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चर्चाः आप कैसे पढ़ते हैं?

आपके पढ़ने का तरीका क्या है? इस पोस्ट को पढ़ते हुए इस सवाल के बारे में सोचिए और साझा करिए अपना अनुभव भी हमारे साथ। बच्चों में पढ़ने की ललक पैदा करने के लिए हमारा भी उनके साथ-साथ किताब लेकर बैठकर पढ़ना और पढ़ने के लिए उनको समय उपलब्ध कराना बेहद जरूरी है। ताकि शब्दों में दुनिया से परिचित होने और उसके साथ एक रिश्ता विकसित करने का सफर आगे बढ़ सके।

इस सवाल को जब शिक्षकों के एक समूह में रखा गया तो बहुत से रोचक जवाबों के आने का सिलसिला शुरू हो गया। पहली प्रतिक्रिया तो बेहद गंभीर थी। एक शिक्षक साथी ने कहा कि गंभीर होकर पढ़ते हैं। इसके बाद की प्रतिक्रियाएं थीं, मस्ती से पढ़ते हैं। मन में पढ़ते हैं। कहानी को हाव-भाव के साथ पढ़ते हैं। एकांत में और मन लगाकर पढ़ते हैं। अनमने ढंग से भी पढ़ा जाता है। रुचि के साथ पढ़ते हैं। जरूरत के अनुसार पढ़ते हैं। शब्दों को समझकर पढ़ते हैं। अर्थ को समझने के उद्देश्य को ध्यान में रखकर पढ़ते हैं।

पढ़ने की आदत का विकास करने के लिए लाइब्रेरी में शिक्षकों का बच्चों को पढ़कर कहानी सुनाना काफी मदद करता है।

दरअसल इस सवाल को पूछने का उद्देश्य था कि बच्चों के क्लासरूम में पढ़ने के लिए कौन-कौन से तरीके काम में लिए जाते हैं जैसे जोड़ों में पठन, सह-पठन, स्वतंत्र पठन इत्यादि। किसी भी बच्चे के लिए शिक्षक के मन में सपना होता है कि बच्चा स्वतंत्र पाठक बने और किसी सामग्री को स्वयं से पढ़कर समझ सके। इस तरह की गतिविधियों के अलग-अलग फायदे हैं और ऐसी गतिविधियों को करने का तरीका और उद्देश्य भी अलग-अलग होता है। जैसे सह-पठन का उद्देश्य होता है कि बच्चे में पढ़ने का आत्मविश्वास जागृत हो और उनमें यह भरोसा बने कि वे भी किसी सामग्री को पढ़ सकते हैं। वहीं जोड़ों में पठन का उद्देश्य होता है कि बच्चे एक-दूसरे की मदद करें और पढ़ना सीखने व पढ़ने की यात्रा में सहजता पाने की दिशा में आगे बढ़ सकें। आपस में बातचीत के माध्यम से अर्थ का निर्माण कर सकें और लिखी हुई सामग्री को अपने परिवेश से भी जोड़ सकें।

स्वतंत्र पठन का उद्देश्य है कि बच्चा खुद की पसंद की सामग्री का चुनाव कर सके और पढ़ने का आनंद ले सके। आपको यह पोस्ट कैसी लगी। इस संदर्भ में आपके क्या अनुभव हैं, कमेंट बॉक्स में टिप्पणी लिखकर साझा करिए हमारे साथ।

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