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शिक्षा विमर्शः बच्चों के सीखने की परवाह किसे है?

सरकारी स्कूलों में पढ़ाई, भारत में प्राथमिक शिक्षा की स्थिति, अर्ली लिट्रेसी की चुनौतियां, एजुकेशन मिरर, एजुकेशन अपडेट

सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की कमी के कारण बच्चों की पढ़ाई पर विपरीत असर पड़ रहा है।

सरकारी स्कूल शिक्षकों की कमी से जूझ रहे हैं। ऐसी स्थिति में पांचवीं और आठवीं की बोर्ड परीक्षाओं के फॉर्म जमा करवाने और भरने के कारण बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है। बाकी की रही-सही कसर बीएलओ वाले काम से पूरी हो जाती है। शिक्षक व्यस्त हैं, मगर पढ़ाई के अलावा अन्य कामों में।

पढ़ाई के अतिरिक्त अन्य कामों में शिक्षक की व्यस्तता वाली स्थिति का असर बच्चों के सीखने पर पड़ रहा है, मगर बच्चों के सीखने की परवाह किसे है? यह सवाल बेहद अहम है। मगर इसका जवाब कौन देगा?

‘आपका बच्चा तो फेल है’

दूसरी क्लास में पढ़ने वाला एक बच्चा अटक-अटक कर किताब पढ़ पाता है। बच्चे की माँ ने जब निजी स्कूल के शिक्षकों से इस बारे में बात की तो उन्होंने कहा कि बच्चा धीरे-धीरे अपनी कक्षा के अनुरूप स्तर हासिल कर लेगा। बस आप घर पर ध्यान दीजिए।

इस बच्चे को रोज स्कूल में मुर्गा बनाया जाता है और उसकी पिटाई होती है। माँ से स्कूल के शिक्षकों ने कहा, “आपका बच्चा तो फेल है।” आखिरी वाली पंक्ति को सुनने के बाद मैंने सुझाव दिया की आप अपने बच्चे का एडमिशन दूसरे स्कूल में करवा दें। ऐसे स्कूल में अपने बच्चे को पढ़ाना ठीक नहीं है जहाँ के शिक्षक खुद की गलती मानने की बजाय बच्चे को ही फेल घोषित कर रहे हैं।

फिनलैंड की सफलता का राज

शिक्षा के क्षेत्र में फिनलैंड की सफलता का राज वहां की संस्कृति में है। वहां शिक्षकों को काम करने की पूरी आज़ादी है। क्लासरूम में अपने पढ़ाने का तरीका वे तय करते हैं। वे ऊपरी आदेशों और राष्ट्रीय मानकों पर पूरी तरह निर्भर होने की बजाय खुद से स्कूल स्तर पर पाठ्यक्रम को बच्चों के अनुरूप ढालने और पढ़ाने का काम करते हैं। सबक यही है कि अपना फिनलैंड बनाना है तो ऐसी संस्कृति का निर्माण करना होगा जो शिक्षकों को महत्व देती हो और सीखने में सहयोग की भावना को महत्व देती हो।

‘औपचारिक’ तरीके से सीखना

औपचारिक तरीके से शिक्षित होने की परंपरा ही अलग तरीके की है। पहले तो जो आप हैं, उसको भूल जाइए। फिर उन लोगों जैसा बनने की कोशिश करिए, जो आदर्श माने जाते हैं। उसके बाद अनुकरण करते हुए, आदेशों का पालन करते हुए, वह बनने की कोशिश करिए, जो आपको बनाया जा रहा है। उससे विमुख होने पर आपको लकीर से भटका हुआ फकीर घोषित कर दिया जाएगा। आपको एक उदाहरण के रूप में स्थापित कर दिया जाएगा कि भटकने का खामियाजा देख लो…।

ब्राजील से एक खबर

नवंबर महीने में ही ब्राजील में एक स्कूली छात्रा ने शिक्षा के बजट में होने वाली कटौती के मुद्दे पर स्पीच दी। यह स्पीच वायरल हो गई। शिक्षा के बजट में होने वाली कटौती को लेकर सैकड़ों स्कूलों का छात्रों ने घेराव किया। छात्रा एना जूलिया ने अपने भाषण की शुरुआत करते हुए कहा, “स्कूल किसके लिए हैं?” सवाल वाजिब है और विरोध भी।

भारत में शिक्षा बजट के बारे में आकार पटेल बीबीसी पर लिखे एक आलेख में कहते हैं, “”बुलेट ट्रेन की जो लागत होगी वह भारत में हर साल शिक्षा पर खर्च होने वाले बजट की रकम से ज़्यादा है. दुनिया में भारत का उन देशों में शुमार है जहां की साक्षरता दर सबसे निचले पायदान पर है. इसके साथ ही हमारे यहां शिक्षा की गुणवत्ता भी बेहद ख़राब है.”

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