Site icon एजुकेशन मिरर

पठन कौशलः रीडिंग और डिकोडिंग में क्या अंतर है?

पठन कौशल के विकास में निरंतर अभ्यास की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।


किसी भाषा में लिखे हुए शब्दों या वाक्यों को ध्वनि प्रतीकों में रूपांतरित करना डिकोडिंग कहलाता है। उदाहरण के तौर अगर हिंदी भाषा में ‘कौतूहल’ शब्द लिखा हुआ है। तो हो सकता है कि कोई बच्चा इसे ध्वनि प्रतीकों में रूपांतरित करते हुए ज्यों का त्यों बोल दे। पर अगर वह इसका अर्थ नहीं जानता है तो यह केवल डिकोड करना भर होगा। 

वहीं रीडिंग में डिकोडिंग के साथ-साथ छपी हुई सामग्री को समझना भी शामिल होता है। उदाहरण के तौर पर कोई कौतूहल शब्द को पढ़ते हुए समझ भी रहा है कि इसका अर्थ है किसी नई चीज़ के प्रति एक जिज्ञासा का भाव होना। एनसीईआरटी की रीडिंग सेल द्वारा प्रकाशित बरखा सीरीज़ की किताबें के ऊपर एक स्लोगन लिखा है, “पढ़ना है समझना।” यानि पढ़ने में समझने का तत्व भी शामिल है।

धाराप्रवाह पठन से बनती है समझ

समझने के लिए किसी शब्द या वाक्य को धाराप्रवाह ढंग से पढ़ना जरूरी है। आमतौर पर हिंदी भाषा में अगर कोई बच्चा 20-22 शब्द प्रति मिनट की गति से पढ़ रहा होता है तो शुरुआती स्तर की समझ का निर्माण होने लगता है। अगर पाठ्य सामग्री बच्चे के स्तर के अनुरूप है। यहां एक ग़ौर करने वाली बात है कि समझ के साथ पढ़ने के लिए धाराप्रवाह पठन जरूरी है। अटक-अटक कर या शब्दों को तोड़-तोड़ कर पढ़ने से अर्थ निर्माण की प्रक्रिया बाधित होती है। हालांकि शुरुआती स्तर पर बच्चे ऐसा करते हैं।

ऐसी स्थिति में बच्चों को अगर नियमित अभ्यास का मौका मिले तो वे धाराप्रवाह ढंग से पढ़ने लग जाते हैं। वे दोबारा आने वाले शब्दों को पहचानने लगते हैं और उसे बार-बार डिकोड करने और फिर पढ़ने से बचते हैं। इस तरह से बच्चे पढ़ने की तमाम तरकीबें सीख रहे होते हैं। इस सीखने में किसी छपी हुई सामग्री को किस दिशा से किस दिशा में पढ़ना है। शब्दों को कैसे पढ़ना है। पूरे वाक्य को एक साथ कैसे पढ़ना है, कहां पर रुकना है इत्यादि बातें बच्चे समझ रहे होते हैं।

रीडिंग रिसर्च की रोचक शब्दावली

पठन के क्षेत्र में होने वाले शोध की शब्दावली काफी रोचक है। इसमें डिकोडिंग, रीडिंग, आभासी रीडिंग, रीडिंग की एक्टिंग, एक्टिव रीडिंग, पैसिव रीडिंग, समझ इत्यादि शब्दों का प्रयोग किया जाता है। आने वाली पोस्ट में हर पहलू के बारे में विस्तार से चर्चा करते हुए पढ़ने को उसके व्यापक संदर्भ में समझने की कोशिश करेंगे।

हिंदी के संदर्भ में वर्ण ज्ञान को किसी अक्षर के प्रतीक और ध्वनि को समझने के संदर्भ में देखा जाता है। कोई शब्द एक से ज्यादा ध्वनियों से मिलकर बना होता है। ये ध्वनियां आपस में जुड़कर किसी सार्थक शब्द का निर्माण करती है। ध्वनियों को आपस में जोड़कर शब्द बनाने वाले प्रक्रिया को रीडिंग रिसर्च की शब्दावली में ब्लेंडिंग कहा जाता है। इस प्रक्रिया को एक उदाहरण से समझा जा सकता है क + ल + म = कलम।

पहली क्लास में पढ़ना सीखने के शुरुआती दिनों में बच्चे कलम को पढ़ते समय क ल म तीनों अक्षरों की ध्वनियों को अलग-अलग करके बोलते हैं। सही अभ्यास के बाद वे धीरे-धीरे समझ जाते हैं कि शब्द पठन के दौरान ध्वनियों को एक साथ मिलाकर पढ़ना होता है। इस स्तर पर बच्चे किसी वाक्य के आखिर में आने वाले शब्दों का अनुमान भी लगाने लगते हैं क्योंकि मौखिक भाषा की वाक्य संरचना से वे परिचित होते हैं। भाषा शिक्षण में एक बात ग़ौर करने वाली है कि सारी चीज़ें आपस में जुड़ी हुई हैं। एक क्षेत्र में होने वाला विकास दूसरे क्षेत्र को सपोर्ट करता है।

Exit mobile version