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काशी हिंदू विश्वविद्यालय में छात्राओं के आंदोलन के दूरगामी परिणाम क्या होंगे?

bhu-protestबनारस के काशी हिंदू विश्वविद्यालयों में छात्रों का छेड़खानी और सुरक्षा की माँग के लिए आंदोलन शुरू करना एक महत्वपूर्ण बदलाव वाली घटना है। इस घटना ने विश्वविद्यालय की प्रशासन की लापरवाही और छात्राओं की सरक्षा के प्रति उदासीन रवैये को बेनकाब किया है।

बनारस के स्थानीय मीडिया ने शुरूआत में इस घटना को दबाने का भरपूर प्रयास किया। मगर छात्राओं के तेज़ होते आंदोलन और सोशल मीडिया पर मिलते जनसमर्थन के कारण अख़बारों ने इस घटना को रिपोर्ट करना शुरू किया। मगर इस रिपोर्टिंग का झुकाव विश्वविद्यालय प्रशासन के पक्ष में और छात्राओं के खिलाफ ही नज़र आया।

इस आंदोलन के बारे में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के ही एक पूर्व छात्र ने लिखा, “इस संघर्ष में हम बीएचयू की लड़कियों और वहाँ के छात्रों के संघर्ष के साथ हैं। शुक्रिया एक जरूरी सवाल को फिर से प्रासंगिक बनाने के लिए। उन चेहरों से नक़ाब नोचने के लिए जो आपके पक्ष में होने का दावा करते हैं, मगर सच में आपकी जड़ें काटने की कोशिश कर रहे हैं। आप सभी के दर्द की पीड़ा हमें भी है।”

सोशल मीडिया से सुर्खियों में आया छात्राओं का आंदोलन

bhu-support-3छात्राओं के स्वतःस्फूर्त आंदोलन को राजनीति से प्रेरित बताया जाने लगा और महामना की मूर्ति पर स्याही फेंकने की झूठी अफवाह उड़ाई गयी। इसका उद्देश्य छात्राओं के आंदोलन को कमज़ोर करना और उसे दूसरी दिशा में मोड़ना था। इसके बाद छात्राओं ने काशी हिंदी विश्वविद्यालय के सिंह द्वार पर धरना शुरू कर दिया। छात्राओं के शांतिपूर्ण आंदोलन का दमन करने के लिए हिंसा का सहारा लिया गया। बीएचयू कैंपस में पुलिस और पीएसी के जवानों ने छात्राओं को मारा-पीटा। इससे लोगों में काफी नाराजगी  मीडिया के लोगों को भी निशाना बनाया गया। लेकिन इस घटना के पल-पल की जानकारी वहां के स्थानीय पत्रकारों द्वारा विस्तार से दी गई। इससे लोगों को घटना की सच्चाई के बारे में पता चला।

‘जब तर्क काम नहीं आते, अफवाह और कालिख काम आती है’

bhu-support-2जब तर्क काम नहीं आते तो ‘अफ़वाह’ और ‘कालिख’ काम आती है! इंसानियत पर ‘कालिख पोतना’ किसी मूर्ति पर कालिख पोतने से ज्यादा शर्मनाक है। इस आंदोलन के बाद वीसी क्या करेंगे? अपने ही छात्रों को विलेन बनाएंगे और उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज़ कराएंगे!

छात्र-छात्राओं को ‘अपराधी’ और ‘अराजक तत्व’ बताने में जिस शिक्षक को कोई परहेज नहीं है, चाहे वह वीसी के पद पर ही क्यों न हों,गुरु-शिष्य परंपरा का सहज सम्मान पाने का हक़दार नहीं है। क्योंकि वह इस रिश्ते की सहजता और परस्पर संवाद की संस्कृति को दांव पर लगा रहा है। और अपने पद का दुरुपयोग करते हुए ‘विद्यार्थियों के भविष्य’ को दांव पर लगाकर अपने ‘अच्छे भविष्य’ की राजनीति खेल रहा है।इसके उदाहरण कई हैं वर्तमान में बीएचयू से गिन सकते हैं। इस सूची में कई नाम स्वतः शामिल हो जाएंगे।

मालवीय जी तो माली का भी हाल पूछते थे और वीसी साहब?

शिक्षा को मुक्ति का पर्याय मानने वाली गलियों से आवाज़ आ रही है, जो गुलाम न बना सके वह शिक्षा कैसी? विश्वविद्यालय में दमन का शिकार होना छात्र-छात्राओं की नियति सा हो गया है। हे व्यवस्था! तुम्हें लाठी भाँजने और छात्राओं पर हिंसा करने के सिवा आता क्या है? बीएचयू में जो कुछ हो रहा है वह शर्मनाक है। छात्राओं पर लाठी चलाने वालों को शर्म आनी चाहिए।महामना मदन मोहन मालवीय के दौर में काम करने वाले बीएचयू के प्रोफेसर से सुना है कि मालवीय जी विश्वविद्यालय के माली तक का हाल लिया करते थे, ये कैसे कुलपति हैं जो छात्राओं से बात करने के लिए उनके बीच नही जा सकते। छात्राओं को सुरक्षा का भरोसा नहीं दे सकते।सुरक्षा तो दूर की बात है, अब तो उनके खिलाफ ही लाठी चार्ज करवा रहे हैं।

देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों से मिल रहा है छात्राओं को समर्थन

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सोशल मीडिया पर यह तस्वीर गोरखुर के स्थानीय पत्रकार मनोज सिंह ने शेयर की।

इस आंदोलन के दीर्घकालीन असर होंगे। छात्राओं की सुरक्षा का मुद्दा महत्वपूर्ण बनेगा। छात्राओं की बात सुनी जायेगी।

उनके खिलाफ होने वाले भेदभाव का मुद्दा प्रमुखता के साथ प्रदेश और देश के अन्य विश्वविद्यालयों में उठेगा।

छात्राओं के इस आंदोलन के पक्ष में गोरखपुर विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय, जेएनयू और दिल्ली में उत्तर प्रदेश भवन और जंतर-मंतर पर तमाम पूर्व छात्राओं व छात्रों ने अपना विरोध जताया और काशी हिंदू विश्वविद्यालय की छात्राओं के प्रति अपना समर्थन जाहिर किया।

छात्राओं की माँग वाला पत्र, जो चर्चा में है

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छात्राओं के आंदोलन के दूरगामी परिणाम

सबने छात्राओं के खिलाफ होने पुलिसिया हिंसा और हॉस्टल में घुसकर छात्राओं को मारने की कड़ी निंदा की है। पुलिस के साथ आमना-सामना होने वाली स्थिति से उनका डर दूर हुआ है। वीसी के बर्ताव से छात्राओं के बीच एक संदेश गया है कि उनको अपनी लड़ाई खुद लड़नी है। इसे भटकाने की कोशिश बार-बार होती रहेगी, पर ऐसे मुद्दे पर सजगता बेहद जरूरी है।

आने वाले दिनों में अज्ञात छात्रों के खिलाफ दर्ज़ एफआईआर का मुद्दा भी चर्चा में होगा। देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में छात्र-छात्राओं के खिलाफ होने वाले फर्जी मुकदमों और मामलों को वापस लिया जाना चाहिए। मीडिया में वीसी के बयानों पल छात्राओं का कहना था कि मीडिया से बात करने के लिए उनके पास समय है, पर विश्वविद्यालय का अभिभावक होने के बावजूद वे छात्राओं से मिलने के लिए नहीं आये, अगर वे छात्राओं से मिलने के लिए समय से आ जाते थे, स्थिति को बिगड़ने से रोका जा सकता था।

 

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