स्कूल डायरीः हर बच्चे के पास पानी का डिब्बा क्यों है?
पहली-दूसरी क्लास के बच्चों से मिलने के लिए उनके कमरे में पहुंचा तो देखा कि वहां ढेर सारे डिब्बे रखे हुए हैं। मैंने जिज्ञासावश पूछा तो शिक्षक ने बताया कि बच्चे घर से पानी लेकर आये हैं क्योंकि स्कूल का हैंडपंप अभी कम पानी दे रहा है।
किसी के पास में पानी की बोतल थी तो किसी के पास में किसी अलग तरह का डिब्बा। आज बहुत कम बच्चों ने पानी पीने की छुट्टी मांगी क्योंकि ज्यादातर के पास में पानी के डिब्बे थे। बच्चों का अपने घर से पीने का पानी लेकर आने वाली बात सामूहिक तौर पर मैंने पहली बार देखी।
पानी एक बुनियादी जरूरत है
मार्च के दूसरे सप्ताह में ही नल से कम पानी का आना एक संकेत है कि आने वाले दिनों में पानी की किल्लत बढ़ सकती है। यहां के स्थानीय लोगों का कहना था कि अगर इस बार बारिश नहीं होती तो पूरे इलाक़े में सूखे जैसे हालात होते। लेकिन खैरियत की बात है कि आठ-दस दिनों के भीतर राजस्थान के इस इलाक़े में इतनी बारिश हुई कि नदी-नाले सब चलने लगे। बाँध लबालब भर गये। पीने के पानी की समस्या दूर हो गई। नहरों में पानी आने के कारण कुछ क्षेत्रों में फसल भी अच्छी हुई है। लेकिन पानी की समस्या का पूरी तरह समाधान हो गया है ऐसा नहीं है, इस स्कूल की स्थिति तो यही बताती है।
हालांकि इस क्षेत्र के बहुत से स्कूलों में पानी की अच्छी व्यवस्था है। वहां के प्याऊ से सारे बच्चों को पीने और खाना खाने के बाद बर्तन धोने के लिए टोटी से पानी मिलता है। लेकिन ऐसी स्थिति सारे स्कूलों में नहीं है।
स्कूल कै हैंडपंप का दृश्य
सरकारी स्कूलों में खाना खाने के बाद बर्तन धोने के लिए बच्चों के बीच जो होड़ मचती है वह देखने लायक होती है। इस दौरान बर्तनों के आपस में टकराने की आवाज़ें आती हैं। ऐसा लगता है मानो एक जंग लड़ी जा रही हो बर्तन धोने और पानी पीने के लिए। इस दौरान बच्चों में में सबसे पहले पानी पी लेने और अपना बर्तन धोकर खेलने के लिए जाने को प्रतिस्पर्धा होती है। कुछ बच्चे सीधे नल के मुंह के पास अपना बर्तना टिका देते हैं। बहुत कम बच्चे ऐसे होते हैं जो पानी चलाने के लिए आगे आते हैं।
इस दौरान किसी शिक्षक का वहां खड़ा होना स्थिति को आसान बना सकता है। या फिर पानी की कई टोटियों की व्यवस्था करके आपाधापी वाली स्थिति को रोका जा सकता है।
क्लास का नजारा
बच्चों के पास पानी की बोतलें होने के कारण कई तरह के दृश्य पहली कक्षा में दिखाई दे रहे थे। एक बच्चा बोतल में बने छेद से एक-एक बूंद पानी अपने मुंह में डाल रहा था। एक बच्ची, दूसरी बच्ची की आँख में पानी डालने की फिराक में थी। एक बच्चा बड़े बोतल से पानी पी रहा था। इन बच्चों के लिए पानी पीने के साथ-साथ खेलने की चीज़ भी थी।
इसी दृश्य से मुझे गाँव में सब्जी के लिए आने वाली गाड़ी से गिरे आलूओं से खेलते बच्चों की टोली याद आ गई। वे आलू को गेंद की तरह उछाल रहे थे। उनके लिए आलू सब्जी बनाने की सामग्री बाद में थी, गेंद पहले थी। वे बड़ी ख़ुशी से बड़े-बड़े आलुओं को उछाल रहे थे। शोर मचाकर अपनी ख़ुशी जता रहे थे। उनको देखने वाले बाकी लोग भी बच्चों की इस हरकत पर हँस रहे थे, हर हाल में ख़ुश और मस्त रहने की अदा अपने अंदाज में बहुत कुछ कह रही थी। देखने वाले को ओठों पर एक मुस्कुराहट बनक चमक रही थी।
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