एजुकेशन मिररः क्या हैं साल 2016 की प्रमुख उपलब्धियां?
हम चाहते हैं कि उन सभी शिक्षकों से एजुकेशन मिरर का रिश्ता बने जो भारत के विभिन्न हिस्सों में काम करते हैं। दुर्गम परिस्थितियों और विपरीत माहौल में काम करते हैं। उनके काम के बारे में अन्य क्षेत्र में काम करने वाले शिक्षक साथियों को भी पता चले। बाकी राज्यों में क्या हो रहा है? इस बात की जानकारी भी दूसरे राज्यों के शिक्षकों को मिले।
इस दिशा में होने वाले प्रयास धीरे-धीरे रंग ला रहे हैं। एजुकेशन मिरर के पाठकों में राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, सिक्किम, हरियाणा, पंजाम, महाराष्ट्र, दिल्ली, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड के अलावा अन्य राज्यों से भी शिक्षक साथी इसे पढ़ रहे हैं। इसकी पोस्ट नियमित शेयर कर रहे हैं। शिक्षा से जुड़े मुद्दों पर अपने विचार साझा कर रहे हैं। हमारी इस पहल का मकसद भी यही था कि शिक्षा के क्षेत्र में होने वाली ज़मीनी हलचल और सच्चाइयों की झलक ज्यों की त्यों बग़ैर उलटफेर के सीधे-सीधे लोगों के सामने आ सके। इस प्लेटाफॉर्म पर हमने केवल समस्याओं की बात नहीं की है।
सिर्फ समस्याएं नहीं, समाधान भी
हमने आपके सामने समाधान भी रखे हैं। उन चुनौतियों को भी रखा है जिसके समाधान की राह शिक्षा का क्षेत्र पिछले 70 साल से देख रहा है। सरकारी स्कूलों का कोई विकल्प हो ही नहीं सकता है क्योंकि जिन बड़ी संस्थाओं के लिए शिक्षा का क्षेत्र कारोबार है, वे उन लोगों तक पहुंचने की कोशिश भला क्यों करेंगे, जिनके पास उनको देने के लिए फ़ीस के पैसे ही नहीं है। इसलिए इसकी बेहतरी का रिश्ता बेहतर भारत के साथ है। बेहतर भविष्य के साथ है।
कुछ दिन पहले एक पोस्ट प्रकाशित करके एजुकेशन मिरर के माध्यम से इस बात का खण्डन किया गया था कि फिनलैंड में विषय आधारित पढ़ाई की व्यवस्था समाप्त नहीं हुई है। इस सिलसिले में हेलसिंकी विश्वविद्यालय में शिक्षा विभाग की प्रोफ़ेसर हैनेल कैंटेल एजुकेशन मिरर के लिए लिखा, “साल 2016 से नया पाठ्यक्रम लागू किया गया है। पाठ्यक्रम मूल रूप से विषय आधारित ही है। कुछ थीम बेस्ड कोर्सेस भी लागू किए गए हैं।”
एजुकेशन मिरर के प्लेटाफार्म पर नए साथियों के लिखने के भरपूर अवसर हैं, अगर आप शिक्षा के मुद्दे को लेकर फिक्रमंद हैं। इस क्षेत्र में काम करते हैं या नहीं करते, इस बात से कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। आपकी भाषा कैसी है, उसमें व्याकरण और मात्रा की ग़लतियां हैं, इस बात से भी ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि इसी तरह के डर ने तो लोगों को अपनी बात कहने और साझा करने से कई दशकों से रोक रखा है। एक टीम के रूप में हम इस प्रयास को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। जिसमें हर तरह का सहयोग एक विशिष्ट महत्व रखता है।
शिक्षा से जुड़ी रोचक सामग्री
हमारी कोशिश भाषा की सरहदों को भी तोड़ने की है। अगर कोई साथी मराठी में लिखता है, बांग्ला में लिखता है, उड़िया में लिखता है या भोजपुरी में लिखता है तो उसकी बात को भी हम तवज्जो देंगे। उसकी बात को पूरा सम्मान देंगे। संबंधित साथियों से उनके लेख के अनुवाद में मदद लेंगे ताकि हिंदी भाषा पढ़ने वाले साथियों तक भी उनकी बात ज्यों की त्यों पहुंच सके।
एजुकेशन मिरर ने इस साल एक लाख हिट्स का आँकड़ा पार किया है। पोस्ट की संख्या भी 200 के पार पहुंची है। 200वीं पोस्ट को लिखने का श्रेय एजुकेशन मिरर की नियमित लेखिका यशस्वी को जाता है। इसके साथ ही नितेश वर्मा भी आपके लिए निरंतर नए विचारों पर सोच रहे हैं ताकि आपको कुछ नया पढ़ने का अनुभव दे सकें।
200वीं पोस्ट में पढ़िएः आज नु गुलाब कौन है?
ज़मीनी सच्चाइयों का बयान
एक शिक्षक साथी ने कहा कि एजुकेशन मिरर पर प्रकाशित सामग्री में शिक्षकों के बारे में एक व्यापक नज़रिए से बात होती है। इसमें केवल अंधी आलोचना या आँख मूंदकर की जाने वाली तारीफ नहीं है।
एजुकेशन मिरर पर ज़मीनी सच्चाइयों का ज्यों ता त्यों बयान है। शिक्षकों के प्रति सहृदयता का भाव साफ़ नज़र आता है। लेकिन जो चीज़ें ग़लत हैं, उनकी तरफ भी संकेत किया जाता है। आप सभी दोस्तों का सतत सहयोग और प्रोत्साहन के लिए आभार। विभिन्न मुद्दों पर शिक्षा के विमर्श का सिलसिला जारी रहेगा।
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