एज्युकेशन लीडरशिपः क्या कहते हैं शिक्षक?
शिक्षा में नेतृत्व के ऊपर काफ़ी बात होती है। प्रधानाध्यापकों में नेतृत्व कौशल का विकास होना चाहिए ताकि वे पूरे स्कूल को सही नेतृत्व देते हुए उसे सही दिशा में आगे ले जा सके। शिक्षकों की पूरी टीम को एक बेहतर टीम प्लेयर की तरह अपनी भूमिका निभाने के लिए प्रेरित करें।
इस पोस्ट में एज्युकेशन लीडरशिप पर बात होगी, मगर एक शिक्षक के नज़रिये से। ताकि हम यह जान सकें कि आख़िर वे अपने स्कूल व उससे जुड़े मसलों के बारे में क्या सोचते हैं?
एक स्कूल की शिक्षिका ‘एज्युकेशन लीडरशिप’ के बारे में अपनी बात रखते हुए कहती हैं, “जो अधिकारी हमारा प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, वे हमसे जुड़े मसलों को विभिन्न फोरम पर ढंग से रखते नहीं। और हमें प्रत्यक्ष रूप से अपनी बात कहने का कोई मौका नहीं मिलता।”
‘हम तो पास हो ही जाएंगे’
उन्होंने अपनी क्लास का उदाहरण देते हुए कहा, “इस कक्षा में गेहूं के बोरे रखे हुए हैं, लोहे के बक्से और आलमारी भी रखी हुई है। यह पूरा कमरा अस्त-व्यस्त है। मुझे पता है कि किसी कक्षा की ऐसी स्थिति नहीं होनी चाहिए, लेकिन क्या करें…ऐसे ही पढ़ाना पड़ता है।” ऐसे ही पढ़ाना पड़ता है, इस बात में काफ़ी कुछ छिपा हुआ है, जिस पर ग़ौर किया जा सकता है। वे कौन से कारण हैं जो एक शिक्षक से बदलाव की अंतःप्रेरणा छीन लेते हैं। वे आगे कहती हैं, “हमारे स्कूल में ऐसी स्थिति है क्योंकि कमरों की कमी है। हर स्कूल में पर्याप्त शिक्षक और अतिरिक्त स्टाफ़ की व्यवस्था होनी चाहिए ताकि शिक्षण का कार्य सुचारु रूप से चल सके।”
अपने पूर्व अनुभवों का जिक्र करते हुए वे कहती हैं, “मैंने भी एक निजी संस्थान में पढ़ाने का काम किया है। बीएड के दौरान प्री-प्राइमरी और प्राइमरी कक्षाओं को पढ़ाने वाले प्रशिक्षण में भागीदारी की है। इसलिए सीनियर सेकेंडरी में पढ़ाने के बाद प्राइमरी स्कूल में पढ़ाना बहुत ज़्यादा मुश्किल नहीं था। पढ़ाई की वर्तमान स्थिति के बारे में उनका कहना था, “स्कूल में थोड़ा तो अनुशासन होना चाहिए। बच्चों को लगता है कि हम तो पास हो ही जाएंगे, इसलिए पढ़ने की जरूरत नहीं है। इस तरह की सोच लंबे समय में काफ़ी नुकसान पहुंचाने वाली है।”
बच्चों को सीखने का अवसर मिले
कम उम्र के बच्चों के स्कूलों में एडमीशन का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया, “चार साल के बच्चों की नामांकन पहली क्लास में हो जाता है, पाँच साल की उम्र में वे बच्चे दूसरी क्लास में चले जाते हैं। ऐसे में उनका शारीरिक और मानसिक विकास उस कक्षा के स्तर के अनुरूप नहीं होता, ऐसे बच्चों के लिए काफ़ी प्रयास करने के बाद भी स्थिति जस की तस बनी रहती है या फिर उसमें बहुत कम सुधार हो पाता है।”
उन्होंने कहा, “मेरी स्कूल की पांचवीं कक्षा में एक बच्चा है, उसे छोटे बच्चों के साथ बैठना और पढ़ना अच्छा लगता है। उसका लर्निंग लेवल पांचवी क्लास के स्तर का नहीं है, ऐसे बच्चों को सीखने का अवसर मिलना चाहिए, लेकिन बच्चों को क्रमोन्नत करने वाली परिस्थिति के कारण हम कुछ कर नहीं सकते।”
‘हमारी क्या ग़लती है?’
आख़िर में शिक्षकों की कमी पर बात हुई। इसके बारे में उनकी स्पष्ट राय थी, “अगर अधिकारियों से इस बात की शिकायत करते हैं कि हमारे स्कूल से किसी शिक्षक को दूसरे स्कूल में क्यों लगाते हैं? तो उनका जवाब होता है कि बाकी स्कूलों में तो दो ही शिक्षक है। अगर बाकी स्कूलों में दो ही शिक्षक हैं या पर्याप्त शिक्षक नहीं है तो इसमें आख़िर हमारी क्या ग़लती है?”
प्राथमिक शिक्षा पर ध्यान देने की आवश्यकता पर जोर देते हुए वे कहती हैं, “हर स्कूल में कक्षाओं के अनुसार शिक्षक होने चाहिए, तभी शिक्षा की स्थिति को बेहतर बनाया जा सकता है। बाकी देशों में प्राथमिक शिक्षा के ऊपर सबसे ज़्यादा ध्यान दिया जाता है, लेकिन हमारे देश में प्राथमिक शिक्षा ही सबसे ज़्यादा उपेक्षित स्थिति में है। हमें प्राथमिक शिक्षा के प्रति अपना नज़रिया बदलना चाहिए।”
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