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तालीम की रौशनीः ‘किताबें पढ़ने के शौक की वजह से ज़िंदा हूँ’

DSCN2473पढ़ना सीखना हमारी ज़िंदगी का वह लम्हा होता है जब नजरों से सामने दिखाई देने वाली दुनिया के परे किताबों में क़ैद दुनिया के दरवाज़े हमारे लिए ख़ुल जाते हैं। पढ़ने की परिभाषा की तलाश में एनसीईआरटी की रीडिंग सेल ने एक नारा खोजा, “पढ़ना है समझना।”

इसी पढ़ने की ललक ने बहुतेरे बच्चों को कॉमिक्स, नंदन, चंपक, लोट-पोट, बालहंस और न जाने कितनी किताबों से अपना रिश्ता जोड़ने का मौका दिया। अख़बारी कहानियों ने बहुत से लेखकों को किताबों की दुनिया में सैर लगाने के लिए प्रेरित किया। डायरी लिखने के लिए प्रोत्साहित किया।

पढ़ने के महत्व के बारे में मिर्ज़ा हादी ‘रुस्वा के उपन्यास उमराव ‘जान अदा’ की पंक्तियां जो कहती हैं, वह पढ़ने को ज़िंदगी के बहुत करीब ला खड़ा करता है। इस उपन्यास की नायिक कहती है, “मेरी ज़िंदगी में काम वही दो हर्फ़ आए, जो मौलवी साहब ने पढ़ा दिये थे। यह तो हर आदमी के निजी जौहर का जमाना है। अगर आप लायक आदमी हैं तो आपकी शोहरत होगी। उस जमाने में जब मैं नाच मुजरा करती थी, तो मौलवी साहब से हासिल किए हुए इल्म की वजह से मेरी शोहरत हुई है।”

आगे की पंक्तियां हैं, “उस वक़्त तो मैं बराबर तारीफ़ करने वालों से घिरी रहती थी। पढ़ने-लिखने के लिए ज़्यादा फुरसत नहीं मिलती थी। लेकिन अब मैं अकेली हूँ तो मौलवी साहब की दी हुई किताबें पढ़ने के शौक के वजह से ही ज़िंदा हूँ। अगर यह शौक न होता तो जवानी के मातम, पुराने दिनों के ग़म और मर्दों की बेवफाई का रोना रोते हुए ज़िंदगी ख़त्म हो जाती।”

इसके आगे की पंक्तियां शिक्षा (पढ़ने-लिखने) के महत्व को रेखांकित करती हैं, “यह उसी तालीम का नतीजा है कि मेरे पास जो कुछ भी जमा है, उसे किफ़ायत से खर्च करती हूँ और उसी पर ज़िंदगी काट लेती हूँ। किसी के सामने हाथ न फैलाना पड़ेगा। ज़िंदगी कट गई तो आगे अल्लाह मालिक है।”

1 Comment on तालीम की रौशनीः ‘किताबें पढ़ने के शौक की वजह से ज़िंदा हूँ’

  1. Bandhu Kushawarti // August 20, 2019 at 4:52 am //

    ‘गुजिस्ताँ लखनऊ’ से लिया गया हिस्सा नववाबी दौर में मशहूर रही तवायफ ‘उमराव जान’ से सम्बन्धित लगता है।मामूली पढा़ई भी जि़न्दगी के आखि़री दिनों में कितने काम की होती है,यह उद्धरण,इस बात को बखूबी साबित करता है!!

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