फ़ीसदी रिजल्ट के मायने क्या है?
  • इस परीक्षा परिणाम के अंधेरों की तरफ़ भी ध्यान देना चाहिए कि जो छात्र फ़ेल हो गए, क्या उनको फिर से हमेशा की तरह हतोत्साहित किया जाएगा, क्या वे फिर से ख़ुद को हारा हुआ महसूस करेंगे।
  • बच्चों के साक्षात्कार में लिखा जा रहा है कि घर के लोग बच्चे के किसी काम में हाथ नहीं लगाने देते थे, ताकि उसको पढ़ने के लिए ज्यादा से ज्यादा समय मिले।
  • इस बार भी नकल हुई होगी, नकल का परीक्षा परिणामों के ऊपर क्या असर पड़ा। इसकी कोई चर्चा नहीं होगी।
  • अब तो परीक्षा के दौरान के सारे किस्से एक बार नए सिरे से दोहराए जाएंगे, जो फेल हुए वे ख़ुद को रेस में पिछड़ा हुआ पाएंगे।
  • ग़लती से ज़्यादा नंबर पाने वाले ऐसी पढ़ाई में उलझ जाएंगे, जहां से फिर न कोई वापसी होगी और न आगे जाने का कोई रास्ता होगा।
  • गाँव में बीए की तुलना में बीएससी को सम्मान वाली पढ़ाई माना जाता है। भले ही पास के कॉलेज में ढंग के शिक्षक हों या न हों।
  • लायब्रेरी में किताबें हों न हो।

पास-फेल का खेल

दसवीं-बारहवीं की पढ़ाई में कोचिंग की भूमिका काफ़ी महत्वपूर्ण है। जो छात्र-छात्राएं घर का काम-काज करते हुए पढ़ाई पूरी करते हैं। उनके परिणाम और केवल पढ़ाई करने वाले छात्रों के परिणाम में भी तो अंतर होता होगा। लेकिन इन बातों की तरफ़ किसकी नज़र जाती है। अभी तो पास होने वाले ख़ुश हैं। कम नंबर पाने वाले उदास है। फेल होने वाले दुःखी हैं। टॉप करने वाले ख़ुशी के सातवें आसमान पर हैं। नंबर की गिनती में योग्यता और प्रतिभा की पहचान कौन करे…ठप्पा लगाने वाली व्यवस्था सारी परिस्थितियों का काक चेष्टा वाले भाव से देख रही है। चुनिंदा लोगों को शीर्ष पर खड़ा होने का मौका देकर बाकी लोगों को एक हासिए की तरफ़ धकिया रही है, जिसे पढ़ाई के मौके से धीरे-धीरे बेदख़ल करने की प्रक्रिया का नाम दिया जाता है।

पढ़ाई की दौड़ में पीछे छूटते छात्र

कुछ दसवीं में पीछे छूट गए और कुछ बारहवीं में पीछे रहने को अभिशप्त हो गए या किसी काम-धंधे में लग गए। बाकी जो इस दौड़ में बचे हैं। आगे जाएंगे। 11वीं में प्रवेश लेंगे। वहीं कुछ छात्र दसवीं और 12वीं की परीक्षा में फिर से बैठने और अपने से पिछले साल के छात्रों से मुँह चुराते हुए, फेल होने का ठप्पा छिपाते हुए एक बार फिर से उठ खड़े होने की कोशिश करेंगे। ताकि पढ़ाई के बोझ को ढंग से संभाल पाएं, पता नहीं उनके घर वाले अगले साल कोचिंग की फ़ीस भी देंगे या मना कर देंगे। या फिर नकल वाले सेंटर का जुगाड़ करेंगे ताकि लड़का-लड़की को कम से कम दसवीं-12वीं पास करा सके।

बाकी जो बचे हैं अब कॉलेज में एडमीशन लेंगे। एक नई दुनिया में क़दम रखेंगे, जहाँ प्रतिस्पर्धा का एक अलग स्तर है। संसाधनों का भेदभावपूर्ण बंटवारा है और समान प्रतियोगिता से होकर आगे जाने की चुनौती है। सभी छात्रों को अपने-अपने सफ़र के लिए शुभकामनाएं।

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