बच्चों को ‘अच्छा फीडबैक’ कैसे दें शिक्षक?

एक अच्छा फीडबैक बच्चों के विकास में सहायक होता है।
‘फीडबैक’ के बारे में मेरे एक दोस्त कहते हैं, ” फीडबैक देने की नहीं, लेने की चीज़ है।” यहां उनका आशय है कि हमें किसी व्यक्ति को फीडबैक या सुझाव तभी देना चाहिए जब वह इसे स्वीकार करने के लिए मानसिक रूप से तैयार हो।
कैसे दें फीडबैक?
अगर हम क्लासरूम के संदर्भ में फीडबैक को समझने की कोशिश करें तो ऐसे बहुत से मौके आते हैं जब शिक्षक पूरी क्लास को कोई बात समझा या बता रहे होते हैं या कुछ बच्चों की बातों को आधार बनाकर पूरे क्लास के लिए कोई बात कह रहे होते हैं। ऐसे स्थिति से ज्यादा बेहतर होगा कि बच्चों के साथ कुछ मसलों पर व्यक्तिगत संवाद किया जाए और पूरी क्लास से जुड़ी बात को सामूहिक रूप से कहा जाए।
व्यक्तिगत फीडबैक है महत्वपूर्ण
बच्चों को व्यक्तिगत रूप से फीडबैक देने का महत्व तब पता चला जब मैं राजस्थान में रूम टू रीड के साथ लिट्रेसी प्रोग्राम में काम कर रहा था। एक स्कूल में दूसरी कक्षा में पढ़ने वाले सभी बच्चों के साथ एक-एक करके होने वाली बातचीत से बच्चों की पारिवारिक पृष्ठभूमि के साथ-साथ उनके घर पर पढ़ाई में सपोर्ट करने वाला कौन है। उनको क्लासरूम में पढ़ाई के दौरान क्या दिक्कत होती है।
पढ़ने के मामले में उनको कहाँ समस्या हो रही है? बच्चों की वर्तमान स्थिति क्या है? उनको कहाँ पर सपोर्ट की जरूरत है? बच्चों का आत्मविश्वास कैसे बढ़ाया जा सकता है? वह कौन का क्षेत्र है, जहाँ उनकी तारीफ करने की जरूरत है कि उन्होंने अपने प्रयास से बेहतर करने में सफलता पाई है।
कैसे करें फीडबैक देने की शुरूआत?
अच्छा फीडबैक देने का एक गुरूमंत्र है कि हम सकारात्मक बातों से शुरूआत करें। आलोचनात्मक माहौल में ऐसा करना और भी जरूरी हो जाता है। ताकि सामने वाले को यह पता चले कि ख़ासतौर पर उसने कौन सी चीज़ बहुत अच्छे से की है। कहां पर उसके प्रयास एकदम सटीक रहे हैं। इससे बच्चों को अपना काम उत्साह के साथ जारी रखने का प्रोत्साहन मिलता है।
बच्चों के साथ बातचीत करते समय कुछ बातें हमको सीधे-सीधे बतानी होती हैं। वहीं कुछ बातों के लिए हमें सवालों का सहारा लेकर उनको अपने जवाब खुद खोजने के लिए प्रेरित करने का तरीका ज्यादा कारगर होता है।
जैसे अनुमान लगाने का कौशल विकसित करने के लिए कहानी सुनाने से पहले चित्रों पर चर्चा के दौरान बच्चे बहुत से रचनात्मक जवाब देते हैं, जिसको सही-गलत की परिभाषा में बांधे बग़ैर हमें उनकी बात को आगे रखना होता है। ऐसे ही कहानी को बीच में रोककर यह पूछना कि कहानी में आगे क्या हो रहा होगा? बच्चों को अपना विकल्प चुनने और खुद से सोचने का मौका देता है। ऐसे ही कुछ रचनात्मक सवाल जैसे अगर आप कहानी में उस पात्र की जगह होते तो क्या करते? ऐसे सवाल बच्चों को खुद से सोचने के लिए और अपने जवाब के साथ आने के लिए प्रेरित करते हैं।
बच्चों को चुनाव का अवसर दें
कुल मिलाकर हमें बच्चों के सामने विकल्प रखने होते हैं। समाधान तक पहुंचने की प्रक्रिया से उनको गुजारना होता है ताकि वे खुद सोच सकें। स्वतंत्र चिंतन के माध्यम से अपने परिवेश को बेहतर ढंग से समझने का प्रयास कर सकें। ऐसे प्रयासों को गति देने में गुणवत्तापूर्ण फीडबैक या सुझाव की अहम भूमिका होती है। ऐसे क्षेत्र जहाँ पर बच्चे का प्रयास जारी है, वहां सिर्फ प्रोत्साहन तक खुद को सीमित करना बेहतर होता ताकि बच्चा स्वाभाविक विकास की प्रक्रिया में उस स्तर तक पहुंच जाए जहाँ वह किसी मिलने वाले फीडबैक को अपना पाए।

सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे अपना लिखा हुआ दिखाते हुए।
नकारात्मक फीडबैक से ऐसी संभावनाओं पर विपरीत असर पड़ता है, इसलिए जरूरी है कि फीडबैक संभावनाओं की तरफ ले जाना वाला हो। प्रोत्साहित करने वाला हो। एक-दूसरे को सपोर्ट करने वाला माहौल बनाने की दिशा में हो ताकि बच्चे अपनी क्लासरूम को एक संसाधन की तरह देख सकें जहाँ वे सवालों के साथ-साथ उनके जवाब को खोजने के लिए सामूहिक प्रयासों का इस्तेमाल कर सकते हैं।
ऐसी आदतों का विकास बच्चे और शिक्षक के बीच रिश्ते को प्रगाढ़ बनाता है। बच्चे अपने मन में चलने वाली बातों को शिक्षक के साथ बेझिझक साझा करते हैं क्योंकि उनको पता होता है कि उनकी बात को सुना जाएगा। उनको समझने की कोशिश की जाएगी और उनके ऊपर सवाल नहीं खड़ा किया जाएगा। फीडबैक की प्रक्रिया में एक-दूसरे पर ऐसा भरोसा ‘ऑक्सीजन’ की तरह काम करता है।
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