मनोविज्ञानः आज भी प्रासंगिक है अब्राहम मास्लो का ‘आवश्यकता पदानुक्रम सिद्धांत’

मानवतावादी मनोवैज्ञानिक अब्राहम मास्लों का प्रसिद्ध कथन है, “एक इंसान जो बन सकता है, उसे अवश्य बनना चाहिए।”
अब्राहम मास्लो एक मानवतावादी वैज्ञानिक थे। उन्होंने साल 1943 में एक पर्चा लिखा जिसका शीर्षक था, “मानव अभिप्रेरण का एक सिद्धांत (A Theory of Human Motivation)।
इसमें उन्होंने कहा, “इंसान की आवश्यकताओं को प्रेरणा के अनुसार एक पिरामिड के रूप में दर्शाया जा सकता है। इस क्रम में अभाव तथा वृद्धि दोनों तरह की आवश्यकताएं शामिल हैं।”
उन्होंने अपने इस सिद्धांत में इंसान की जन्मजात जिज्ञासा से जुड़े अपने अवलोकन को शामिल करने के लिए विस्तार प्रदान किया।
आवश्यकताओं का पदानुक्रम
1.अब्राहम मास्लों के इस सिद्धांत में पिरामिड के सबसे निचले स्तर की आवश्यकताओं को प्राथमिक आवश्यकताओं का नाम दिया गया है, जिसमें दैहिक आवश्यकताएं तथा भूख-प्यास को शामिल किया गया है।
2.उनका मानना था कि इंसान की बुनियादी जरूरतों के पूरा हो जाने के बाद उसके भीतर डर पैदा करने वाली स्थितियों से मुक्त होने की आवश्यकता महसूस होती है, इसे सुरक्षा की आवश्यकता (Safety Need) कहा गया है।
3. इस सिद्धांत के अनुुुसार आवश्यकताओं के क्रम में अगली आवश्यकता दूसरों का प्यार पाने और दूसरों को प्यार करने की है। इसे आसक्ति या अटैचमेंट नीड की संज्ञा दी गई है।
4. उपरोक्त सभी आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाने के बाद हम आत्मसम्मान तथा दूसरों से सम्मान पाने की आवश्यकता का अनुभव करते हैं। इसके बाद हम संज्ञानात्मक आवश्यकताओं की तरफ बढ़ते हैं।
5. पिरामिड के शीर्ष पर आत्मानुभूति की आवश्यकता का जिक्र है। निचले स्तर की बाकी आवश्यकताओं को पूरा करने के बाद इंसान इस आवश्यकता पर अपना पूरा ध्यान केंद्रित करता है।
इसमें ज्ञान की तलाश, समझ के विकास, सौंदर्य, जीवन में अर्थ की तलाश और अपनी संभावनाओं को साकार करने की इच्छा प्रबल होती है, जो इंसान के आगामी सफर की दिशा और दशा तय करती है।
मास्लो के सिद्धांत की समालोचना
अब्राहम मास्लो के इस सिद्धांत की आलोचना भी की गई कि इंसान की आवश्यकताओं के उत्पन्न होने का ऐसा कोई निर्धारित क्रम नहीं होता है। हो सकता है कि किसी इंसान की बुनियादी जरूरतें न पूरी हो पा रही हों और उसे अपने अस्तिव के सवाल बेचैन कर रहे हों और वह ज़िंदगी के मायने की तलाश के सफर पर बढ़ चले।
मास्लो के इस सिद्धांत के अनुसार इंसान की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने को सर्वोच्च वरियता दी जानी चाहिए क्योंकि इसके बग़ैर इंसान का सामान्य जीवन अस्त-व्यस्त हो जायेगा। किसी इंसान के सामान्य जीवन के लिए मनोवैज्ञानिक जरूरतों जैसे रिश्तों व स्नेह का होना भी जरूरी है।
इसके साथ ही आत्म-सम्मान और दूसरों से मिलने वाले सम्मान की एक इंसान की आत्म-छवि को बहुत हद तक प्रभावित करते हैं। इन उपरोक्त जरूरतों की पूर्ति एक इंसान को जीवन में उच्च लक्ष्यों और आध्यात्मिक आवश्यकताओं की तरफ बढ़ने के लिए प्रेरित करती है।
Very Nice sir