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शिक्षक प्रोत्साहन सिरीजः ‘लॉकडाउन में भी मिल रही है शिक्षकों की प्रेरणा, वायरस कोई बाधा नहीं’

रिया चंद नानकमत्ता पब्लिक स्कूल में (उ.सि.नगर) दसवीं कक्षा की छात्रा हैं। रिया जश्न-ए-बचपन रचनात्मक ह्वाट्सऐप समूह से भी जुड़ी हुई हैं। इनको जब अपने साथी से पता चला कि ‘एजुकेशन मिरर डॉट ओआरजी’ ऐसे शिक्षकों की कहानियाँ आमंत्रित कर रहा है जिन्होंने कभी हमें प्रेरित किया हो। तो इन्होंने भी अपने कुछ शिक्षकों की कहानी हमसे साझा की जिनसे वे अक्सर प्रेरित होती हैं। आगे की कहानी आप रिया के शब्दों में पढ़िए।

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बच्चों की बाल पत्रिका ‘द एक्सप्लोरर’ के विमोचन के मौके पर छात्राएं और स्टाफ के साथ अन्य साथी।

जब भी शिक्षा और शिक्षकों की बात आती है तो ख़ुद को बड़ा खुशनसीब पाती हूँ कि मैं शिक्षा प्राप्त करने स्कूल जा सकती हूँ और मेरे पास इतने काबिल शिक्षक हैं। मेरे स्कूल में ऐसे-ऐसे शिक्षक हैं जो हमेशा से ही मेरी प्रेरणा की वजह रहे हैं। सभी शिक्षकों के अंदर अपने छात्र-छात्राओं को कुछ अनोखा और बेहतर पढ़ाने व सिखाने की ललक है। बच्चों में कम हो रही रचनात्मकता को बचाए रखने के लिए, हमारे सभी शिक्षक कुछ न कुछ नया करते ही रहते हैं। चाहे किताबें पढ़ने के लिए प्रेरित करना हो, पेपर में पाठ्यक्रम के अलावा कुछ अन्य प्रश्न देना हो या फ़िर कुछ नया सीखने का अवसर देना, हमारा स्कूल इनमें कभी पीछे नहीं हटा है। हमारा विद्यालय एक परिवार के रूप में शिक्षा के तमाम सवालों को हल करने में जुटा है। वही सवाल जो हमारी शिक्षा प्रणाली की ख़ामियों पर किए जाने चाहिए और उस पर सुधार के नाकाम प्रयासों पर भी।

सीखना सिर्फ पाठ्यक्रम तक सीमित नहीं

हमारे तमाम शिक्षकों का अपने छात्र-छात्राओं को पाठ्यक्रम पढ़ाना ही मात्र लक्ष्य नहीं है। हमारे शिक्षक और बतौर उनके शिक्षार्थी, हम बस इतने में ही खुश होने वालों में से नहीं हैं। चाहे अशोक सर का Poets और poetries के बारे में विस्तार से समझाना हो, विजय सर का हिंदी में नई-नई चीज़ें पढ़ाना हो या कमलेश सर का एक सामाजिक विज्ञान के शिक्षक के रूप में हमें एक बेहतर इंसान और नागरिक बनाने की कोशिश, सभी की सीखने की ललक का ही परिणाम है। अब हम भी इस तरह के वातावरण के आदि हो चुके हैं और सिर्फ़ नियमित दायरे का पढ़ना हमें नहीं भाता। हाँ यह सच है कि, जब हम एक दायरा तोड़कर उससे बाहर का जानने-समझने लगते हैं तो उसका भी एक दायरा अपने आप ही बन जाता है। लेकिन, कम से कम हम पाठ्यक्रम के दायरे में सीमित तो नहीं ही रहना चाहते हैं।

स्कूल की ‘दीवार पत्रिका’ जो बच्चे निकालते हैं

fb_img_15890797167922531931530687215802.jpgयही वजह है हमारे स्कूल की मासिक पत्रिका The Explorer प्रकाशित करने की। इस पत्रिका का उद्देश्य बच्चों में रचनात्मकता बढ़ाना है। इस पत्रिका को और स्वतंत्र बनाने के लिए दो संपादक मंडलियों का गठन किया गया है, जिसमें कक्षा 8 से 10 तक के कुछ साथी स्वेच्छा से शामिल हैं। पहले चरण में दोनों संपादक मंडलियाँ बाकी छात्र साथियों के ही बीच से आए लेखों पर विचार-विमर्श कर संशोधन करती है और प्रतिमाह दो दीवार पत्रिकाएं प्रकाशित करती हैं। दीवार पत्रिका निकालने के कुछ ही दिनों बाद लेखों में गलतियाँ आख़िरी बार खोजी जाती हैं और प्रिंट करवाने के लिए भेज दिया जाता है। कुछ दिनों बाद सभी साथियों के हाथों में हमारे स्कूल से निकालने वाला अख़बार होता है।

दीवार पत्रिका निकालने की प्रेरणा मिली हमें, छोटा कश्मीर कह जाने वाले पिथौरागढ के एक शिक्षक व साहित्यकार श्री महेश चंद्र पुनेठा जी से। पहाड़ के दूर दराज क्षेत्रों में दीवार पत्रिका की शुरूआत करने का श्रेय इन्हीं को जाता है। महेश सर से प्रेरणा लेकर हम 6 दीवार पत्रिकाएं और 3 अख़बार प्रकाशित करने में सफ़ल रहे हैं। कोरोना समस्या के चलते हमारा यह प्रयास ज़रा थम सा गया है। आशा है जल्द ही सब कुछ सही होगा और हम नई ताज़गी और विचारों के साथ उभरेंगे।

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उत्तराखंड में दीवार पत्र्का की मुहिम को विस्तार देने में महेशचन्द्र पुनेठा की सक्रिय भूमिका रही है।

राष्ट्रव्यापी लॉकडॉन के दौरान भी हमारे शिक्षकों और हमने मिलकर अपनी सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में ख़लल नहीं पड़ने दिया। क्लास के व्हाट्सएप ग्रुप में कोर्स का तो पढ़ाया ही जा रहा है, पर साथ ही रचनात्मक कार्य देने पर भी ज़ोर दिया जा रहा है। इसके चलते कमलेश सर रोज़ प्रतिष्ठित अखबार, ज्ञानवर्धक वीडियोज़, आर्टिकल्स और डॉक्यूमेंट्री भेजते हैं। साथ ही अपने अनुभवों को समीक्षा के रूप में भेजने को भी कहते हैं। इसी दौरान हमारे फिजिक्स के टीचर, सौरभ सर ने एक नई पहल की शुरूआत की है। रोज़ाना शाम को सर एक विषय पर अपने विचार ग्रुप में रखते हैं और हमें भी अपने विचार व्यक्त करने का अवसर देते हैं। इसी बीच हमारे हिंदी के अध्यापक, विजय सर नई कहानियाँ भेजते हैं और जवाब में उनकी समीक्षा या सारांश लिखने का सुझाव देते हैं। बाकी शिक्षक जैसे – दिनेश सर, अशोक सर और संदीप सर भी बड़ी ही लगन से हमें सिखाने की प्रक्रिया में जुड़े हुए हैं।

‘शिक्षकों की प्रेरणा में वायरस कोई बाधा नहीं है’

आजकल ई-लर्निंग का दौर है। कोरोना संकट ने यही विकल्प हमारे सामने ला खड़ा कर दिया है। भले ही ई-लर्निंग भविष्य हो सकता है, पर मेरे लिए स्कूल-लर्निंग और ई-लर्निंग का कोई मुकाबला नहीं है। ई-लर्निंग में टीचर्स की डाँट, हमारी छोटी-छोटी शरारतें, पढ़ाते हुए बीच में टीचर्स की कुछ दिलचस्प कहानियाँ और सभी दोस्तों का पढ़ाई में एक दूसरे की मदद करना कहाँ शामिल है। ख़ैर, मुझे अपने शिक्षकों से हमेशा ही प्रेरणा मिलती रही है, और इसमें कोई वायरस आड़े नहीं आ सकता।

इसी दौरान हमें स्कूल की तरफ़ से एक बड़े मंच में जुड़ने का अवसर दिया गया। ‘जश्न ए बचपन’ नामक व्हाट्सएप ग्रुप लॉकडाउन के दौरान रचनात्मक शिक्षक मंडल की बच्चों में रचनात्मकता उजागर करने की एक पहल है। इसके बारे में हमें स्कूल प्रबंधन की ओर से जानकारी मिली। इस ग्रुप को बनाया है श्री नवेंदु मठपाल जी ने। इस ग्रुप के ही माध्यम से हम दिन ब दिन, साहित्यकार, नाट्यकार, सिनेमा एक्सपर्ट, ओरेगामी एक्सपर्ट, बर्ड एक्सपर्ट, पेंटिंग एक्सपर्ट और संगीत व नृत्य एक्सपर्ट के सानिध्य में कुछ न कुछ नया सीख रहे हैं। इसी मंच की वजह से हमारे लेखों को EDUCATIONMIRROR.ORG नामक एक नया डिज़िटल प्लेटफॉर्म मिला।

हमारे शिक्षकों को कभी इस ग्रुप की गतिविधियां इतनी ज़रूरी लगती हैं, कि वे  महेश पुनेठा सर की साहित्य की क्लास के दिन हमारी क्लास को कुछ नहीं पढ़ाते और उनकी क्लास में बढ़-चढ़कर भाग लेने को कहते हैं। इस नए मंच ने हमें पहली बार इतने सारे एक्सपर्ट्स के साथ काम करने का अवसर दिया। आभार है नवेंदु सर का इस पहल की शुरूआत करने के लिए और उन तमाम लोगों का जो निस्वार्थ रूप से हमारे साथ काम कर रहे हैं और हमें सिखा रहे हैं। ये तो बात रही जश्न ए बचपन की। पर हमारे टीचर्स भी इस संकट के दौरान पूरी सिद्दत से हमारे साथ सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में जुड़े हुए हैं।

‘शिक्षकों की लगन’ मुझे अचंभित करती है

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कार्यशाला में सीखे गये अनुभवों को आठवीं कक्षा के छात्र-छात्राओं के साथ शेयर करते हुए नौवीं कक्षा के विद्यार्थी।

हमारे मैथ्स टीचर, श्री दिनेश सिंह अधिकारी जी का पढ़ाने के प्रति समर्पण हो या फिजिक्स टीचर श्री सौरभ जोशी जी की लगन, मुझे हमेशा से ही अचंभित करती रही है। इन्हीं से मुझे अपने काम के प्रति समर्पित होने की सीख मिलती है। हमारे इंग्लिश टीचर श्री अशोक चंद जी की क्लास के तो क्या कहने। थोड़ा हंसी-मज़ाक और ढेरों कहानियों के साथ कोर्स भी “होते-होते हो ही जाता है”। अपनी जिंदगी को बेफ़िक्र होकर जीने की प्रेरणा मुझे अशोक सर से मिलती है। हमारी केमिस्ट्री टीचर रूपम चौहान मैम का ज़रा गुस्सैल और थोड़ा सख़्त मिजाज़ बड़ा ही अनोखा है। मैम का पढ़ाया हुआ झट से याद भी हो जाता है और जल्दी भूलते भी नहीं। हिंदी टीचर श्री विजय गहतोड़ी जी का पढ़ाने का अंदाज़ बेहद ही अनोखा है। भाषा में सर की अच्छी पकड़ है। हमारे बायोलॉजी टीचर श्री संदीप सिंह शर्मा जी की तो बात ही निराली है। धीरे-धीरे हमारी बायोलॉजी की गाड़ी सब को लिए आगे बढ़ती है।

अब बारी है हमारे सामाजिक विज्ञान या सोशल साइंस टीचर डॉ कमलेश अटवाल जी की। यूँ तो मेरे लिए सभी शिक्षकों का दर्जा समान है, पर हमेशा से ही मेरी प्रेरणा के सबसे बड़े श्रोत कमलेश सर ही रहे हैं। मेरे मुताबिक़ किसी भी शिक्षक की तुलना दूसरे शिक्षक से करना सही नहीं है। सभी अपने-अपने कार्यक्षेत्र में निपुण हैं और एक अनोखा व्यक्तित्व लिए हुए हैं। कमलेश सर से इसलिए भी ज़्यादा लगाव रहा कि उनका पढ़ाने का ढंग मुझे हमेशा से ही रिझाता रहा। अपनी बात को कहानी से जोड़कर बयां करने का सर का अंदाज़ मुझे बहुत पसंद है। मेरे पसंदीदा विषय के शिक्षक होने के नाते भी कमलेश सर से मेरा ज़्यादा लगाव होना वाजिब ही है।

‘सिर्फ शिक्षक ही नहीं साथी की तरह हमारी बात सुनते हैं सर’

सर का हमेशा यही प्रयास रहता है कि वे न सिर्फ़ अपने छात्र-छात्राओं को पढ़ाएं, बल्कि उन्हें इस काबिल बनाएं कि वे पढ़ी बातों को आपनी असल जिंदगी में भी लागू कर सकें। सामाजिक विज्ञान तो विषय ही ऐसा है, जो आम जीवन को समझने में अहम भूमिका अदा करता है। कमलेश सर की चीजों को समझने की समझदारी और तर्कसंगतता उन्हें बाकियों से काफ़ी अलग बनाती है। उनका सपना है कि उनके सभी बच्चे तर्कशील, समझदार और अच्छे इंसान बनें। यही वजह है कि उन्हें जहाँ भी लगता है हमें कुछ सीखने को मिलेगा, वहाँ ज़रूर ले जाते हैं।

मैंने अक्सर पाया है कि जब भी बात हमें समझने की आती है, कमलेश सर ही सबसे बेहतर तरीके से हमारी बात को समझते हैं। एक शिक्षक की तरह नहीं, बल्कि हमारे ही साथी की तरह हमारी बात को सुनते हैं और जो भी समस्या हो उसका हल निकालते हैं। हमेशा ही वे अपने छात्र-छात्राओं का प्रोत्साहन भी करते हैं और कुछ नया करने के लिए प्रेरित भी।

‘मैं कमलेश सर जैसी ही बनना चाहती हूँ’

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सच कहूँ तो मैं भी कमलेश सर जैसी ही बनना चाहती हूँ। जानती हूँ कि सभी अनोखे होते हैं और होने भी चाहिए, पर जो समझदारी, तर्कशीलता और परिपक्वता कमल सर में है, वो शायद ही मैंने किसी और में देखी हो। मैं जानती हूँ कि सबका अनोखा व्यक्तित्व होता है और मेरा ये कहना कि मैं कमलेश सर जैसी ही बनना चाहती हूँ, बिल्कुल सही तो नहीं होगा। पर कोशिश ज़रूर करूँगी कि उनकी ही तरह मैं भी एक अच्छी इंसान बन सकूँ, जो सभी को समझे, उनकी इज़्ज़त करे और ज़रा संवेदनशील भी हो।

मेरे इस स्कूल ने मुझे न सिर्फ़ अच्छी शिक्षा प्राप्त करने का अवसर दिया बल्कि मुझे एक अच्छा इंसान बनने और इतने बेहतरीन शिक्षकों के सानिध्य में रहकर सीखने का मौका दिया। मैं इसके बदले में अच्छी सहभागिता और एक आदर्श छात्रा ही उन्हें दे सकती हूँ। शायद ही किसी शिक्षक के लिए इससे बड़ी कोई भेंट होगी। मेरी यही कोशिश रहेगी कि मैं मुझसे जुड़े अपने सभी शिक्षकों के अरमानों को पूरा कर सकूँ।

(एजुकेशन मिरर के फ़ेसबुक पेज़ और ट्विटर हैंडल  से जुड़ सकते हैं। इसके साथ ही साथ वीडियो कंटेंट व स्टोरी के लिए एजुकेशन मिरर के यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें। आप भी एजुकेशन मिरर के लिए अपने लेख educationmirrors@gmail.com पर भेज सकते हैं। )

6 Comments on शिक्षक प्रोत्साहन सिरीजः ‘लॉकडाउन में भी मिल रही है शिक्षकों की प्रेरणा, वायरस कोई बाधा नहीं’

  1. Virjesh Singh // May 11, 2020 at 8:38 pm //

    गोपाल जोशी लिखते हैं, “रिया का इतना विस्तृत,समायोजित,सटीक और सधा हुआ लेख पढ़ कर मैं इस दुविधा में हूँ कि मैं इस प्रतिभा का श्रेय आखिर किसको दू?
    उन माता पिता,और परिवार को जिन्होने इस विलक्षण प्रतिभा को को जन्म दिया और ऐसा माहौल?
    या उन शिक्षक जनो को,जिन्होंने इस बच्ची और इसके साथियों को कम संसाधनों के बावजूद इस लायक 10वी कक्षा में ही बना दिया जो लोगों में शायद काफ़ी आगे जा कर मिल पाती है. या फ़िर उस मंच को जो शायद अभी कुछ ही महीने पहले इन बच्चों से और हमारी संस्था नानकमत्ता पब्लिक स्कूल से जुड़े लेकिन लगता है कि वो हमारे इन बच्चो को शायद हमसे भी पहले से जानते पहचानते हों….
    अन्ततः आप सभी लोग मेरी नजर में जो कार्य कर रहे हैं वो सभी की तारीफ़ के योग्य है. किसी भी एक में इच्छा शक्ति की कमी होने पर यह सब सम्भव नहीं हो पाता है।”

  2. Virjesh Singh // May 11, 2020 at 8:36 pm //

    रिया के बारे में उनके एक शिक्षक कमलेश अटवाल जी लिखते हैं,#Gopal_Joshi जी, #Kamlesh_Joshi , #Shipra_Mittal सच में रिया अद्भुत है। अपने काम के लिए समर्पित, ईमानदार और हद से ज्यादा दृढ़-निश्चचयी।

    यह सच है कि हर बच्चा दूसरे से अलग होता है। लेकिन सीखने की ललक और बच्चों को दिया गया माहौल उनसे कुछ भी करवा सकता है, असंभव सा लगने वाला काम भी।

    पिछले साल रिया की तबीयत बहुत खराब हो गई थी। डॉक्टर ने कहा कि आपको कुछ दिन आराम करना है, और स्कूल नहीं जाना है। मम्मी, पापा, डॉक्टर सब ने समझाया। यहां तक कि मैंने भी फोन करके कहा कि आपको कुछ दिनों स्कूल नहीं आना है। आपको आराम जरूरी है। लेकिन यह जिद्दी लड़की अगले दिन स्कूल आ गई।और उसका परिणाम यह रहा कि फिर कुछ हफ्तों तक बीमार रही।
    जब विद्यालय वापस आई तो लगभग सारा काम पूरा था। उसकी सीखने की प्रक्रिया में कोई असर नहीं पड़ा था। किसी तरह से अपने साथियों को फोन कर उनसे मदद लेकर अपना सारा पाठ्यक्रम भी पूरा कर डाला। गजब का हौसला है। जो सच में हमें प्रेरित करता है । हमें लगता हम कितने भाग्यशाली है कि हमारे साथ ऐसे बच्चें और अभिभावक जुड़े है।

    रिया का समर्पण उसके द्वारा अपनी स्कूल की दीवार पत्रिका और स्कूल के अखबार के संपादन में दिखता है। पता नहीं कितने बच्चों के आर्टिकल लेकर उनके साथ काम करती है। उनको टाइप करती है, कितनी बार दोबारा से लिखती है। अपने साथियों की मदद करने का यह भाव वाकई लाजवाब है इस लड़की में। कोई भी आर्टिकल्स या वीडियो शेयर करो कभी ऐसा नहीं होता कि एक लंबी चौड़ी टिप्पणी और अपनी समझदारी उस पर लिखे बिना वह रह पायी हो।

    एक बार नानकमत्ता मे हिंदुस्तान दैनिक अखबार द्वारा एक भाषण प्रतियोगिता आयोजित कराई गई। जिसमें प्रत्येक विद्यालय से एक ही छात्र को प्रतिभाग करना था। तो हमने स्कूल की आठवीं और नौवीं के बच्चों से कहा कि जो लोग भी शामिल होना चाहते हैं वह अपना भाषण तैयार करके लाए। रिया और उसकी एक अन्य साथी दीपिका के बीच में टीचर्स को यह निर्णय लेना बहुत मुश्किल हो गया किसको हम इस प्रतियोगिता में भेजें। हमने कहा कि आप दोनों लोग प्रतियोगिता स्थल पर चले जाइए जिसको सही लगे वह शामिल हो लीजिए।
    यहां पर रिया ने अदभुत नेतृत्व क्षमता दिखाई, और अपने साथी का दिल रखते हुए उसे शामिल होने के लिए कह दिया। और उस प्रतियोगिता में हमारे विद्यालय की दीपिका को द्वितीय स्थान प्राप्त हुआ।

    सच में इन बच्चों का समर्पण मेहनत, सब को साथ लेने की अद्भुभुत नेतृत्व क्षमता, हम सभी लोगों को प्रेरित करती हैं। इसलिए इस लेख को पढ़ने के बाद मुझे व्यक्तिगत रूप से यह एहसास हुआ कि मैं कितना भाग्यशाली हूं, मेरे अपने छात्र मुझे प्रेरित कर रहे हैं और मुझे बहुत कुछ सिखा रहे हैं।

    शुक्रिया रिया और सारे छात्र साथियों।

  3. Anonymous // May 10, 2020 at 10:33 am //

    Accha Likha bachche ne… Kafi feeling k sath

  4. Gajendra Raut // May 10, 2020 at 9:05 am //

    बेहतरीन लेख..आपने काफी शिक्षकोसे हमारा लेख मे ही परिचय करवा दिया. आपके स्कूल मे एक से बढ कर शिक्षक है यह आपका भाग्य है.

  5. Anonymous // May 10, 2020 at 4:32 am //

    परिपक्व और खूबसूरत लेखनी।

  6. Reeta Gupta // May 10, 2020 at 4:05 am //

    वाह बच्चे, सभी टीचर्स में आपने गुणों को देखा है जोकि इस बात को निश्चित करता है कि एक दिन आपका व्यक्तित्व इन गुणों का सम्मिश्रण बन निखर कर सामने आएगा।
    God bless you💐💐

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