स्वतंत्र पठन के फायदे क्या हैं?
रीडिंग रिसर्च की दुनिया में स्वतंत्र पठन शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। स्वतंत्र पठन का अर्थ है, “बच्चे जब खुद से अपने पसंद की किताबों (कहानियां, पत्रिकाएं इत्यादि) का चुनाव करते हैं। किसी की मदद के बग़ैर आनंद के साथ पढ़ते हैं। अपने पठन कौशलों का सफलता के साथ इस्तेमाल करते हैं, तो उसे स्वतंत्र पठन कहते हैं।”
स्वतंत्र पठन में सबसे ख़ास बात है चुनाव की स्वतंत्रता। बच्चे अपने स्तर के अनुरूप किताब का चुनाव खुद करते हैं। अपनी पसंद की किताब को पढ़ने के दौरान हम अपने पठन कौशल के दायरों को कब तोड़ने लगते हैं, हमें खुद अंदाजा नहीं होता। उदाहरण के लिए हममें से कई लोगों ने अपने दौर में कॉमिक्स पढ़ी होगी।
इसे लोगों से छुपाकर पढ़ना पड़ता था। कभी किताबों के बीच रखकर पढ़नी पड़ती थी। इस तरह से होने वाली पढ़ाई का फायदा यह हुआ कि हिंदी अच्छी हो गई। हिंदी की किताबों को समझ के साथ पढ़ना संभव हो सकता। इसीलिए यह बात बार-बार कही जाती है कि बच्चों को अपनी पसंद की किताबें चुनने और पढ़ने का मौका मिलना चाहिए।
रणनीतियों का उपयोग
दूसरी ग़ौर करने वाली बात है पढ़ने की रणनीतियों का उपयोग। जो बच्चा पढ़ना जानता है वह अपनी डिकोडिंग स्किल का इस्तेमाल करता है ताकि यह जान सके कि किसी लिखित सामग्री में कौन सी चीज़ पढ़नी है। इससे उसे किसी शब्द का अर्थ न आने वाली स्थिति में भी पैराग्राफ को पढ़कर समझने में मदद मिलती है। क्योंकि बच्चा अनुमान लगा पाता है कि उस शब्द के मायने पैराग्राफ के संदर्भ में क्या हो सकते हैं। पढ़ने के दौरान बच्चे डिकोडिंग के साथ-साथ समझने की रणनीतियों का इस्तेमाल भी करते हैं। इसमें बच्चे जिस सामग्री को पढ़ रहे होते हैं, उसके बारे में सोचते हैं। उससे मिलने वाली जानकारी को अपने पूर्व-अनुभवों से जोड़ते हैं। उस पर सवाल खड़ा करते हैं और अपनी राय बनाते हैं।
इन पंक्तियों को पढ़ते समय हमारे मन में यह सवाल आ रहा होगा कि बच्चे इन कौशलों को कब सीखते हैं? शिक्षक जब बच्चों के सामने पढ़ते हैं। दो बच्चों को एक साथ बैठकर किसी किताब को पढ़ने का अवसर देते हैं। या फिर बच्चों के साथ-साथ किसी किताब को पढ़ते हैं। इस दौरान बच्चों में उपरोक्त कौशलों (डिकोडिंग व समझने) का विकास हो रहा है। इसीलिए पुस्तकालय के कालांश में पठन की रोचक गतिविधियां (मुखर वाचन, सह-पठन, जोड़ों में पठन) करवाने की बात होती है।
शिक्षक की भूमिका
आखिर में सबसे महत्वपूर्ण सवाल पर लौटते हैं कि स्वतंत्र पठन की गतिविधि के दौरान शिक्षक की क्या भूमिका होगी? बच्चे तो पसंद की किताबें ले रहे हैं। पढ़ रहे हैं। तो फिर पुस्तकालय कालांश में शिक्षक की क्या जरूरत है? इसका जवाब है कि पुस्तकालय कालांश में शिक्षक की मौजूदगी जरूरी है ताकि वे बच्चों को पढ़ते हुए सुनें। यह देख सकें कि बच्चे डिकोडिंग और समझने की रणनीतियों का इस्तेमाल कैसे कर रहे हैं। बच्चों को सपोर्ट करने के लिए उनसे कुछ सवाल पूछे जा सकते हैं। उस किताब के बारे में बताने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है जो उन्होंने पढ़ी है।
स्वतंत्र पठन से बच्चे में धारा-प्रवाह ढंग से पढ़ने और समझने का कौशल विकसित होता है। इसके साथ ही बच्चे का शब्द भण्डार व्यापक होता है। वह लिखित सामग्री को पढ़ने में एक सहजता हासिल करता है। स्वतंत्र रूप से पढ़ने की आदत के साथ उन्नत होने वाला पठन कौशल बच्चे को स्वतंत्र पाठक बनने की दिशा ले जाता है, जो अर्ली लिट्रेसी के विभिन्न कार्यक्रमों का अंतिम लक्ष्य भी है।
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