स्कूल की ‘आंगनबाड़ी’ से किसका भला होगा?
लंबे समय से यह मांग होती रही है कि सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के प्री-स्कूलिंग के लिए भी क़दम उठाना चाहिए ताकि इन बच्चों को भविष्य की पढ़ाई के लिए पहले से तैयार किया जा सके। उनको पढ़ने और किताबों के आनंद से रूबरू करवाया जा सके।
सरकारी स्कूलों की स्थिति को सुधारने में आंगनबाड़ी की एक अच्छी भूमिका हो सकती है। मगर इस तरफ अभी बहुत ध्यान नहीं दिया जा रहा है। बच्चों को स्कूल भेजने के लिए बढ़ने वाली जागरूकता का असर हुआ है कि गाँव में जिनके बच्चे निजी स्कूलों में नहीं जाते ऐसे अभिभावक अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेज रहे हैं।
स्कूल की ‘आंगनबाड़ी’
बच्चों की ‘परवाह’ नहीं
आदिवासी क्षेत्रों में और गाँवों में खेती से जुड़े कामों को प्राथमिकता दी जाती है, ऐसे में जब फसल की कटाई का समय आता है कि तो बच्चे घर वालों के साथ खेतों पर चले जाते हैं, या फिर घर पर पशुओं बकरियों इत्यादि की देखभाल के लिए रुकते हैं। छोटे बच्चों की देखभाल भी एक जरूरी काम माना जाता है। बड़े अपना समय बचाने के लिए यह जिम्मेदारी बच्चों पर डाल देते हैं। ऐसे में बड़े बच्चे अगर स्कूल आते हैं तो छोटे भाई-बहनों को साथ लेकर आते हैं। बड़े बच्चे जो पहली क्लास में पढ़ रहे हैं वे शिक्षकों से कहते हैं कि सर इसका भी नाम लिखो।
स्कूल के रजिस्टर में 6 साल के कम उम्र के बच्चों का नाम दर्ज़ है। ऐसी स्थिति में क्या किया जा सकता है। शिक्षकों का कहना होता है कि हम किसी को एडमीशन के लिए मना नहीं कर सकते। मना न करने वाली बात तो समझ में आती है। मगर अभिभावकों को इस बात के लिए भी मनाने की कोशिश करनी चाहिए कि कृपया अपने बच्चे का एडमीशन 6 साल पूरा होने के बाद ही कराएं ताकि उसे पढ़ने के दौरान ढेर सारी समस्याओं का सामना न करना पड़े।
स्कूलों छोटे बच्चों का भी नामांकन पहली क्लास में करने से उनको सीखने में कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। वे बस क्लास में बाकी बच्चों को भागीदारी करता हुआ चुपचाप देखते हैं। हँसने वाले लम्हों में ख़ुश होते हैं और आनंद लेते हैं। पढ़ना-लिखना सीखने वाली प्रक्रिया में समुचित भागीदारी निभाने से वे काफी दूर हैं। ऐसे बच्चों को ‘अंडरएज़’ कहा जाता है।
अगर स्कूलों के ऊपर आंगनबाड़ी की जिम्मेदारी आती है तो शिक्षक प्राथमिक कक्षाओं के ऊपर पर्याप्त ध्यान नहीं दे पाएंगे। इसके कारण आने वाली कक्षाओं में बच्चों का अधिगम स्तर प्रभावित होगा, जिसे आगे जाकर संभालना संभव नहीं होगा। क्योंकि सीखने की सही उम्र में अगर चीज़ें न सीखी जाएं तो आगे उन चीज़ों को सीखना बहुत मुश्किल हो जाता है। पढ़ना-लिखना सीखना भी इन्हीं कामों या कौशलों में से एक हैं।
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