हिंदी भाषा में मात्राओं को पढ़ना-लिखना कैसे सिखाएं?
पहली-दूसरी कक्षा को पढ़ाने वाले शिक्षक अक्सर कहते हैं, “बच्चों को वर्ण तो सिखाना आसान है। मगर मात्राओं को लगाने के बाद वर्णों को पढ़ना-लिखना कैसे सिखाएं, यह बात समझ में नहीं आती।”
कुछ शिक्षकों ने इस सवाल का समाधान बारहखड़ी में खोजा। मगर बच्चों के लिए पूरी बारहखड़ी को रटना और बार-बार दोहराना बेहद उबाऊ होता है। इससे वे किसी लिखित सामग्री को अटक-अटक कर पढ़ते हैं, जिसमें उनकी काफी ऊर्जा जाया होती है। धारा प्रवाह पठन में भी बारहखड़ी सीखना बाधक बन जाता है।
बारहखड़ी है ‘कठिन’
बारहखड़ी की व्यावहारिक समस्या के बारे में एक शिक्षक बताते हैं, “बच्चे पढ़ने के लिए दौरान बारहखड़ी को पहाड़े की तरह याद करते हैं कि किसी वर्ण को एक क्रम कैसे पढ़ा जाये, जिसके साथ कोई मात्रा लगी है।”
भाषा कालांश के अपने अनुभवों में भी मैंने इस बात को देखा है कि जो बच्चे बारहखड़ी के माध्यम से किसी लिखित सामग्री को पढ़ने की कोशिश करते हैं, उनकी रफ्तार बाकी बच्चों से कम होती है जो मात्रा को समझकर पढ़ते हैं। एक बच्चे को प्रवाह के साथ किताब पढ़ने वाली स्थिति तक पहुंचने के लिए कई महीनों जूझना पड़ा। इसके लिए पुस्तकालय की किताबों से काफी मदद मिली। अगर इस तरह का सपोर्ट नहीं होता तो बच्चे के लिए अटक-अटक कर पढ़ने वाली स्थिति से बाहर निकलना काफी मुश्किल हो जाता।
दूसरी बात कि कुछ स्कूलों में मात्रा सिखाने का तरीका भी समस्याओं से ग्रस्त है, जिससे निजात पाने की जरूरत है। ताकि बच्चों को एक बोझिल कवायद से बचाया जा सके। जैसे किताब पढ़ने के लिए क, क पर बड़ी ई की मात्रा की, त, त पर आ की मात्रा ता, ब किताब। इस तरीके से किसी पाठ को पूरे प्रवाह और सहजता के साथ पढ़ने में बच्चों को दिक्कत होती है। लंबे-लंबे वाक्यों को पढ़ना तो बहुत परेशान करने वाला होता है।
वर्णों की पहचान है जरूरी
मात्रा सिखाते समय ध्यान रखने वाली सबसे जरूरी बात है, “नई मात्रा ऐसे वर्णों के साथ सिखाएं जिसे बच्चे पहले से जानते हों। यह भी ध्यान रखें कि जो मात्रा हम सिखाना चाहते हैं उसके वर्ण प्रतीक और मात्रा प्रतीक को बच्चे पहचानते हों, साथ ही उनकी आवाज़ों को भी जानते हों।”मात्रा सीखना पूरी तरह से सही और नियमित अभ्यास का मामला है। ऐसे में जरूरी है कि नई मात्रा सिखाने के बाद दो-तीन दिन तक लगातार उसके अभ्यास और दोहरान का मौका बच्चों को मिले।
इस दौरान शिक्षक को हर बच्चे तक पहुंचने की कोशिश करनी चाहिए। ताकि उनको पता चल सके कि कोन से बच्चे मात्राओं को अच्छी तरह पकड़ रहे हैं और किन बच्चों को कहां पर दिक्कत हो रही है? इससे उन बच्चों को आगे सपोर्ट करना शिक्षक के लिए काफी आसान हो जाएगा।
एक दिन में एक ही मात्रा सिखाएं
एक उदाहरण के माध्यम से बात करते हैं। किसी स्कूल में पहली कक्षा के बच्चों ने ‘ई’ की मात्रा सीखी। अगर इसी दिन ‘ऐ’ और’औ’ की मात्राओं के बारे में भी बच्चों को बताया जाये तो क्या होगा? इस बात की ज्यादा संभावना है कि बच्चों ने जो नई मात्रा सीखी है उसके अभ्यास का कम मौका मिलेगा। नई लर्निंग को समझ का हिस्सा बनने के लिए अभ्यास का जो अवसर बच्चों को मिलना चाहिए, वह शायद नहीं मिल पाएगा।
इसके बाद ऐसे शब्दों को पढ़ने का अवसर दिया जाये जो उन्हीं मात्राओं से बने हों जिसे बच्चों ने सीखा है। इससे बच्चे अंततः मात्राओं के लगने के बाद वर्णों की आवाज़ में होने वाले परिवर्तन को साफ़-साफ़ पहचान पाते हैं, बोलकर बता पाते हैं और अगर लिखने का भी मौका दिया जाये तो अच्छा श्रुतलेख भी लिख सकते हैं।
किसी संप्रत्यय को सीखने की प्रक्रिया बच्चे को आगे भी मदद करती है। इसलिए शुरुआत से पूरी प्रक्रिया को जितने अच्छे से बच्चों के सामने स्पष्ट करेंगे, अगली मात्रा सीखने में उसे उतना ही कम समय लगेगा और बच्चा तेजी से मात्राओं को कांसेप्ट को समझते हुए पढ़ना सीखने की दिशा में आगे बढ़ जाएगा।
इसलिए सिखाने की सही रणनीति होगी कि बच्चों को एक या दो दिन में एक ही मात्रा सिखाई जाए और बाकी मात्राओं के दोहरान का मौका शब्दों को पढ़ने के अभ्यास से दें। अगर बच्चे शब्द पठन में खुद को सहज महसूस कर रहे हैं तो यह अभ्यास बच्चों को काफी मदद करेगा।
आवाज़ में होने वाले बदलाव को स्पष्ट करें
किसी वर्ण के साथ मात्रा लगने पर उसकी आवाज़ में बदलाव होता है, अगर इस बात को समझने का मौका बच्चों को मिले तो वे बहुत आसानी से मात्राओं के कांसेप्ट को समझ सकते हैं। उदाहरण के लिए इसके लिए जिन वर्णों को बच्चे पहले से जान रहे थे, उसमें ‘ई’ की मात्रा लगाने के बाद बच्चों को पढ़कर बताया कि उसकी आवाज़ कैसे बदल रही है। (जैसे क+ी=की, र+ ी= री)। इसके बाद वर्णों और मात्रा लगे वर्णों को लिखना शुरु किया, इसके जरिए बच्चों को यह बताना था कि कौन सा वर्ण लिखा जा रहा है। या मात्रा लगे वर्णों को पढ़कर बताने का मौका बच्चों को मिले।
एक स्कूल में भाषा के कालांश के दौरान सीवी (की, के, को इत्यादि) व वर्णों (क, ख, ग इत्यादि) के पठन वाली गतिविधि में बच्चों के ‘सेल्फ करेक्शन’ वाले पहलू को देखने का मौका मिला। बच्चे अगर किसी सीवी को गलत पढ़ रहे थे तो उसमें तेज़ी से खुद सुधार भी कर रहे थे। कई बार यह सुधार बाकी बच्चों को देखकर भी हो रहा था। इससे उन्हें मात्राओं की समझ के साथ किसी सीवी को पढ़ने का मौका मिल रहा था।
एक बात दिखी कि इस दौरान जो बच्चे बहुत छोटे थे, उनके लिए ध्यान देना संभव नहीं था। भाषा कालांश के बाद शिक्षक से उनके बारे में बात हुई कि इन बच्चों को आगे बैठाया जाये या फिर इनको बोर्ड पर किसी अन्य बच्चे के साथ पढ़ने के लिए बुलाया जाए। इसके बाद जब वह बच्चा खुद से पढ़ने का आत्मविश्वास हासिल कर ले तो उसे अकेले पढ़ने के लिए बुलाया जा सकता है।
आखिर में कह सकते हैं कि अगर इस तरीके से मात्राओं पर काम हो तो निश्चित तौर पर बच्चे सीखते हैं। उनका इस तरीके से सीखना बारहखड़ी वाले तरीके से ज्यादा कारगर और उपयोगी होता है जो समझ के साथ पढ़ने में मदद करता है।
(एजुकेशन मिरर की इस पोस्ट से गुजरने के लिए आपका शुक्रिया। अब आपकी बारी है, आप इस लेख के बारे में दूसरों के साथ क्या साझा करना चाहेंगे, लिखिए अपनी राय कमेंट बॉक्स में अपने नाम के साथ। शिक्षा से जुड़े कोई अन्य सवाल, सुझाव या लेख आपके पास हों तो जरूर साझा करें। हम उनको एजुकेशन मिरर पर प्रकाशित करेंगे ताकि अन्य शिक्षक साथी भी इससे लाभान्वित हो सकें।)
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आदरणीय महोदय ,
आपका लेख अत्यंत उपयोगी है , इसके लिए धन्यवाद । हमें एक और बात का ध्यान रखना अपेक्षित है कि बच्चों को वर्ण और मात्रा का ज्ञान वर्णों से प्रारम्भ न कर यदि शब्दों से प्रारंभ किया जाय तो उनके लिए अधिक सहज और सुग्राह्य हो जाएगा ।🙏
बहुत ही उपयोगी लेख हैं सर , बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा देने आपका लेख उत्तम हैं ।
हिंदी के बारे में बहुत अच्छे से अपने बताया इसके लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद
बहुत-बहुत शुक्रिया
जैसा कि उपरोक्त के आधार पर बच्चे आसानी से सीखने के साथ लिखने का प्रयास करते हैं| लेकिन बच्चों की तन्मयता को ध्यान में रखते हुए बीच-बीच में सिखायी जा रही मात्रा से सम्बंधित खेल भी करायें| और बीच- बीच में उसी से सम्बंधित इ और ई दोनों शब्दों में दोनों का अन्तर समझाने हेतु दोनों का उपयोग करने से बच्चों में कंठस्थ: आएगी|
बहुत अच्छे से समझाया हैं
धन्यवाद विर्जेश जी
विस्तार से अपनी बात लिखने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया रीता जी। आपका सुझाव बेहद उपयोगी है, ताकि बच्चों के लिए एक संदर्भ उपलब्ध हो सके और वे आसानी से वर्णों और मात्राओं को समझ सके। आप एजुकेशन मिरर के लिए लिखिए आपका स्वागत है। educationmirrors@gmail.com इस पर अपने अनुभव अपने संक्षिप्त परिचय के साथ मेल कर दीजिए, आपके अनुभवों से अन्य शिक्षक साथियों को मदद मिलेगी।
नमस्कार
बच्चे को एक दिन में एक ही वर्ण या मात्रा सिखाने से पूर्ण सहमत हूँ |
परन्तु मेरा अनुभव यह भी कहता है – बच्चे को किसी भी वर्ण या मात्रा से परिचय कराने से पूर्व, उस वर्ण या मात्रा का कम से कम पाँच – पाँच शब्दों को सचित्र दोस्ती करवाया जाय | ऐसा करने से बच्चा सरलता और सहजता से याद तो करेगा ही साथ ही उसका शब्द भंडार भी बढ़ेगा | उदाहरन के लिए – क सिखाने से पहले बच्चों को चित्र के साथ घरेलू वस्तुयों से परिचय करवाएं – कटोरी , कडाही , कलछुल , कद्दू ,कलम , यह सारे शब्द ऐसे हैं जिन्हें बच्चा अपने घर में प्रतिदिन देखता है |
एक और बात महत्वपूर्ण यह है की प्रतिदिन के पढाई को किसी न किसी माध्यम से खेल से जोड़ने का प्रयास करें | ध्यान रहे की आपके बच्चे वर्ण क के साथ – साथ क से पाँच शब्द भी सीख चुके हैं , उन्हीं पाँच शब्दों को खेल में उतरना है | उदाहरन के लिए – कक्षा में बीस बच्चे हैं तो , पाँच – पाँच बच्चों का समूह बनेगा और हर समूह को एक शब्द दिया जायेगा | जैसे – कटोरी वाले समूह बतायेंगे की वो कटोरी में क्या – क्या खाना पसंद करेंगे | इसी तरह हर समूह अपने – अपने शब्द के बारे में बतायेगा |
अब आप समझ सकते हैं की सिर्फ एक वर्ण सिखने में बच्चों के पास कितने शब्दों का ज्ञान भंडार एकत्रित हुआ |
सादर धन्यवाद |
रीता कुमारी धर्मरित
India has more English speakers than Great Britain and most of them are polyglots and yet India is unable to provide equal education regardless the medium of instruction through transcription,transliteration and translation. Most world languages have modified their alphabets and use most modern alphabet in writings. Vedic Sanskrit alphabet have been modified to Devanagari and to simplest Gujanagari(Gujarati) script and yet Hindi is taught in a very printing ink wasting complex script to millions of children in India. Why not adopt a simple script at national level?
अ आ इ ई उ ऊ ऍ ए ऐ ऑ ओ औ अं अं अः………..Devanagari
અ આઇઈઉઊઍ એ ઐ ઑ ઓ ઔ અં અં અઃ……….Gujanagari(Gujarati)
a ā i ī u ū ă e ai ŏ o au an am ah……Roman
a aa i ii u uu ae e ai aw o au an am ah
क ख ग घ च छ ज झ ट ठ ड ढ ण
ક ખ ગ ઘ ચ છ જ ઝ ટ ઠ ડ ઢ ણ
ka kha ga gha ca cha ja jha ṭa ṭha ḍa ḍha ṇa
त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व
ત થ દ ધ ન પ ફ બ ભ મ ય ર લ વ
ta tha da dha na pa pha ba bha ma ya ra la va
श स ष ह ळ क्ष ज्ञ
શ સ ષ હ ળ ક્ષ જ્ઞ
sha sa ṣa ha ḽa kṣa gya
यह सत् प्रतिशत सही है कि मात्रा सिखाते समय पहले एक ही मात्रा का पूर्ण अभ्यास हो अन्यथा बच्चे कन्फ्यूजन के शिकार हो जायेगे।
aapke lekh bahut hee badiya hain.
Maine high school se padai se ab btc kar raha hun mujhe Hindi likhne me problem hoti hai.
मेरा नाम है रोहित बर्मा
गा० सोबन्था मुझे हिन्दी कम लिखना आता है
हिन्दी लिखने का तरीका बताइये
Sahi hai
मेरा नाम संतोष राम है बचपन में मेरे माता पिता की डेथ हो गई इस वजह से मैं पढ़ नहीं पाया अब मैं 25 साल का हो गया हूं मेरे से हिंदी लिखते नहीं बनता कृपया करके मुझे सिखाएं मैं पढ़ना चाहता हूं
कोई नया तरीका बताये
भरत जी, आप बिलकुल सही कह रहे हैं कि बारहखड़ी वाली विधि डिकोडिंग तक ले जाने में किसी बच्चे को मदद करती है। मगर यह धाराप्रवाह पठन में बाधा पहुंचाती है। ऐसी स्थिति में हमें बच्चों को उनके स्तर के अनुरूप कहानी की किताबें पढ़ने और अभ्यास करने का मौका देना चाहिए। इससे बच्चों को धाराप्रवाह पठन में सहयोग मिलता है।
आपकी टिप्पणी के लिए शुक्रिया अरविंद जी। आपको हिंदी आती है। शायद आप लिखने की बात कर रहे हैं। इसे बेहतर करने कर लिए निरंतर पढ़ने और अपने शब्दों में अपनी बात कहने की लगातार कोशिश से सम्भव होगा।
Virjesh ji मे इस विषय में आपसे सहमति रखता हूँ मैने विद्यालय विजिट के दौरान देखा है कि जिन बच्चों को बारहखडी से मात्रा सिखा जाती है वो शब्द पठन के दैरान भी अंगुलियो पर बारहखडी बोलते है और फिर शब्द पढते है।
mujha hindi nahi ati ha to me keya karu
क्या मात्राओं के प्रयोग के नियम हैं, यदि हैं तो क्या नियम हैं ?
बहुत-बहुत शुक्रिया शिवाली।
barah khari to sirf school ke teacher sirf page bharne ke liye hi karate ha teacher bachcho ko asli concept to samjha hi nahin pate ye bat to virjesh singh ji ne sahi khozi hai varno ki pehchan bahut zaruri hai