शिक्षा में बदलावः लगातार प्रयास और धैर्य के साथ इंतज़ार की जरूरत
शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव की प्रक्रिया इस ‘स्वीकारोक्ति’ के साथ शुरू होती है कि स्थिति बहुत खराब है, इसमें बदलाव की जरूरत है।
करीब दस महीनों के बाद आज एक शिक्षक ने कहा, “हम आपकी अपेक्षाओं के अनुसार नहीं पढ़ा पा रहे हैं। बच्चे भी नियमित नहीं हैं। हमारी भी छुट्टियां होती रहीं, इसी कारण से बच्चों का स्तर अपेक्षा के अनुरूप नहीं है।
तस्वीर जरूर बदलेगी
यानि कुल मिलाकल साल भर का समय सही बात को मानने में लग गया। उम्मीद है कि इसके बाद तस्वीर बदलेगी। मगर उसके लिए साल भर का इंतज़ार और करना होगा।
इतनी व्यस्त दुनिया में इतना धैर्य किसके पास है? इतनी समझदारी किसके पास है कि ऐसी गंभीर बातों को पूरी गंभीरता के साथ समझ सके।
शिक्षा का क्षेत्र ऐसा ही है। जिसके मन में लगन लग गई. वहां चीज़ों में बदलाव साफ-साफ दिखाई देता है। जहाँ, उदासीनता की बर्फ बहुत गहरी है। वहां एक साल तो सिर्फ इस बर्फ को पिघलाने में चले जाते हैं। काम तो इसके बाद शुरू होता है।
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