कैसे कह पाओगे कि आजाद हैं हम?
1947 में भगाया था अंग्रेजों को,
फिर भारत को एक नई शुरुआत मिली ।
अवस्था बदली, व्यवस्था बदली,
जीवन बदला, जीने का तरीका भी ।
बड़े गर्व से सीना चौड़ा करके,
बोला कि अब आज़ाद हैं हम ।।
रचा इतिहास इस धरती पर,
दुश्मनों को मार गिराया हमने ।
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा,
लाल किले पर लहराया हमने ।
बड़े गर्व से सीना चौड़ा करके,
बोला कि अब आज़ाद हैं हम ।।
आज 68 साल हो गए,
अपनी इस आज़ादी को ।
फिर भी ना जाने क्यों लगता है,
कि अब भी ना आज़ाद है हम ।
फिर गर्व से सीना चौड़ा करके,
कैसे कहें की आज़ाद हैं हम ??
अब भी है दहेज प्रथा जहां पर,
है नर नारी में भेद भाव ।
कन्या भ्रूण हत्या जहां है होती,
करते ऐसे जहां पाप हैं हम ।
क्या गर्व से सीना चौड़ा करके,
ऐसे कहेंगे कि आज़ाद हैं हम ??
एकता में ही शक्ति है,
अनेकता में है विध्वंश छुपा ।
धर्म जाति पर भेद है होता,
आरक्षण है मुख्य मुद्दा जहां ।
क्या गर्व से सीना चौड़ा करके,
ऐसे कहेंगे कि आज़ाद हैं हम ??
बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ,
घर में एक शौचालय बनवाओ ।
इन नारों की ज़रूरत ना होती,
यदि मानसिकता से होते आजाद हम ।
कहो! क्या गर्व से सीना चौड़ा करके,
कह सकोगे की आज़ाद हैं हम ??
हत्या, बलात्कार, एसिड अटैक की खबरें,
अख़बारों में जहां हर दिन सांस हों लेतीं ।
हर दिन किसी दुराचार का शिकार,
जहां की बहू बेटियां हो बनतीं ।
क्या गर्व से सीना चौड़ा करके,
कह पाएंगे “देखो! आज़ाद हैं हम” ??
यदि अब भी लगता है तुमको,
कि “जी हां! आजाद हैं हम” ।
तो इस पर मेरा बस यही कहना है,
कि पहले अपनी मानसिकता बदलो ।
फिर गर्व से सीना चौड़ा करके,
बोलो कि हां! आज़ाद हैं हम ।।
यदि अब भी अपनी सोच ना बदली,
तो लड़का पैदा करने से भी कतराअोगे तुम ।
पाल पोस कर उसे बड़ा तो कर लोगे,
पर शादी के लिए लड़की कहां से लाओगे तुम ?
फिर गर्व से सीना चौड़ा करके,
कैसे कह पाओगे कि आजाद हैं हम ??
इसलिए फिर से कहती हूं,
नज़रिया खराब है, नज़र नहीं ।
जो नज़रें खराब हो गई,
तो फिर बड़ा पछताओगे तुम ।
फिर गर्व से सीना चौड़ा करके,
कभी ना कह पाओगे कि आज़ाद हैं हम ।।
रोक सको तो रोक लो ख़ुद को,
अभी वक़्त हाथ से निकला नहीं ।
आज़ादी तो मिल गई है लेकिन,
आज़ाद देश अभी हुआ नहीं ।
फिर गर्व से सीना चौड़ा करके
सक हिंदुस्तानी मिलकर कहेंगे,
जी हां! आज़ाद हैं हम” ।।
अरे देखो हम को दुनियावालों ।
देखो! हिंदुस्तान हैं हम ।।
देखो! हिंदुस्तान हैं हम ।।
- देव्यांगी सिंह ।
(यह कविता लखनऊ से एजुकेशन मिरर के लिए देव्यांगी सिंह ने लिखी है। उनका सपना एक लेखक बनने और गायन के क्षेत्र में एक मुकाम हासिल करने का है।
इस कविता में वे लड़कियों और महिलाओं के जीवन से जुड़े जरूरी मुद्दों को सामने रखते हुए 1947 में मिली आज़ादी के बाद की परिस्थितियों पर सवाल खड़ा करती हैं। देव्यांगी की लाइफ फिलॉसफी है कि अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए मेहनत करने में पीछे नहीं रहना है और अपने सपनों को सच करने के लिए हर संभव कोशिश करनी है।)
हमे भी गर्व है अपनी ऐसे दर्शन वाली बेटी पर।
लाजवाब् कविता —बहुत बढ़िया।👌👌👌