राजस्थान के सिरोही ज़िले के एक प्रधानाध्यापक की सेवानिवृत्ति के मौके पर गाँव के लोग, इस स्कूल में काम कर चुके पूर्व-शिक्षक, पूर्व छात्रों के साथ-साथ नोडल स्कूल के अंतर्गत आने वाले अन्य शिक्षकों ने भी हिस्सा लिया।
पूरे समारोह की सबसे खास बात लोगों की स्वैच्छिक भागीदारी और अपने शिक्षक के प्रति गहरे प्रेम का भाव था। इस स्कूल में 200 से ज्यादा बच्चों का नामांकन है। मगर प्रधानाध्यापक के अतिरिक्त शिक्षक सिर्फ दो ही हैं। अपने स्कूल की ऐसी स्थिति का दर्द प्रधानाध्यापक जी की ‘रिटायरमेंट स्पीच’ से झलक रहा था।
’37 साल की नौकरी में ऐसा प्रेम नहीं देखा’
इस स्कूल के पुराने छात्र और बच्चे रो रहे थे। उनके आँसू बड़े स्वाभाविक थे। गाँव के लोगों ने सर को अपनी तरफ से एक आलमारी भी भेंट की। कार भेंट करने की खबर पढ़ी थी। आलमारी भेंट करने वाले दृश्य का खुद साक्षी बनने का मौका मिला। स्कूल में तकरीबन 600 से ज्यादा लोग मौजूद थे। इसमें बच्चों के अभिभावक भी शामिल थे। गाँव के लोगों ने नारियल और अन्य उपहार देकर स्कूल की सेवा के लिए सर का शुक्रिया अदा किया।
अपने शिक्षक को विदाई देने के लिए इस स्कूल के पूर्व छात्र-छात्राएं भी आए थे, जो अभी दसवीं-बारहवीं या फिर कॉलेज की पढ़ाई कर रहे हैं। इन पूर्व छात्रों के साथ-साथ स्कूल के बच्चे अपने शिक्षक को विदाई देते समय रो रहे थे। अपने शिक्षक के प्रति ऐसे प्रेम की मिशाल मैंने अपनी ज़िंदगी में पहली बार देखी थी। छोटे-बड़े सभी बच्चों को उनके जाने का दुःख था। गाँव के लोगों ने अपना समय निकालकर इस मौके पर उनके काम के प्रति लगन को सम्मानित किया।
उन्होंने अपनी एक कक्षा का जिक्र करते हुए कहा, “आज मैंने आठवीं कक्षा में हिंदी का पाठ पढ़ाया। पाठ पढ़ाते समय मेरा गला रुंध गया। मेरे बच्चों बिछड़ना काफी दुखदाई होता है। मगर मैं आपके पास हूँ।” आखिरी दिन तक काम करने की उनकी लगन ग़ौर करने लायक है। यही वह बात है जो एक शिक्षक के काम को बाकी सारे कामों से अलग करती है। उसे एक विशिष्टता देती है।
‘लड़कियों को खूब पढ़ाएं’
स्कूल की वर्तमान स्थिति की तरफ गाँव के लोगों का ध्यान आकर्षित करते हुए उन्होंने कहा, “इसी स्कूल में एक दिन नौ का स्टाफ था, मगर आज केवल दो का स्टाफ है। बदलती व्यवस्था में स्कूल अध्यापक विहीन हो गया है। मैं उन माँ-बाप को धन्यवाद देता हूँ जो अपने बच्चे-बच्चियों को स्कूल भेजते हैं। इस स्कूल में पढ़ने वाले कुल बच्चों में लड़कियों की संख्या आधी (50 प्रतिशत) है। इसके लिए उनके माता-पिता धन्यवाद के पात्र हैं, जिन्होंने लड़कियों को पढ़ने का मौका दिया है। उनको स्कूल आने के लिए प्रेरित किया है।”
उन्होंने कहा, “आप जनजाति क्षेत्र के बालक हैं। नौकरी आपके पीछे भागेगी। लड़कियों को कह रहा हूँ। लड़कों को कह रहा हूँ। आपको पढ़ाई छोड़नी नहीं है। आप कोई डिप्लोमा करते हैं। डिग्री लेते हैं और मेहनत करते हैं तो आपको नौकरी हाथों-हाथ मिलेगी। मेरा प्रेम आपसे हटेगा नहीं। मैं आपको भूलुंगा नहीं। ऐसी स्कूल मुझे कभी नहीं मिलेगी। माताओं से मेरा हाथ जोड़कर निवेदन है कि लड़कियों का स्कूल न छुड़ाएं और उनको खूब पढ़ाएं। गाँव के लोगों से निवेदन है कि मेरे बाद आप इस बगीचे का ख्याल रखिए। मैं जबतक ज़िंदा रहुंगा, इस स्कूल को अपना ही मानुंगा। ये बच्चे मेरे हैं।”