यथार्थवाद की दृष्टि से शिक्षा के उद्देश्य क्या हैं?
यथार्थवाद को अंग्रेजी में रियलिज़्म कहते हैं। यथार्थवादियों के अनुसार बच्चों की शिक्षा उनकी व्यक्तिगत और सामाजिक जरूरतों के अनुसार होनी चाहिए। ताकि वह बड़ा होकर वह सुखी जीवन व्यतीत कर सके। जीवन के साथ अच्छा सामंजस्य स्थापित कर सके।
उदाहरण के तौर पर आज के दौर में कंप्यूटर और अंग्रेजी भाषा की अच्छी समझ को रोज़गार की संभावनाओं के साथ जोड़कर देखा जाता है तो इसका समावेश शिक्षा में करना यथार्थवाद का ही एक उदाहरण है।
जे एस रॉस के अनुसार, “यथार्थवाद यह मानता है कि जो कुछ हम प्रत्यक्ष में अनुभव करते हैं, उसके पीछे तथा उससे मिलता-जुलता वस्तुओं का एक यथार्थ जगत है।”
वहीं ब्राउन के मुताबिक़, “यथार्थवाद का मुख्य विचार यह है कि सब भौतिक वस्तुएं या वाह्य जगत के पदार्थ वास्तविक हैं और उनका अस्तित्व देखने वाले व्यक्ति न हों तो भी उनका अस्तित्व होगा तथा वह वास्तविक होगा।”
यथार्थवादी शिक्षा की विशेषताएं
- विज्ञान पर आधारित
- बालक की नियन्त्रित स्वतंत्र
- ज्ञानेन्द्रियों के प्रशिक्षण पर जोर
- रटने वाले तरीके और पुस्तकीय ज्ञान का विरोध
- बच्चे के वर्तमान जीवन को महत्व देना
- वैयक्तिक और सामाजिक विकास को बराबर महत्व
- प्रयोगधर्मिता और व्यावहारिक जीवन को महत्व देना
यथार्थवादी शिक्षा के उद्देश्य
वर्तमान दौर की शिक्षा प्रणाली में यथार्थवादी शिक्षा के उद्देश्यों का दबदबा साफ-साफ देखा जा सकता है। निजी विद्यालयों में स्मार्ट क्लासेस के नाम पर कंप्यूटर शिक्षा को छठीं कक्षा के बाद से ही शामिल किया जा रहा है। वहीं दसवीं-बारहवीं के बच्चों को आईसीटी लैब के माध्यम से दूरस्थ शिक्षा के फ़ायदों से रूबरू होने का मौका भारत के विभिन्न हिस्सों में मिल रहा है।
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास
- व्यावसायिक कौशलों व क्षमताओं का विकास करना
- जीवन को सुखी व सामंजस्यपूर्ण बनाना
- मस्तिष्क विकास के शोधों का इस्तेमाल
- भविष्य की जरूरतों का समावेश
- ज्ञानेन्द्रियों का प्रशिक्षण
- पूर्ण और वास्तविक जीवन के लिए तैयार करना
- समस्याओं का समाधान खोजने वाले कौशलों का विकास
- प्राकृतिक व सामाजिक पर्यावरण के प्रति सजग बनाना
- सांस्कृतिक और व्यावसायिक शिक्षा के समन्वय पर बल।
अगली पोस्ट में शिक्षा दर्शन से जुड़े अन्य मुद्दों पर केंद्रित पोस्ट पर लिखने का सिलसिला आगे भी जारी रहेगा।
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