बच्चे बोले ‘पाबुला’, शिक्षक चौंके ये है क्या?
एक दिन भाषा के कालांश में एक शिक्षक बच्चों को कहानी सुना रहे थे। कहानी का शीर्षक था बनी-ठनी। यह दो तितलियों की कहानी है जो बाज़ार में घूमने जाती हैं। उनको देखकर घड़ियां चलना छोड़ देती हैं।
मिठाइयां अपनी मिठास भूल जाती है। कपड़ों के रंग अपने रंगों पर इतराना भूल जाते हैं। एक लड़की उनके पास आकर पूछती है कि तुम कहाँ से आई हो? तितलियां बगीचे की तरफ इशारा करती हैं। अचानक तीनों बनी, ठनी और लड़कियां किसी जादू की तरह गायब हो जाती हैं।
यह कहानी शुरू होने से पहले शिक्षक ने किताब का पहला पन्ना बच्चों के सामने खोला और सवाल पूछा ये क्या है? सारे बच्चे एक स्वर में बोले, “पाबुला।” शिक्षक बच्चों की बात सुनकर चौंके और दोबारा पूछा कि आपने क्या कहा? बच्चों ने फिर से अपना जवाब दोहराया, “पाबुला।” उन्होंने बच्चों से पूछा कि क्या आप तितली को पाबुला कहते हैं तो बच्चे बोले हाँ। राजस्थान के सिरोही ज़िले में गरासिया भाषा में तितली को पाबुला कहते हैं। बच्चों की पढ़ाई से पहले, आज शिक्षक की पढ़ाई बच्चों ने तितली के लिए एक नया शब्द देकर करवाई।
इसके बाद उनका सवाल था, “ये क्या कर रही हैं?” तो बच्चों ने जवाब दिया, “पाबुला फिरे हैं।” यानी तितलियां उड़ रही हैं। भाषा के कालांश में स्थानीय भाषा की सशक्त मौजूदगी से क्लासरूम का माहौल काफी जीवंत हो जाता है। मगर भाषा के शिक्षक को बच्चों की बात अगर पूरी तरह से समझ में आये तो फिर बात बन जाती है। इसीलिए स्कूल में बहुभाषिकता की वकालत होती है ताकि सवाल का जवाब जानने के बावजूद बच्चे ख़ामोश न रहें क्योंकि उनको जवाब की मानक भाषा नहीं आती।
उम्मीद है कि अब आप भी पाबुला का मतलब समझ गये होंगे। तो पाबुला को फिरने दीजिए यानी उड़ने दीजिए। किसी पोस्ट में फिर से मिलते हैं क्लासरूम से जुड़े अन्य रोचक अनुभव के साथ।
Very nice examples for newest teachers…