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शिक्षा दर्शनः आज भी प्रासंगिक हैं रूसो



शिक्षा में प्रकृतिवाद का श्रेय रूसों को जाता है. (तस्वीरः साभार टेलीग्राफ़)

बच्चों की शिक्षा से संबंधित सिद्धांत और व्यवहार दोनों पर अनेक दार्शनिकों व चिंतकों के विचारों का प्रभाव पड़ा है. इनमें से हर किसी का योगदान काफ़ी महत्वपूर्ण है. कुछ दार्शनिकों ने बच्चों की प्रकृति (स्वभाव) की चर्चा की।  वहीं अन्य दार्शनिकों ने शिक्षा में सुधार की जरूरत का मुद्दा उठाया, जबकि अन्य लोगों ने बच्चों के सीखने की प्रक्रिया से संबंधित नये उपागमों का सुझाव पेश किया.

ज्यां जाक रूसो (1712-78)

18वीं शताब्दी के महान दार्शनिकों में से एक ज्यां जाक रूसो के शैक्षिक दर्शन की झलक उनकी आत्मकथा ‘एमीली’ (Emile) में मिलती है. हालांकि मूलतः यह एक साहित्यिक कृति है जो संभ्रांत और तथाकथित विद्वान यूरोपीय समाज के सामने शिक्षा का एक वैकल्पिक मॉडल पेश करने के लिए लिखी गई थी.

इस किताब में रूसों एक काल्पनिक लड़के एमीली को व्यक्तिगत शिक्षा प्रदान करने की प्रक्रिया के बारे में लिखते हैं. एमिली को प्रकृति के अनुरूप निर्धारित एक योजना के तहत शिक्षा दी गई थी. इस कहानी के माध्यम से रूसो शिक्षा की एक वैश्विक व्यवस्था का प्रतिपादन करते हैं.

उपदेश की परंपरा के विरोधी

रूसो की शिक्षा का दर्शन प्रकृतिवादी था. वह पारंपरिक और औपचारिक शिक्षा की व्यवस्था के ख़िलाफ़ थे. रूसो ने महसूस किया कि बाल्यावस्था में नैतिक निर्देशों और औपचारिक शिक्षा के लिए कोई जगह नहीं थी, क्योंकि इसके लिए पर्याप्त तार्किक क्षमताओं की जरूरत होती है, उनको लगा कि छोटे बच्चों में इस तरह के कौशल का अभाव होता है. रूसो मानते थे कि ज्ञानेन्द्रियों के प्रशिक्षण और शारीरिक शिक्षा से आगामी अवस्था में स्वतंत्र तार्किक और निर्णय क्षमता के विकास की शुरुआत होती है.

शिक्षण विधि के संबंध में रूसो ‘ख़ुद से सीखने’ के समर्थक थे. वह शिक्षा में उपदेशवाद के पूरी तरह ख़िलाफ़ थे, उनको लगता था कि शिक्षकों का इस दिशा में अत्यधिक झुकाव था.

रूसो मानते थे कि केवल आज़ादी के माहौल में ही बच्चों की आंतरिक क्षमताओं का स्वतःस्फूर्त विकास संभव हो सकता था. उनको लगता था कि बच्चों को जाबूझकर या औपचारिक रूप से दण्डित नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि बच्चे प्राकृतिक निष्कर्षों के माध्यम से सीखेंगे औ स्वतः ऐसे व्यवहार से बचेंगे जो उनको तकलीफ देने वाला हो.

रूसो प्रत्येक बच्चे की स्वभाविक अच्छाई में गहरा विश्वास करते थे. शिक्षाविदों की तमाम पीढ़ियों पर तमाम ऐसे विचारों का असर है जिनका श्रेय रूसो के प्रभाव को जाता है. अगर हम ग़ौर से देखें तो आज भी शिक्षा से जुड़ी तमाम चीज़ें पर उनके विचारों का असर दिखाई देता है जैसे सीखने का प्रमुख सिद्धांत खेल है. बच्चों का जीवन पढ़ाई से बोझिल नहीं होना चाहिए जो उनके लिए अरुचिकर और महत्वहीन है.

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