लेखः कक्षा-कक्ष की गतिविधियां, शिक्षा के उद्देश्य और पुस्तकालय
शिक्षा के व्यापक उद्देश्यों का भाषा शिक्षण व पुस्तकालय से क्या रिश्ता है? जानिए इस लेख में।
इस लेख को लिखते समय मैं स्कूल लाइब्रेरी, साक्षरता और शिक्षा के उद्देश्य के बीच के संबंधों को समझने की कोशिश कर रहा हूँ। मैं इस लेख में इस बात को भी रेखांकित करने की कोशिश करुंगा कि कैसे शिक्षक का व्यवहार (यहाँ मेरा तात्पर्य पठन गतिविधियों जैसे रीड अलाउड, साझा पठन और कहानी सुनाने से है) शिक्षा के उद्देश्यों से निर्देशित होना चाहिए।
उद्देश्य हमें भविष्य को देख पाने की दृष्टि और दिशा निर्देश देते हैं कि किसी गतिविधि को वर्तमान में कैसे करना है। उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए काम करना किसी भी व्यक्ति को बुद्धिमत्तापूर्ण और सचेतन तरीके से प्रयास करने में मदद करता रहता है। उद्देश्य के पीछे हमेशा एक सुचिंतित विचार होता है इसलिए उनमें सार्थकता और संगति बनी रहती है।
शिक्षा के उद्देश्य, भाषा शिक्षण और पुस्तकालय
सिद्धांत तर्क देते हैं और गतिविधि करने के पीछे की वज़ह क्या है, उसको भी हमारे सामने रखते हैं। शिक्षा के उद्देश्य काफी व्यापक हैं और यह भाषा शिक्षण के उद्देश्यों के भी पार जाते हैं। इस सदंर्भ में विद्यालय में लाइब्रेरी की मौजदूगी भाषा शिक्षण के उद्देश्यों को पूरा करता है और अंततः शिक्षा के उद्देश्यों को पूरा करने में सहायक सिद्धत होता है। भारतीय संदर्भ में शिक्षा के उद्देश्यों को विभिन्न नीतिगत दस्तावेज़ों में जैसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 और राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 में स्पष्ट रूप से दर्ज़ किया गया है जो भारत के संवैधानिक विज़न से निर्देशित होता है।
जिसके तहत भारत को एक धर्मनिरपेक्ष, समता आधारित, बहुलवादी समाज बनाने का लक्ष्य रखा गया है जो सामाजिक न्याय और समानता के मूल्यों पर आधारित हो। एनसीएफ-2005 में शिक्षा के कुछ व्यापक उद्देश्यों की पहचान की गई है। इसमें विचार और कार्य की स्वतंत्रता को भी शामिल किया गया है जो किसी व्यक्ति को निर्णय लेने में सक्षम बनाता है और उस निर्णय को तार्किक आधार देता है। इसके साथ ही दूसरों की बेहतरी व भावनाओं का ख्याल रखना सिखाता है और नई परिस्थितियों में लचीले और रचनात्मक तरीके से जवाबदेही की प्रतिबद्धता और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में भागीदारी के लिए माध्यम से देश की आर्थिक प्रगति और सामाजिक बदलाव के लिए योगदान देने को संभव बनाता है।
भाषा शिक्षण के उद्देश्य और पुस्तकालय
यह बात काफी स्पष्ट है कि इन लक्ष्यों को केवल शिक्षण और अधिगम की प्रक्रिया से ही संभव बनाया जा सकता है। बच्चे इस दृष्टिकोण, कौशल व ज्ञान को केवल सीखने की प्रकिया में हासिल कर सकते हैं। शिक्षा के उद्देश्य भाषा सीखने के उद्देश्यों को भी खुद में शामिल करता है। एनसीएफ-2005 भाषा शिक्षा के उद्देश्यों को सुनकर समझ पाने की क्षमता विकसित करने और समझ के साथ किसी लिखित सामग्री को समझ के साथ पढ़ पाने, केवल डिकोडिंग नहीं को शामिल किया गया है। इसके साथ ही साथ सहज अभिव्यक्ति और संज्ञानात्मक रूप से भाषा के उन्नत कौशलों जैसे अनुमान, कल्पना, समानुभूति, तर्क, तुलना और विश्लेषण को भाषा सीखने के उद्देश्यों में शामिल किया गया है।
हम एक दृश्य की कल्पना करें, मान लीजिए एक शिक्षक तितली, पंखो की किताब या कचकच किताब कक्षा-कक्ष में पढ़ रहे हैं, रीड अलाउड के सत्र के दौरान शिक्षक बच्चों के पूर्व-ज्ञान को सक्रिय बनाकर, पृष्ठभूमि के बारे में बताकर एक सार्थक चर्चा का अवसर पैदा करेंगे, कहानी की किताबों में बने चित्रों को दिखाना और बीच में रुककर यह सवाल पूछना कि आगे की कहानी क्या होगी? इन प्रयासों से बच्चों में जिज्ञासा का विकास होगा।
बच्चों को कहानी की व्याख्या अपने शब्दों में करने के लिए कहकर शिक्षक चर्चा को एक दिशा देते हैं। किसी एक समूह के अलग-अलग सदस्यों और अलग-अलग समूहों की तरफ से होने वाली अलग-अलग व्याख्या बच्चों को इस विचार से परिचित होने का अवसर देती हैं कि तितली, पंखों की किताब और कचकच कहानी पर लोगों की प्रतिक्रिया, राय और विचार अलग-अलग हो सकते हैं।
बच्चों को पुस्तकालय में एक अच्छा माहौल कैसे दें?
जब बच्चे किसी कहानी को अपने जीवन के अनुभवों से जोड़कर देखेंगे तो वे किताब की लिखित सामग्री, पृष्ठभूमि में बने चित्र, अपने खुद के चिंतन के माध्यम से कहानी के पात्र और केंद्रीय विषयवस्तु (थीम) को अलग-अलग तरीके से समझने की क्षमता विकसित कर सकेंगे। यहां एक शिक्षक और बच्चे के बीच होने वाली बातचीत पढ़िए:
शिक्षकः इस किताब में क्या है, इस बारे में अपनी राय बताएं? (कचकच किताब का मुख्यपृष्ठ विद्यार्थियों को दिखाते हुए)
बच्चा 1 – यह कहानी एक खरगोश की है जो गाजर उगाता है
बच्चा 2 – खरगोश एक किसान है और खेत में काम कर रहा है
बच्चा 3 – खरगोश जंगल में कुछ खाने की चीज़ खोजने के लिए घूम रहा है
(यहाँ हर बच्चे के अपने विचार हैं और बच्चों के किन्हीं दो जवाबों में कोई समानता नहीं है, बच्चे कल्पना कर रहे हैं और खरगोश से जुड़े अपने पूर्व अनुभवों के आधार पर अनुमान लगा रहे हैं अगर उनको ऐसा कोई अनुभव है। ख़ास बात है कि शिक्षक की तरफ से किसी भी जवाब को सही या गलत कहकर चिन्हित नहीं किया जा रहा है।
बच्चों से होने की वाली चर्चा का उदाहरण
शिक्षकः अगर आपको अचानक से कोई खरगोश मिल जाए तो आप क्या करेंगे?
बच्चा 1 – मैं खरगोश को घर ले आऊंगा और उसे अपने साथ रखूंगा
बच्चा 2 – मैं उसे पकड़ लूँगा और उसका माँस पकाकर खा जाऊंगा
बच्चा 3 – मैं उसकी देखभाल करूंगा और उसे खाने के लिए दूंगा
(यहाँ बच्चों के जवाब उस परिवेश पर आधारित हैं जिसमें वे रहते हैं। एक बच्चा जो खरगोश को खाने की बात कर रहा है वह अपने खानपान की आदतों के बारे में बता रहा है, वहीं दूसरा बच्चा जो कह रहा है कि वह उसे घर पर रखेगा और खाने के लिए भोजन देगा उसके घर में खानपान के तौर-तरीके अलग हो सकते हैं। बच्चों के समूह में से आने वाली अलग-अलग जवाब बच्चों को एक विचार को समझने में मदद करते हैं कि लोगों की आदतें, प्रतिक्रिया, राय और कहानी को लेकर विचार अलग-अलग हो सकते हैं।)
बच्चों को मिले अपने विचारों की अभिव्यक्ति का अवसर
शिक्षक – अगर आप खरगोश की माँ की जगह होते तो क्या करते?
पहला बच्चा – मैं कचरू खरगोश को पीटूंगा और सारे फल व सब्जी उससे छीन लूंगा
दूसरा बच्चा – मैं कचरू खरगोश के साथ फूलगोभी बाँटकर खाऊंगा
(बच्चे इस कहानी से खुद को लिखित सामग्री, किताब के चित्रांकन और कहानी के पात्रों के बारे में खुद की तरफ से अभिव्यक्ति होने वाले विचारों के जरिये जोड़ पाएंगे। अन्य तरीकों से भी कहानी से इस जुड़ाव को अभिव्यक्ति होने का अवसर मिल सकता है।)
भाषा शिक्षण के उद्देश्यों को हासिल करने में मदद करती है लाइब्रेरी
उपर्युक्त संदर्भ में किताब के बारे में होने वाली सार्थक चर्चा बच्चों को भाषा शिक्षा के उद्देश्यों को हासिल करने और उससे संबंधित क्षमताओं जैसे सुनकर समझ पाना, समझ के साथ पढ़ पाने की क्षमता का विकास और यह केवल लिखित सामग्री का उच्चारण कर पाना (डिकोडिंग) कर पाना भर नहीं होगा। इसके साथ ही साथ बच्चों में मौखिक भाषा की अभिव्यक्ति वाली क्षमता का विकास होगा और संज्ञानात्मक रूप से उच्च माने जाने वाले भाषायी कौशलों जैसे अनुमान, कल्पना, समानुभूति, तर्क, तुलना और विश्लेषण की क्षमता का भी विकास करेंगे।
अंततः यही बात शिक्षा के उद्देश्यों जैसे विचार और कार्य की आत्मनिर्भरता हासिल करने की दिशा में मदद करेगी, जो एक व्यक्ति को निर्णय लेने और तार्कित आधारों पर उसे सही साबित करने, अन्य लोगों की बेहतरी के प्रति भी संवेदनशील होने और दूसरे के विचारों को सुनकर उनकी भावनाओं व विचारों को समझ पाने और तार्किक तरीके से उसका जवाब देने, नई परिस्थितियों का लचीले और रचनात्मक ढंग से जवाब देने के लिए खुद को तैयार कर सकेंगे।
स्कूली शिक्षा में पुस्तकालय की भूमिका
स्कूली शिक्षा में पुस्तकालय की भूमिका को विभिन्न दस्तावेज़ों जैसे विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग-1948, माध्यमिक शिक्षा आयोग-मुदालियर आयोग-1952, कोठरी आयोग-1968, राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 1968, राष्ट्रीय शिक्षा नीति-1986, एनसीएफ़-2005 में प्रमुखता के साथ शामिल किया गया है। एनसीएफ़-2005 में स्कूल लाइब्रेरी की कल्पना एक ऐसे बौद्धिक स्पेस के रूप में की गई है जहाँ शिक्षक, बच्चे और समुदाय के सदस्य अपने ज्ञान को समृद्ध करने और कल्पना को उन्नत बनाने की अपेक्षा रख सकते हैं।
लाइब्रेरी एक ऐसी जगह होगी जहाँ बच्चे अपने पढ़ने की आदत का विकास कर सकते हैं और इस आदत को काफी शुरुआत से ही उन्नत बना सकते हैं। जहाँ विद्यालय स्टाफ गणित, भूगोल, विज्ञान विभिन्न किताबों का संदर्भ के रूप में इस्तेमाल करने का अवसर हासिल कर सकेंगे और यह सभी शिक्षकों के लिए सहज ही उपलब्ध होगा न कि केवल भाषा शिक्षक के लिए। इसमें इस संभावना को भी जगह दी गई है कि एक शिक्षक पुस्तकालय के संसाधनों का इस्तेमाल करके बच्चों के लिए कहानियां पढ़ेंगे और उसके बारे में चर्चा शुरू करेंगे और उसे आगे बढाएंगे।
संदर्भः
- गिजूभाई बधेका, दिवास्पन- एक शिक्षक के प्रयोग – एनबीटी दिल्ली
- जीवन्ती बिष्ट व अन्य – पंखों की किताब, रूम टू रीड इंडिया, नई दिल्ली
- जॉन डिवी, डेमोक्रेसी एण्ड एजुकेशन – एन इंट्रोडकस्शन टू द फिलॉसफी ऑफ एजुकेशन
- कृष्ण कुमार, पढ़ने की संस्कृति की जरूरत, उदयपुर में दिया गया उद्बोधन, 2007
- मेल्विन और गिल्डा बर्जर, तितलियां, स्कॉलिस्टिक, नई दिल्ली
- राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा-2005, एनसीईआरटी, अध्याय 4 – विद्यालय और कक्षा का वातावरण, पृष्ठ संख्या, 91, एनसीईआरटी, नई दिल्ली
- भारतीय भाषाओं का शिक्षण, राष्ट्रीय फोकस समूह का आधार पत्र, एनसीईआरटी, नई दिल्ली
- पढ़े भारत, बढ़े भारत – अर्ली रीडिंग एण्ड राइटिंग विथ कांप्रिहेंशन एण्ड अर्ली मैथमेटिक्स प्रोग्राम, मानव संसाधव विकास मंत्रालय की स्कूली शिक्षा विभाग
- मुदालियक आयोग की रिपोर्ट- 1952, भारत सरकार, सातवां अध्याय (डॉयनमिक मेथड्स ऑफ टीचिंग) पृष्ठ संख्या 89-94
- रोहित धनकर – फ्रॉम क्लासरूम टू एम्स
- संगीता गुप्ता – कच कच, चिल्ड्रेन बुक ट्रस्ट, नई दिल्ली
(लेखक गजेन्द्र राउत शिक्षा के क्षेत्र में पिछले 14 सालों से काम कर रहे हैं। ‘जिज्ञासा इंस्टीट्यूट ऑफ लर्निंग एण्ड डेवेलपमेंट’ जो महाराष्ट्र के अमरावती जिले में स्थित है, उसके संस्थापक हैं। एजुकेशन मिरर की ‘कोर टीम’ का हिस्सा हैं। आपने दिगंतर, रूम टू रीड, टाटा ट्रस्ट्स के पराग इनीशिएटिव (प्रोग्राम मैनेजर लाइब्रेरीज़) जैसी प्रतिष्ठित संस्थाओं में काम किया है। इसके साथ ही साथ राजस्थान और छत्तीसगढ़ के सरकारी स्कूलों के लिए गणित विषय की पाठ्यपुस्तकों को लिखने में भी योगदान दिया है। लंदन यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूटऑफ एजुकेशन से एमए (करिकुलम, पेडागॉडी एण्ड असेसमेंट) किया है। इस लेख को पढ़िए और अपने सुझाव व विचारों को टिप्पणी के रूप में जरूर लिखें।)
बहुत खूब सर
भाषा शिक्षण और पुस्तकालय विभिन्न कौशलों को बढ़ाते हैं साथ ही साथ विचार को प्रभावित करते हैं और विचार कर्म को ।
सबसे महत्वपूर्ण बात जीवन जीने की कला सिखाते हैं।
Dear sir
Thank you so much for a useful article. It’s very clearly mentioned about the aims of language education and school library important. How is the library use for developing the children languag the reading writing skill. It’s very important information.
चाहे कोई विद्यार्थी हो या कोई कारोबारी, चाहे देश चलाना हो या दुनिया के अन्य सभी काम, जब हम बहुत ज्यादा लक्ष्य-केन्द्रित हो जाते हैं तो बस अंतीम नतीजा महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि हजारों सालों से यह धरती जिज्ञासुओं व साधकों की रही है।
अभी तक हम लोग सिर्फ बच्चों को शिक्षित करने के बारे में सोचते रहे हैं। हमें अपनी शिक्षा प्रणाली को इस मौलिकता के साथ तैयार करना होगा जो हमारे हिसाब और जरूरतों के मुताबिक हो।
लाइब्रेरी के विस्तृत स्वरूप का जो जिक्र किया गया है इस लेख में, वह अध्यापकों की क्रियाशीलता पर निर्भर करते हैं। मुझे स्मरण है कि हमारा परिवेश में आदि मानव और विलुप्त जानवरों से सम्बंधित पाठ है, कक्षा5 में, इसे पढ़ाने में मैंने कहानी विधा का सहारा लिया और तभी मुझे लाइब्रेरी में एक ऐसी ही पुस्तक मिल गयी।अब तो उसे भी पढ़ा गया।
जो पुख्ता तैयारी हुई बच्चों की उस पाठ की, कि मजा आ गया।
फिर डाइनासोर पर भी एक किताब मिली।
उसे भी पढ़ा गया।तो परत दर परत बहुत सी बातें सामने आईं।और जो जुड़ाव हुआ उस पाठ का की यदि इस तरीके को अपनाया जाए तो पढ़ाना कठिन न होकर बस कहानी कहना ही हो जाए।
Nice article
Very good gaju 😄
Thank you sir, nice article. I read some educational article .It’s very helpful for me to understand language teaching and library.
बहोत ही उम्दा आर्टिकल।
पुस्तकालय स्कूल के फेफड़े होते है पर दुख की बात है सरकारी स्कूल में पुस्तकालय को ना शिक्षा संस्थानों ने संजीदगी से लिया है ना ही सरकार ने।
बहोत उपयुक्त लेख. बहोत अच्छी जानकारी प्रस्तुत की ही गजेंद्रजी ने. गिजुभाईजी की सुंदर पुस्तक दिवास्वप्न मैने पढी है. यह उपक्रम सच में सराहनीय है. अभिनंदन.