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उच्च शिक्षा में ‘पैसे वसूल वाला फॉर्मूला’ किसके हित में है?


भारत में एक नए तरह के आर्थिक मॉडल का स्वरूप विकसित हो रहा है, जिसका उद्देश्य उच्च शिक्षा और रोज़गार की चाह रखने वाले लोगों से पैसे वसूलने वाला है। इस तरह के इकट्ठा होने वाली आय से कई सालों तक नई नौकरी पाने वालों को वेतन और उच्च शिक्षा में शोध के लिए फेलोशिप के लिए आवेदन करने वाले छात्रों के परीक्षा शुल्क में बढ़ोत्तरी करके उन्हीं को पैसे लौटाने का रास्ता तैयार किया जा रहा है।

कुछ दिनों पहले उच्च शिक्षा में फेलोशिप के रास्ते बंद करने संबंधी फ़ैसले पर केंद्र सरकार व केंद्रीय मानव संसाधान विकास मंत्री को अच्छी खासी आलोचना का सामना करना पड़ा था। इस मुद्दे को लेकर छात्रों ने यूजीसी का घेराव भी किया था। इस मौके पर यह बात सामने आई थी कि ग्रेजुएशन, पोस्ट ग्रेजुएशन व शोध के लिए फेलोशिप के मौके बढ़ाने की योजना पर विचार-विमर्श हो रहा था।

नॉलेज नहीं स्किल

मगर नई सरकार अपनी आर्थिक नीतियों के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए फेलोशिप बंद करने या फिर उसे सीमित करने के फ़ैसले पर विचार कर रही थी, जिसका छात्रों की तरफ से मुखर विरोध हुआ। इस तरह के फ़ैसलों की मंशा बताती है कि उच्च शिक्षा और उच्च शिक्षा में शोध को सरकार प्रोत्साहित नहीं करना चाहती है। इस ग़ैर-जरूरी व्यय मानने की क्या वजह हो सकती है? भविष्य में निजी क्षेत्रों को ज्यादा भागीदारी देने की मंशा भी एक कारण हो सकती है। दूसरा कारण उच्च शिक्षा से देश के युवाओं को विमुख करके रोज़गार के अन्य अवसरों की दिशा में मोड़ने की रणनीति भी एक कारण हो सकता है। क्योंकि केंद्र सरकार ‘स्किल इंडिया’ की बात कर रही है। अब भारत को ‘नॉलेज इकॉनमी’ के रूप में देखने-समझने की जरूरत सरकार को नहीं लग रही है।

नॉलेज इज़ पॉवर वाली बात बीते दिनों की बात हो गई है या बदलते दौर में इस विचार की प्रासंगिकता कम हो गई है, यह तथ्य ग़ौर करने लायक है। स्किल और नॉलेज के बीच क्या कोई विरोधाभाष है? प्रशिक्षण को ज्ञान, कौशल और अभिवृत्ति का समुच्चय माना जाता है। मगर प्रशिक्षण को नये नज़रिये से देखने वाली कोशिशें उच्च शिक्षा के रास्ते को युवाओं के लिए भविष्य का विकल्प नहीं मानती हैं। नेट परीक्षा की फीस 500 से एक हज़ार करने के शायद यही मायने हैं कि जितने लोगों को ऐसी परीक्षाओं के लिए हतोत्साहित किया जा सके, करना चाहिए। इसके बावजूद भी जो लोग परीक्षा देंगे, वे नये आर्थिक मॉडल के स्वरूप को और मजबूत करेंगे। जहां एक स्टूडेंट का पैसा दूसरे स्टूडेंट को दिया जायेगा। थोड़ा बहुत पैसा सरकार दे देगी और यह भ्रम बना रहेगा कि फेलोशिप जारी है। उच्च शिक्षा को सरकारी प्रोत्साहन जारी है। जबकि वास्तविकता इसके ठीक विपरीत है।

ये डगर बड़ी है कठिन मगर..’

यूजीसी की तरफ से आयोजित होने वाली फेलोशिप (जेआरएफ) का परीक्षा शुल्क सीधे 1,000 कर दिया गया है। यानि अब उच्च शिक्षा में शोध का ख्वाब देखने वाले छात्रों को हज़ार रूपये की नोट देनी होगी सिर्फ परीक्षा में बैठने के लिए। इसके बाद की प्रक्रिया तो बाद की बात है। बदली हुई फीस इस प्रकार है।

नये आर्थिक मॉडल का रास्ता छात्रों को ज्यादा निराश करेगा। अभिभावकों की जेब पर दबाव और पढ़ेगा। छात्र और अभिभावक के रिश्तों में तनाव बढ़ेगा। परिवार नाम की संस्था में छात्रों की पढ़ाई पर दबाव और बढ़ेगा। क्या जरूरी है, नेट की परीक्षा देने की, कोई नौकरी खोजो, कोई टेक्निकल कोर्स करो, कोई स्किल विकसित करो, स्किल के लिए बहुत स्कोप है, नॉलेज का दायरा और नॉलेज के लेनदार बहुत कम हैं, यह बात धीरे-धीरे लोग समझ लेंगे। स्किल का विकास बहुत सस्ता है, आयोडीन नमक की तरह से। इसके अभाव में आपको बेरोज़गारी नामक रोग हो सकता है। आप सामाजिक उपेक्षा के शिकार हो सकतें और अपने जीवन का वास्तिवक सौंदर्य खो सकते हैं। जिसे बग़ैर किसी रोज़गार के बचाया नहीं जा सकता है, क्योंकि फेयर एंड लवली या विको टरमरिक कोई मुफ्त तो मिलते नहीं।

दांतों की कांति बनाये रखने के लिए आपको पैसों की दरकार है, इसलिए नये आर्थिक मॉडल को समझते हुए अपना विकल्प चुनिये। सरकार नॉलेज को नहीं स्किल को प्रोत्साहन दे रही है, आपका ध्यान किधर है, नौकरी का रास्ता तो इधर है। नॉलेज का रास्ता बहुत खर्चाला है, उधर जाने के लिए ‘सरकारी वसूली’ जारी है> भविष्य में भी जारी रहेगी। कुल मिलाकर यह पीपीपी मोड में बनने वाले हाइवे जैसा हो जायेगा, जहाँ आपको आगे बढ़ने के लिए चुंगी देनी होगी। आप इस बात से चाहें ख़ुश हों या नाराज हों। या फिर कोई और रास्ता चुनना होगा, जो हाइवे की तरफ से न जाता हो।

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