अभी का माहौल ऐसा है कि जिन बच्चों को क्लास में होना चाहिए वे गाँव में घूम रहे हैं। ऐसे बच्चे जिन्हें खेलना-घूमना चाहिए वे क्लास में पढ़ाई कर रहे हैं। ऐसी स्थिति देखकर लगता है कि शिक्षक शायद इस बारे में सोचते ही नहीं कि उनके काम से आने वाले समय में क्या असर होगा?
भविष्य पर असर
पहली स्थितिः जब पहली-दूसरी एक साथ बैठती हैं।
पहली-दूसरी क्लास को एक साथ बैठाने के कारण पहली क्लास के बच्चों का सीखना प्रभावित हो रहा है। किसी सवाल का जवाब देते समय दूसरी क्लास को देखकर बोलने का मौका भले ही मिल रहा हो, मगर क्लास में बहुत से ऐसे मौके आते हैं जब छोटे बच्चे खामोश रह जाते हैं। या उनके सवालों के जवाब कोई और बच्चा दे देता है। अगर किसी बच्चे को खुद से सवालों का जवाब खोजने और उसे बताने का मौका नहीं मिलेगा, तो उसे यही लगेगा कि यह सारी चीज़ें करना तो उसके वश की बात नहीं है। इससे बच्चे का आत्मविश्वास कमज़ोर होगा और उसके सीखने का स्तर उसकी कक्षा के अनुरूप नहीं होगा।
दूसरी स्थितिः जब आंगनबाड़ी वाले बच्चे पहली क्लास के बच्चों के साथ बैठते हैं।
यह स्थिति ऐसी गंभीर स्थिति की तरफ ध्यान दिलाती है जब क्लास में तीस के आसपास बच्चे होते हैं। ऐसे में शिक्षक हर बच्चे तक नहीं पहुंच पाता। उसे बाकी बच्चों के बीच पहली क्लास में पढ़ने वाले बच्चों को खोजना पड़ता है। कुछ बच्चों के आधार पर पूरी क्लास के बारे में अनुमान लगाना होता है कि पूरे क्लास की क्या स्थिति है।
ऐसे में बेहद जरूरी है कि पहली क्लास के बच्चों को अलग से बैठाएं। क्योंकि बाकी बच्चों को साथ में पढ़ाते हुए पहली क्लास के ऊपर पर्याप्त ध्यान देना एक शिक्षक के लिए संभव नहीं होता है। ऐसे में परिणाम अपेक्षा के अनुसार नहीं होंगे, यह बात भी एक शिक्षक को समझनी चाहिए।