पुस्तक चर्चाः डार्क हॉर्स – नीलोत्पल मृणाल
पुस्तकालयों को ज़िंदगी का हिस्सा बनाने और पढ़ने की संस्कृति विकसित करने की दिशा में उत्तराखंड में बहुत से प्रयास लगातार होते रहे हैं। इसी कड़ी में एक नाम ‘आरम्भ स्टडी सर्किल’ का भी है। इस नाम से बने फेसबुक पेज़ पर युवा पाठकों द्वारा पढ़ी गई किताबों पर अपनी बात साझा की जाती है। यह सिलसिला लॉकडाउन के पहले भी जारी था। अब भी जारी है। यह एक अच्छा संकेत हैं। सार्वजनिक स्थान पर आयोजित होने वाले ‘आरंभ’ के पुस्तक परिचर्चा के मासिक आयोजन ‘बुक-मीट’ के अस्थायी स्थानापन्न के तौर पर शुरू हुए, पाठकीय टिप्पणियों के साथ पुस्तक परिचय के सिलिसिले में किताबों पर टिप्पणी लिखकर साझा की जा रही है। आरम्भ स्टडी सर्किल के लिए पहली बार पाठकीय टिप्पणी साझा करने के लिए युवा पाठिका कविता पुनेठा की नीलोत्पल मृणाल के बहुचर्चित उपन्यास ‘डार्क हॉर्स’ पर टिप्पणी।
नीलोत्पल मृणाल का पहला उपन्यास ‘डार्क हॉर्स’ है और इस उपन्यास के लिए उन्हें युवा साहित्य अकादमी सम्मान भी प्राप्त हुआ। यह उपन्यास, लेखक द्वारा भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) की तैयारी में व्यतीत की गयी ज़िंदगी के अनुभवों को कुछ पात्रों के माध्यम से बताता है। मुखर्जी नगर, जो खास तौर पर प्रशासनिक परीक्षा की तैयारी कर रहे छात्रों के लिए जाना जाता है। वहाँ दिल में अधिकारी बनने का सपना लिए कैसे युवा निकल पड़ते हैं और अपने जीवन के महत्वपूर्ण वर्ष झोंक देते हैं। इस उपन्यास में लेखक द्वारा युवाओं के जीवन के हर पहलू को बारीकी से दर्शाया गया है। कैसे अलग अलग शहरों से आये युवा आपस में मिलकर रहते हैं तथा अपने अपने जीवन के 4-5 वर्ष एक दूसरे के साथ साझा करते हैं।
सिविल सर्विसेस में चयन का ‘सपना’
मुझे उपन्यास का वह हिस्सा रोचक लगा जिसमें एक पिता की भावनाओं को बताया गया है कि कैसे वह अपने पुत्र को अधिकारी बनाकर अपनी तीन पुश्त तारने की मानसिकता लिए हुए हैं। यह मानसिकता हमारे समाज में व्यापक रूप से व्याप्त है और बहुत से छात्र उसी सोच और दबाव को लेकर निकल जाते हैं भले ही वह उस दबाव को ले सकें या नहीं! संतोष नाम का छात्र ऐसे ही निकल जाता है, अपने सपने को पूरा करने।
छोटे गाँव का एक लड़का दिल्ली जैसे महानगर में रहने लगता है ओर बस यही सोचता है कि एक दिन अधिकारी बनकर ही निकलेगा। उपन्यास का मुख्य किरदार संतोष का ही है जो गाँव से निकल दिल्ली जाता है अकेले दिल्ली जाकर वहाँ के माहौल में खुद को ढालने तथा नयी जगह में अपने रहने खाने की व्यवस्था करने के लिए अपने परिचित मित्र रायसाहब की सहायता लेता है।
डॉर्क हॉर्स के मायने क्या हैं?
रायसाहब जो खुद 5 साल से तैयारी कर रहे थे पर सफल न हो पाने की वजह से वर्षों से वहीं टिके थे। उपन्यास बताता है कि ऐसे ही जाने कितने छात्र अपने जीवन के कई कई वर्ष इस परीक्षा के लिए न्योछावर कर देते हैं। उम्र में और अनुभव में बडा़ होने के कारण संतोष भी उनकी हर बात गंभीरता से सुनता है तथा अपने विषय तक अपने दोस्तों से पूछ कर लेता है, वह भी उन दोस्तों से जो खुद सफलता प्राप्त नहीं कर पा रहे थे। तमाम संघर्ष और बहुत समय निकाल जाने के बाद भी संतोष को सफलता नहीं मिल पाती है। इसके बाद कैसे वह अपने खास दोस्तों को जिनके साथ वह पढने के साथ साथ और गतिविधियों में भी रहता था उनको भी पूरी तरह से छोड़ कर पूरे एक वर्ष तक खुद को तैयारी में झोंकने के बाद अंत में आईपीएस अधिकारी बन जाता है।
इस प्रेरणादायक यात्रा के लिए युवाओं को यह पुस्तक जरुर पढ़नी चाहिए। डार्क हाॅर्स का अर्थ है कि रेस में दौड़ता ऐसा घोड़ा जिस पर किसी ने दाँव न लगाया हो और जिसके जीतने की उम्मीद किसी को न हो और वही घोड़ा सबको पीछे छोड़ आगे निकल जाए। उपन्यास के अंत में संतोष के सभी मित्र अपने अपने अलग अलग रास्तों में सफल हैं। जिदंगी हर इंसान को रास्ते देती है जरुरी नहीं कि सब एक ही में चलें।
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