राष्‍ट्रीय पाठ्यचर्या 2005, शिक्षा के परिप्रेक्ष्य के बारे में क्या कहती है?

इस पोस्ट के लेखक कौशलेंद्र सिंह की शिक्षा से जुड़े सरोकारों और सवालों में गहरी रूचि है। उन्होंने राजस्थान के अलावा उत्तर प्रदेश में शिक्षा के क्षेत्र में सरकारी विद्यालयों के साथ काम किया है। उनकी पहली पोस्ट में आपने बालगीत के माध्यम से कक्षा के माहौल को रोचक बनाने के बारे में चर्चा की गई थी। इस पोस्ट में पढ़िए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा – 2005 के बारे में सरल भाषा में लिखा है। यह पोस्ट शिक्षा के परिप्रेक्ष्य पर केंद्रित है।

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यह तस्वीर उत्तर प्रदेश के एक सरकारी विद्यालय की है।

शिक्षा का अर्थ सीखने से है, यह सीखना कहीं से भी हो सकती है परिवार,परिवेश,स्कूल, धर्म,जाति , संस्कृति, इत्यादि!” अगर एनसीएफ़-2005 को भी ध्यान  से देखें तो वो भी यही कहता है, सीखना- बच्चों को अपने ज्ञान को जैविक व जीवंत तरीके से जीवन से जोड़ने को प्रोत्साहित करना! और वो जीवन के सारे तार आपके परिवेश से ही जुड़े होते हैं और ऊपर दिये हुए घटक उनही परिवेश से संबन्धित है!

अगर हम आज की शिक्षा की बात करें, जो की स्कूलों के माध्यम से हम बच्चों को देने का प्रयास कर रहे हैं,उसमें हम ये मानकर चलते हैं बच्चे ज्ञान के ग्रहणकर्ता मात्र हैं, और हम ढेर सारा ज्ञान पिलाते हैं उनको,उसके बाद हम उस ज्ञान का परीक्षण करते हैं ,जिसका आधार सिर्फ पुस्तकें हैं! शायद ऐसा इसलिए है कि कहीं न कहीं हमें बच्चों के सामर्थ्य पर भरोसा नहीं है!

बच्चों के लिए अनुभवों से सीखने की राह बने आसान

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राजस्थान के एक सरकारी विद्यालय में पढ़ना सीखने में अपने दोस्तों की मदद करते बच्चे।

“हमें यहाँ पर अपनी सोच में थोड़ा सा बदलाव लाने कि जरूरत है, हमें बच्चों को अपने में पूर्ण मानकर अपनी शिक्षण विधियों को ऐसा बनाना चाहिए जिसमे हम बच्चों को मार्ग प्रेषित करें जिसमें बच्चे अपने अनुभवों से ज्ञान निर्माण की क्षमता को पहचान सकें, उस पर कार्य कर सकें, और उसका वर्धन कर सकें”!

“स्कूली शिक्षा,मतलब हम बच्चों के लिए एक आदर्श वातावरण बनाना चाहते जहां वो सीख सके ,बड़ा प्रश्न है किससे? , तो उत्तर है अध्यापक जो कि उसके सामने एक आदर्श इंसान कि तरह है जिसने अपने अनुभवों के माध्यम से सीखा है, इस समाज में रहकर तो हम उसके माध्यम से बच्चों को सहायता प्रदान करते हैं कि वो भी अपने अनुभवों को रच सकें तथा उसको ज्ञान का रूप दे सकें ताकि वो हमेशा के लिए उनमे रच और बस जाये!यहाँ पर अध्यापक रोल मॉडल कि तरह कार्य करता है!

हम बच्चों को कैसा इंसान बनाना चाहते हैं?

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उत्तर प्रदेश के एक सरकारी विद्यालय में कक्षा के दौरान लिखने का काम करते हुए बच्चे।

अब हम ये सोचें कि हम उसके अनुभव से उसको क्या देने का प्रयास कर रहे है, और क्यूँ? देना चाहते हैं उसको? वह स्वयं के अनुभव से हो तथा स्वयं निर्मित हो, देना इसलिए चाहते हैं कि प्रत्येक बच्चा राष्ट्र का जिम्मेदार नागरिक बन सके जैसा कि हम अपनी संविधान में कल्पना करते हैं, अब वो चीजें हैं क्या? संवेदनशीलता पैदा हो उस इंसान में ताकि वो मानव मूल्यों को समझ सके तथा उसका सम्मान करे।

इसके साथ ही अपनी चीजों से सीखने में सक्षम हो तथा अपने अनुभवों का उपयोग कर आज कि स्थिति के अनुसार अपने आप को बेहतर ढंग से ढाल सके,तथा भविष्य कि स्थितियों एवं परिस्थितियों के अनुसार अपने आपको ढाल सके!अगर वो ऐसा कर पाने में सक्षम है तो हम अपने स्कूली शिक्षा का जो ध्येय है उसको प्राप्त कर पा रहे है! इसे हम एनसीएफ़ 2005 से जोड़कर देख सकते हैं, जिसमे लिखा है “रचनात्मक स्वभाव,रचनात्मक स्वभाव का सदुपयोग”!

एनसीएफ के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य क्या है?

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यह तस्वीर दिल्ली के एक सरकारी विद्यालय की है।

निश्चित परिस्थितियों का सूक्ष्म अध्यन,उनको समझना आत्मसात करना तथा उन चीजों को व्यवहार में लाना तथा उसके अनुसार व्यवहार करना! अब ये परिस्थितियाँ कौन सी हैं , तथा कहाँ से आयीं ये भारतीय संविधान से निर्गत होती है, तथा ये लोकतन्त्र, समानता, न्याय, स्वतन्त्रता, धर्मनिरपेक्षता, अधिकार हैं, मेरी समझ से!

नयी परिस्थितियों के प्रति लचीले व रचनात्मक तरीके से प्रतिक्रिया व्यक्त करना! संवाद और विमर्श के लिए जगह पैदा करना तथा सौन्दर्य व कला के विभिन्न रूपों को समझना!

संवाद और विमर्श के लिए जगह पैदा करना,लेकिन वो तार्किकता पर आधारित हो न कि दक़ियानूसी सिद्धांतों पर,पर इतना तार्किक भी न हो जाना कि वो तर्क जिद में परिवर्तित हो जाए और दूसरों के तर्क को हम अनदेखा कर दें!वैसे अतर्क अपने आप में इतना पूर्ण है कि वो ऐसा होने नहीं देगा !

स्कूली शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य

बच्चों को स्कूली परिवेश में ऐसा बनाना जिससे कि उनमें प्रश्न पूछने कि क्षमता आ सके,तथा उस पर तर्क कर सकें, उसमें कमी हो तो अपना मूल्यवान सहयोग दे सकें, य उसे नकार सकें!

स्वयं,समाज एवं पर्यावरण को समझते हुए अपने तर्कों के आधार पर (संवेदनशीलता तथा सृजनात्मकता के साथ) अपनी आधारभूत तथा मजबूत समझ का प्रयोग उन पर कर सकें तथा उससे कुछ सीखें,य छोड़ें तथा आगे बढ़ें और जीवन जीने की कला का निर्माण कर सकें!

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दिलशाद गार्डन में दिल्ली के सरकारी स्कूलों के बच्चे ले रहे हैं ‘हम भारत के लोग…’ की भावना जागृत करने के लिये ‘संविधान की प्रस्तावना’ की शपथ!

बच्चों को ऐसे अनुभवों से गुजारना जिससे कि उनमें भारतीय संविधान के प्रति झुकाव हो, तथा उसमें उनकी आस्था जागे,अगर एक बार उसमें आस्था जग गयी तो उसकी चीजों को वो आत्मसात करेंगे तथा अपने आपको उसके अनुरूप ढलने कि कोशिश जरूर करेंगे!

बच्चों को मानवीय मूल्यों के प्रति संवेदनशील बनाना,उनमें उनकी आस्था को प्रज्वलित करना जिससे कि उनके महत्व को वो समझ सकें,तथा अपनी निर्भरता उन पर देख सकें तथा उनकी अपने पर जिससे कि समानता का भाव जगे  उनके भीतर,जो कि उंच-नीच के खाईं को पाटने में मदद करेगा!

पर्यावरण के प्रति उनको संवेदनशील बनाना जिससे कि वो इस पर आत्म चिंतन कर सकें,निकट भविष्य में तथा पुरजोर कोशिश करें कि उनकी तरफ से कभी कोई पर्यावरण हानि न हो तथा दूसरों को भी उसकी उपयोगिता बता सकें!

अपने परिवेश तथा अनुभवों से सीखें,जरूरत तथा समय पड़ने पर उस पर प्रश्न करें, अगर वो उसको संतुष्ट नहीं कर प रही हैं, तो उसको वही छोड़ दें तथा नयी चीजों को ग्रहण करने के लिए तैयार हो यही शिक्षा का महत्व है! (Learn—-Unlearn——Relearn)

कैसे आयेगी स्कूली शिक्षा में गुणवत्ता?

स्कूली शिक्षा की पहुंच में विस्तार के बाद जो सबसे अहम सवाल हम सभी के सामने हैं, वह है शिक्षा में गुणवत्ता का सवाल। इसके लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा -2005 में निम्न बिंदुओं पर चर्चा की गई है।

ज्यादा से ज्यादा चीजों को उनके अनुभवों के साथ जोड़कर दिखाने का प्रयास करें,उनकी -अपने अनुभवों के प्रति स्वीकार्यता हो,तथा जरूरत पड़ने पर उस पर प्रश्न करने की क्षमता हो!

Thane-Municipal-Corporation-schoolबच्चों के लिए सीखने और करने ढेर सारे अवसरों की उपलब्धता होनी चाहिए!

हम विषयवस्तु को जितना समृद्ध बना सकें उतना बेहतर होगा,तथा साथ ही साथ पढ़ाने के भी ढेर सारे तरीके हों, न हों तो इनको विकसित करने के प्रयास किए जाएँ!

सभी विद्यालयों में आधारभूत सुविधाएं हों,ताकि बच्चों के मन में बार-बार उनके लिए प्रश्न न उठें, और उनकी एकाग्रता में बाधा पहुंचे!

(इस पोस्ट के लेखक कौशलेंद्र सिंह ने विभिन्न शैक्षणिक संस्थाओं के साथ काम किया है। शिक्षकों और बच्चों के साथ उनका ख़ास जुड़ाव है। साहित्य के प्रति उनका लगाव उनको सतत लिखने और पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करता है। शिक्षकों के बीच चर्चाओं का माहौल बनाना और सवालों के जवाब खोजने के लिए प्रेरित करना उनको विशेष रूप से पसंद है।)

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