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भाषा शिक्षणः हिन्दी पढ़ना सिखाने की प्रमुख चुनौतियां क्या हैं?

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आमतौर पर भाषा कालांश में शिक्षण की शुरूआत अक्षर पहचान से शुरू हो जाती है।

प्राथमिक स्तर पर हिंदी भाषा के शिक्षण में अनेक तरह की चुनौतियां एक शिक्षक के सामने काम करने के दौरान आती है। इस पोस्ट में हम उन चुनौतियों को समझने का प्रयास करेंगे। ताकि ऐसी स्थितियों से सामना होने पर हम उनका समाधान निकालने की दिशा में कुछ प्रयास कर पाएं।

  • भाषा कालांश के शुरूआत में बच्चों के निर्देश न समझ पाने वाली चुनौती एक शिक्षक के सामने होती है। इसका सबसे अहम कारण बच्चे के ‘घर की भाषा’ और ‘स्कूल की भाषा’ में अंतर होता है। समय के साथ शिक्षक बच्चों के साथ बातचीत करके इस स्थिति को सामान्य बनाने का प्रयास करते हैं ताकि भाषा कालांश में बच्चों की भागीदारी बढ़ाई जा सके।
  • हिंदी भाषा में अक्षरों की बनावट के साथ सहज होने में कुछ बच्चों को अपेक्षाकृत ज्यादा समय लगता है। इसलिए अगर कुछ बच्चे किसी अक्षर की मिरर इमेज बना रहे हैं तो इससे परेशान होने की बजाय बच्चों को अक्षर की बनावट के बारे में चरणबद्ध तरीके से बताना चाहिए ताकि वे अक्षरों की बनावट को समझ पाएं और उसे आसानी से लिख पाएं। ऐसा करते समय ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे अक्षरों की ध्वनि और बनावट के बीच में रिश्ते को समझ पाएं। यह जान सकें कि अमुक अक्षर के लिए अमुक ध्वनि का इस्तेमाल होता है।
  • भाषा कालांश में बहुत सारी गतिविधियां एक साथ हो रही होती हैं। जैसे बाल गीत, कविता, कहानी सुनाना, शब्द भण्डार व अक्षर पहचान इत्यादि पर काम। ऐसे में समय की कमी की चुनौती भी एक भाषा शिक्षक के सामने होती है। इसका समाधान करने के लिए शिक्षक साथियों को चाहिए कि वे क्लास में रूल सेटिंग करें ताकि बच्चे जब पढ़ना शुरू करें तो फिर क्लास में बहुत ज्यादा व्यवधान न हो।
  • सबसे आखिरी बात सारे बच्चों की भागीदारी हासिल करने की चुनौती भी प्रमुखता के साथ शिक्षकों के सामने होती है। सारे बच्चों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए शिक्षक साथियों को सारे बच्चों के बारे में व्यक्तिगत रूप से जानना चाहिए। इसके लिए नियमित अंतराल पर होने वाले आकलन से बच्चों को मदद मिल सकती है।

अगली पोस्ट में भाषा शिक्षण से जुड़े अन्य मुद्दों पर बात करते हैं। इन बिंदुओं से जुड़ी विस्तृत जानकारी के लिए एजुकेशन मिरर पर प्रकाशित अन्य पोस्ट भी पढ़ सकते हैं।

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