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समझने के नज़रिये से हो शिक्षा पर संवाद की पहल

education_mirror-imageआमतौर पर शिक्षा के क्षेत्र में होने वाला कोई भी विमर्श व्यवस्था से शुरू होता है। नीतियों की पड़ताल के दौरान चरमोत्कर्ष पर पहुंचता है। अंततः इस निष्कर्ष के साथ खत्म होता है कि ‘ऐसी परिस्थिति’ में कुछ नहीं हो सकता।

यहां ‘ऐसी परिस्थिति’ का अर्थ उस स्कूल की परिस्थिति से है जिसका संदर्भ लेते हुए पूरे राज्य या पूरे देश की शिक्षा व्यवस्था के बारे में बात की जा रही थी। इसी सिलसिले में एक बात समसामयिक लगती है कि शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों को पढ़ना चाहिए। विभिन्न मुद्दों पर लगातार पढ़ना चाहिए और समय के साथ खुद को अपडेट करना चाहिए।

शिक्षा के क्षेत्र में पढ़ने के लिए बहुत कुछ है। जिन विचारों पर पहले काम हो चुका है उसे समझने की जरूरत है। जैसे भाषा शिक्षण के लिए कोई ख़ास तरीका ही क्यों काम में लिया जा रहा है? कौन सा तरीका बच्चों को समझ में आ रहा है। किस तरीके से बच्चों को सीखने में परेशानी हो रही है। बच्चे सवाल का जवाब दे रहे हैं क्या? वे किसी सवाल का जवाब सोचकर और समझकर दे रहे हैं, या फिर रटकर दे रहे हैं। ऐसे बहुत सारे माइक्रो यानी सूक्ष्म पहलू हैं, जिसके ऊपर ग़ौर करने की जरूरत है।

शिक्षा के क्षेत्र में किसी भी बदलाव की शुरुआत बग़ैर अच्छी तैयारी के संभव नहीं है। अच्छी तैयारी के लिए शोध की जरूरत होती है। ज़मीनी स्तर पर भरोसेमंद आँकड़ों और सर्वेक्षण के माध्यम से सही सूचनाएं और तथ्य जुटाना इसके लिए अत्यंत आवश्यक है। हर एक शब्द जिसका इस्तेमाल किया जा रहा है, उसके मायने क्या हैं? क्या वह शब्द पूरी गंभीरता और सटीकता के साथ परिस्थिति को व्याख्या कर पा रहा है या नहीं। इस बात को भी समझने की जरूरत है।

उदाहरण के लिए शिक्षा में समानता और गुणवत्ता की बात होती है। किसी की व्यक्तिगत व सामाजिक स्थिति के आधार शिक्षा के मिलने वाले अवसरों में भेदभाव न हो तो वह समानता वाली स्थिति कहलाएगी। वहीं गुणवत्ता का अर्थ है कि शिक्षा के परिणाम स्वरूप सभी बच्चे में कौशलों व क्षमताओं का एक न्यून्तम विकास होना चाहिए।

अगर हम अपने आसपास के अनुभवों पर ग़ौर करें तो देखेंगे कि कोई बच्चा सरकारी स्कूल में जा रहा है, कोई निजी स्कूल में जा रहा है। सभी सरकारी स्कूलों में होने वाली पढ़ाई एक जैसी नहीं है। सभी निजी स्कूलों में होने वाली पढ़ाई और फीस में भी अंतर है। इन बातों को आधार मानते हुए कहा जा सकता है कि भारत के विभिन्न राज्यों में स्कूल जाने वाले सभी बच्चों को मिलने वाली शिक्षा समान नहीं है।

गुणवत्ता वाले सवाल पर फिर से वापस लौटते हैं। आठवीं कक्षा में जिन बच्चों का एडमीशन है वे चौथी-पांचवी क्लास की किताब नहीं पढ़ पा रहे हैं। या दूसरी कक्षा में पढ़ने वाला कोई अपने ही क्लास में पढ़ाई जाने वाली हिंदी की किताब नहीं पढ़ पा रहा है तो इसका आशय यही है कि दूसरी कक्षा के अनुरूप उसकी पठन कौशल का न्यून्तम विकास नहीं हुआ। या फिर जो किताब पढ़ाई जा रही है उसका स्तर उस बच्चे की क्लास से ऊपर का है।

उपरोक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि शिक्षा की परिस्थिति कितनी जटिल और बहुआयामी है। छोटे-छोटे उदाहरणों से ज़मीनी वास्तविकताओं की बारीक सी झलक भर मिलती है।

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