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‘कविता इस तरह सुननी चाहिए कि बुद्धि का उस पर अतिक्रमण न हो’ – उदयन वाजपेयी

udayan-vajpayiउदयन वाजपेयी ने कविताओं पर अपने विचार रखते हुए कहा कि शिक्षकों को ज्यादा सवाल खुद से पूछना चाहिए। पढ़ाना खुद में एक फन है। लेखक होना भी फुरसत का समय निकालने का एक ढंग है। उन्होंने प्रतिभा शब्द का विश्लेषण करते हुए कहा कि प्रतिभा ‘भा’ शब्द से बनी है, भा का अर्थ होता है रौशनी, यानि प्रतिभा का एक गुण है नव नवोन्मेषी होना, जो हमेशा लगातार एक नई बात पैदा करती है। बुद्धि नई चीज़ों को पुराने सांचे में ढालने की कोशिश करती है।

‘एक कवि सिर्फ़ इंतज़ार कर सकता है’

बुद्धि को नया विचार डराता है, इसलिए कविता लिखने की कोशिश या रचनात्मकता में बुद्धि के प्रभाव को सीमित करना पड़ता है। उन्होंने कहा, “हमें कविता इस तरह सुननी चाहिए कि बुद्धि का उस पर अतिक्रमण न हो पाए।“ एक कवि का मन लगातार विभाजित रहता है। उसके लिए जरूरी होता है कि अपनी बुद्धि को रोकना और नये विचार को आने देना। लेखन के संदर्भ में वे कहते हैं कि एक कवि सिर्फ़ इंतज़ार करने के अलावा कुछ नहीं कर सकता। जब कविता आती है तो बाँध तोड़कर आती है। अगर आप उस समय बुद्धि को रोक नहीं सकते तो आप लिख नहीं सकते।

उन्होंने पढ़ने के महत्व को भी इस सत्र में रेखांकित किया। उन्होंने कहा, “जानने की इच्छा या जिज्ञासा सबके भीतर है। पढ़ने में जो बुनियादी तत्व है उसमें शब्द ध्वनि में बदलता है। हमारे भीतर सुनने का धीरज होना चाहिए। हमाने मन में समता होनी चाहिए ताकि आपको किसी व्यक्ति का बोला हुआ ग़ैर-जरूरी न लगे।

एक जरूरी सुझाव

उदयन वाजपेयी ने अपनी बात रखते हुए कहा कि यह हमारे समय की समस्या है कि हम सुनना नहीं चाहते। सुनना बिना किसी सेंसरशिप के होना चाहिए, हर इंसान में विवेक की संभावना है इसलिए बग़ैर भेदभाव के आप छात्रों को सुनिए। आदिवासी अंचल या ग्रामीण क्षेत्रों में अगर हम बच्चों के माता-पिता को स्थानीय भाषा में कहानियां या गीत सुनाने व अपने अनुभव शेयर करने के लिए बुलाते हैं तो उनके ज्ञान को विद्यालयी परिवेश में ज्ञान का दर्ज़ा मिलता है। इसका बच्चों के ऊपर सकारात्मक असर पड़ता है।“

 

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