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उपासनाः एने फ्रैंक के जन्मदिन पर एक ‘बधाई पत्र’

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(Photo: Hannolans [public domain]/Wikimedia Commons)

नन्ही एने,

तुम नन्ही ही हो…बेशक अगर तुम जी पाती अपनी पूरी जिंदगी तो तुम मेरी दादी जैसी होती। आज तुम्हारा जन्मदिन है न! तुम 91 बरस की होतीं। मैं यह कल्पना ही कर सकती हूँ कि जितनी खूबसूरत तुम बच्ची थीं, उतनी ही गरिमामय बूढ़ी स्त्री होतीं। हाँ, बेशक उतनी ही वाकपटु, और मजे लेने वाली। तुम्हारे नाम ढेर सारीं किताबें होतीं। तुम लिखतीं, लगातार लिखतीं, आखिर तो तुम्हें लेखिका बनना था। आजाद हवा तुम्हारी, सूरज की खुली धूप तुम्हारी। संघर्ष के दिनों को याद करतीं, तुम्हारी झुर्रीदार पनीली आखें। पीड़ा से उबरे फुसफुसाते होंठ-
“वे मानवता पर भारी संकट के दिन थे…हम सब कितने साल एक एनेक्सी में छिपे रहे!”

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नन्ही एने हमारे पास तो बस स्मृतियाँ ही हैं और कुछ दिलखुश कल्पनाएँ। दुनिया में खूबसूरती का वक्त कम ही क्यों तय होता है! पर कोई ऐसे भी तो नहीं जाता जैसे एने तुम गईं। जीने की इतनी-इतनी उद्दाम लालसा लिए कोई इस तरह अचानक कैसे जा सकता है आखिर? हम सब कितने सारे हैं जो बेवजह का जी रहे हैं। जीवन की कई-कई छुद्र पीड़ाओं पर हमने मर जाने का सोचा है। हालाँकि हद दर्जे की लफ़्फाजी है यह कहना कि मेरी उम्र तुम्हें लग जाए। पर काश यह सिर्फ लफ्फाजी भर न होती। काश कि सचमुच ऐसा हो पाता।

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तुम्हें तो जीना था मेरी नन्ही प्रिय एने…लिखने के लिए। लिखकर दुनिया को हिला देने के लिए। पर देखो दुनिया आज भी हिली हुई है तुम्हारे लिखने से। वे देख रहे हैं कि यह वक्त भी तुम्हारे वक्त से किसी सूरत बेहतर नहीं है। कुछ भी कहने का क्या अर्थ…तुम तक कहाँ पहुँच पाएंगे मेरे ये शब्द। शब्द पहुँच भी जाएँ तो कोरे शब्दों का क्या अर्थ है भला बोलो। पीड़ा को सहना और पीड़ा को लिखना कतई मुख्तलिफ़ है।

आखिर में बस इतना कि मेरी प्रिय लेखिका तुम्हें तुम्हारा 91वां जन्मदिन बहुत मुबारक।

बहुत-बहुत प्रेम के साथ!

WhatsApp Image 2020-06-12 at 6.09.47 PM(लेखक परिचयः समकालीन कथा साहित्य में उपासना कहानी लेखन के क्षेत्र में अपना योगदान दे रही हैं। 

आपको भारतीय ज्ञानपीठ का नवलेखन पुरस्कार भी मिला है। आपका लिखा एक कहानी संग्रह और एक बाल-उपन्यास ‘डेस्क पर लिखे नाम’ प्रकाशित हो चुका है।)

 

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3 Comments on उपासनाः एने फ्रैंक के जन्मदिन पर एक ‘बधाई पत्र’

  1. Gajendra Raut // June 14, 2020 at 7:30 pm //

    इस पत्र को पढकर मैने कई दिनो बाद अपने पास रखा हुंआ किताब पढना शूरू कर दिया.

  2. वीणा चौबे // June 12, 2020 at 10:37 pm //

    बचपन की कला आखिर बाद में एक मुकाम पर पहुंचाने का कार्य अवश्य करती हैं ।बहुत अच्छी कहानी

  3. मर्म स्पर्शी कथा

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