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तोत्तो-चान और उसके ‘हेडमास्टर जी’

totto-chan-imageपहली और दूसरी पोस्ट में आपने पढ़ा, दूसरे विश्वयुद्ध में तबाह हो जाने वाले स्कूल तोमोए के माहौल के बारे में। जिसके हेडमास्टर जी कहते थे, “सभी बच्चे स्वभाव से अच्छे होते हैं। उस अच्छे स्वभाव को उभारने, सींचने-संजोने और विकसित करने की जरूरत है।” तीसरी पोस्ट में पढ़िए आगे की कहानी जिसे आपके लिए लिखा है नितेश वर्मा ने। 

तोमोए स्कूल में शिक्षकों का बच्चों से सप्रेम संवाद होता था। बगैर किसी प्रत्यक्ष निर्देश के भी अच्छी बातें स्कूल में सहज ही उभर आती थीं। जैसे- अपने से छोटे या कमजोर को धक्का लगाना अच्छा नहीं है। हुल्लड़ और अव्यवस्था पर स्वयं को ही शर्म आनी चाहिए। कहीं कचरा पड़ा हो तो उसे उठा देना चाहिए। ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहिए जिससे दूसरों को असुविधा हो। तोमोए में एक दूसरे की परेशानियों को समझना और उन्हें सुलझाने में मदद करना आसानी से सीखा जा सकता था। एक लड़के के तोत्तो-चान को चोटी खींचकर गिरा देने पर हेडमास्टर जी ने उसे डाँटा था- ‘लड़कियों से हमेशा अच्छी तरह पेश आना चाहिए, उनका ख्याल रखना चाहिए’।

पहली पोस्टः तोत्तो-चान की कहानी

हेडमास्टर जी किसी बच्चे की शिकायत के लिए कभी माँ-बाप को नहीं बुलाते, सारे मसले अपने बीच ही सुलझा लेते थे। गलती के अहसास पर माफी मांग लेने भर को ही कहते। हेडमास्टर जी ने एक बार शिक्षिका को अकेले में डाँट लगाई थी- ‘आपने ताकाहाशी (बौना बच्चा) को यह क्यों पूछा कि उसके पूँछ है या नहीं? क्या आपको इस बात का अहसास है कि ताकाहाशी को यह पूछने पर कैसा लगा होगा?’ बच्चों के लिए फरिश्ता रहे चौकीदार रयो-चान के युद्ध पर जाने से पहले चाय पार्टी में हेडमास्टर जी ने बच्चों से कहा था- ‘तुम सब खूब मौज करो। रयो-चान से तुम लोगों को जो कुछ भी कहना हो, कहो, बिना झिझके कहो।’

नन्ही तोत्तो-चान

तोमोए में दाखिले के लिए आई तोत्तो-चान से हेडमास्टर जी ने कहा था- ‘अब तुम मुझे अपने बारे में सब कुछ बताओ। कुछ भी जो तुम बताना चाहो, बताओ।’ फिर हेडमास्टर जी ने तोत्तो-चान की एक-एक बात पूरी रुचि से घंटों सुना था। वह हेडमास्टर जी के सामने अपने आपको सुरक्षित महसूस कर रही थी। वह बहुत खुश थी। वह हमेशा-हमेशा के लिए हेडमास्टर जी के ही साथ रहना चाहती थी। हेडमास्टर जी अक्सर कहा करते थे- ‘तोत्तो-चान, तुम सच में एक अच्छी बच्ची हो’। इस एक वाक्य में तोत्तो-चान के लिए बड़ा संबल था। उसे भी हेडमास्टर जी के इस कथन पर पूरा विश्वास था। इस विश्वास ने तोत्तो-चान के जीवन की दिशा बदल दी।

पाबुला, तितली, गरासिया भाषा, बहुभाषिकता, एजुकेशन मिरर, बच्चों की भाषा, घर की भाषा तोत्तो-चान को उसके पिछले स्कूल की पहली कक्षा से निकाल दिया गया था। माँ ने उसे इस बारे में नहीं बताया था। वो नहीं चाहती थी कि उसकी बच्ची के मन में कोई गाँठ पड़े। माँ कभी नहीं कहती- यह करो, वह करो, पर जब भी तोत्तो-चान कुछ भी करना या सीखना चाहती तो वह सवाल-जवाब में नहीं उलझती, खुद पहल करती और व्यवस्था कर देती।

दूसरी पोस्टः कैसा था तोत्तो-चान के स्कूल का माहौल?

तोत्तो-चान के मन में सबके प्रति सहृदयता थी। जानवरों, अपने स्कूल, हेडमास्टर जी, उसकी कक्षा के दूसरे बच्चों, खासकर अपने विकलांग साथियों के प्रति। अपने विकलांग साथी यासुकी-चान को पेड़ पर चढ़ाने के लिए तोत्तो-चान ने अपनी पूरी जान लगा दी थी। उसका अथक प्रयास अंततः सफल हुआ था। असाधारण के प्रति आकर्षण और हर नई चीज को जान लेने की उत्कंठा में वह नई-नई कारस्तानियाँ करती और कठिनाइयों में जा फँसती। लेकिन उसकी इन कारस्तानियों के लिए स्कूल में पूरी छूट थी। माँ भी उसमें बाधा नहीं डालती थी।

तोत्तो-चान (लेखिका) और उसके ‘हेडमास्टर जी’

तोत्तो-चान ने हेडमास्टर जी से वादा किया था- ‘मैं बड़ी होकर इसी स्कूल में पढ़ाऊंगी।’ पर वह अपना वादा पूरा नहीं कर सकी। तोमोए जैसे दूसरे स्कूल को गढ़ने के पहले ही श्री कोबायाशी की मृत्यु हो गई। इसके बदले में लेखिका (बचपन की तोत्तो-चान) ने इस पुस्तक के जरिए दुनिया को श्री कोबायाशी के बारे में बताने की चेष्टा की है। लेखिका अपने बचपन के स्कूल के हेडमास्टर जी के प्रति आश्चर्य, भाव-विह्वलता और गहरी कृतज्ञता से भरी हैं। अपने पहले स्कूल में खिड़की (हाशिए) पर खड़ी उस नन्ही लड़की के लिए आनंद और उल्लास की खिड़की तोमोए में खुली।

लेखिका कहती हैं, ‘बालपन की घटनाएँ जो मेरे लिए महज मधुर स्मृतियाँ थीं, असल में किन्हीं निश्चित उद्देश्यों को लेकर उनके (हेडमास्टर जी) द्वारा सायास सोची-विचारी गई गतिविधियाँ थीं।’ लेखिका का विश्वास है कि यदि तोमोए जैसे ढेरों स्कूल होते तो चारों ओर व्याप्त हिंसा कम होती और इतने बच्चे स्कूलों से पलायन नहीं करते। हेडमास्टर श्री कोबायाशी हमेशा कहते थे- ‘तुम सब एक हो, यह पता है न तुम्हें। तुम कुछ भी करो, इस दुनिया में तुम सब एक साथ हो।’

(इस पोस्ट के लेखक नितेश वर्मा पूर्व पत्रकार हैं और वर्तमान में अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन में कार्यरत हैं।)

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