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युवा शिक्षकः हम हैं नए, तो अंदाज क्यों हो पुराना


युवा शिक्षकों की प्रतिभा देखकर हैरानी होती है। उनका अंदाज बाकी पुराने शिक्षकों से बेहद अलग है। वे चीज़ों को समझते हैं। योजनाओं के निहितार्थ को समझते हैं। सिस्टम की व्यावहारिक दिक्कतों को समझते हैं और बढ़िया समाधान निकालने की कोशिश करते हैं।

आज एक ऐसे ही शिक्षक साथी से बात हो रही थी तो उन्होंने कहा,  “मुझे समझ में नहीं आता कि जब रीडिंग कैंपेन इतना बढ़िया रिजल्ट दे रहा था तो इसे बंद करने की क्या जरूरत थी? कम से कम योजनाओं को परखने के लिए तो पर्याप्त समय देना चाहिए।”

‘बच्चों को पढ़ना सिखाना है’

उनका मानना है कि अगर बच्चों को पढ़ना नहीं आता है तो चौथी से पांचवीं और पांचवी से छठीं में जाने का कोई अर्थ नहीं है। इसलिए उन्होंने पहली से पांचवी तक के ऐसे बच्चों को बच्चों को पढ़ना सिखाने का फ़ैसला कर लिया है, रीडिंग स्किल में थोड़ा पिछड़ रहे हैं। उनके प्रयास की सबसे ख़ास बात है कि वे जिस तरीके से पढ़ा रहे हैं, वह बच्चों को समझ में आ रहा है। इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है?

उनका कहना है कि किसी भी सरकार और योजनाकार को शिक्षकों पर पढ़ाने का तरीका थोपने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, हर बच्चे के सीखने का अपना तरीका होता है। ऐेसे में यह कैसे निर्धारित किया जा सकता है कि बच्चों को होल लैंग्वेज अप्रोच से ही सीखना चाहिए, या वर्णमाला वाली प्रचलित विधि से सीखना चाहिए जिससे हममें से अधिकांश लोगों ने पढ़ना सीखा है। या फिर किसी अन्य विधि से ही सीखना चाहिए। एक शिक्षक को अपने काम की स्वतंत्रता होनी चाहिए।

‘अर्ली लिट्रेसी’ का महत्व

उन्होंने बताया, “एक स्कूल की जो वास्तविक परिस्थिति होती है, उसमें ऐसी योजनाएं बनाने वाले लोगों को पढ़ाने का प्रयास करना चाहिए ताकि वे तमाम तरह के बौद्धिक और सैद्धांतिक भ्रमों से बाहर आ सकें।” उनका मानना है कि अगर चौथी-पांचवी के बच्चे पढ़ना नहीं जानते तो ऐसे में छठीं क्लास में बिना पढ़ना सीखे समझने का कोई लाभ नहीं है। बिना पढ़ना सीखे हुए, उस क्लास में बैठना उनके लिए एक तकलीफ से गुजरना होगा, जो बेहद दुःखद होगी। इसलिए मैंने ख़ुद से पहल करके छोटी क्लास में हिंदी पढ़ाने की जिम्मेदारी ले ली है ताकि आने वाली कक्षाओं में इन बच्चों को दिक्कत का सामना न करना पड़े।

शुरुआती सालों में पढ़ना सीखना या अर्ली लिट्रेसी का महत्व एक शिक्षक की तरफ़ से जब इन शब्दों में बयान किया जा रहा हो तो सुनकर ख़ुशी होती है। आज पहली कक्षा में जब सारे बच्चे एक अक्षर को लिखने का अभ्यास करने में मशगूल थे। तो मैंने उनसे कहा कि इसी आदर्श स्थिति की कल्पना किताबों में होती है जहां बच्चे ख़ुशी से अपने काम में लगे होते हैं। उनको कंट्रोल करने की कोशिश नहीं होती। पहली कक्षा के बच्चे जिस दिलचस्पी के साथ कहानी से संबंधित शब्दों के अर्थ बता रहे थे, कहानी से जुड़े सवालों का जवाब दे रहे थे। उसे देखकर लग ही नहीं रहा था कि यह पहली के वही बच्चे हैं जिनके बारे में करीब एक महीने पहले कहा गया था कि इनको तो हिंदी बोलना भी नहीं आता है।

इस जवाब के बाद मैं पहली-दूसरी कक्षा के बच्चों से बात करने की कोशिश कर रहा था। इसी कोशिश में हमने रोटी बनाने वाली एक गतिविधि सीखी थी। रोटी एक ऐसा शब्द है जो स्कूल में हर बच्चे को पता है। इससे शुरू हुए बातों का सिलसिला आगे बढ़ रहा है। अब वे बच्चे अज़नबी नहीं है, परिचित हैं। धीरे-धीरे सारे बच्चों के स्वभाव और विशेषताओं से रूबरू हो रहा हूँ। उसी दौरान इस युवा शिक्षक से मेरी मुलाक़ात हुई तो मैंने बातों ही बातों में प्रधानाध्यापक जी से कहा कि पहली कक्षा को पढ़ाने की जिम्मेदारी किसी युवा साथी को दीजिए ताकि काम के दौरान आने वाली चुनौतियों का नए सिरे से समाधान खोजने की कोशिश में कोई दिक्कत न हो। इसके बाद इनको पहली कक्षा की जिम्मेदारी मिली। अब तो वे पहली से पांचवी तक की कक्षा को पढ़ना सिखाने के मिशन में जुटे हैं, उनके इस मिशन को कामयाबी मिले, इस उम्मीद के साथ उनकी कोशिशों को सपोर्ट करते रहेंगे।

जाते-जाते एक छोटी सी बात। आदिवासी अंचल में सुबह-सुबह घरों में ब्रेकफास्ट बनाने की कल्चर नहीं है। इसके कारण बहुत से बच्चे अपने घरों से भूखे ही आ जाते हैं। एमडीएम का टाइम करीब 10.30 AM और 11 AM के आसपास पड़ता है जो छोटे बच्चों के लिहाज से काफ़ी देर है। ऐसे में एमडीएम परोसने का समय थोड़ा पहले होना चाहिए। उस स्कूल के साथी शिक्षक ने यह बात भी कही। पहले छुट्टी के सवाल पर उन्होंने कहा कि हमारे जो अधिकारी हैं वे नियमों की याद दिलाते हैं, अगर पहले छुट्टी कर दो एक बड़ा बखेड़ा खड़ा हो जाएगा।

उन्होंने यह भी कहा कि कुछ परिवारों की स्थिति इतनी ख़राब है कि उनके बच्चे तो मात्र इसलिए स्कूल आते हैं क्योंकि यहां खाना मिलता है। दोपहर बाद करीब डेढ़ बजे पहली-दूसरी कक्षा में जाना हुआ। सारे बच्चे परिचित हो गए हैं, इसलिए उनमें से कुछ बच्चे एक साथ चिल्ला रहे थे। सर छुट्टी करो। सर छुट्टी करो। कक्षा में बैठे अध्यापक साथी ने कहा कि छोटे बच्चों के सात घंटे का टाइम वास्तव में बहुत ज़्यादा है, सरकार को इसे कम करना चाहिए। लेकिन इस मांग पर कोई ध्यान नहीं देता।

अगली पोस्ट में मिलते हैं फिर किसी और कहानी के साथ।

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