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कृष्ण कुमार की कहानी

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आज स्कूल में नन्हे कृष्ण कुमार से मिलना हुआ। इनकी पेंसिल दोनों तरफ़ से छिली हुई थी। कॉपी में लिखने के साथ-साथ दोस्तों से गपशप करना इनको खूब भाता है। नन्हे कृष्ण कुमार से मुलाकात के बहाने शिक्षाविद कृष्ण कुमार याद आ रहे थे। एनसीईआरटी की रीडिंग सेल में हिंदी की कहानियों का संग्रह प्रकाशित कराने का उनका सराहनीय प्रयास याद आ रहा था., ताकि बच्चों को आसानी के साथ हिंदी भाषा पढ़ना सिखाया जा सके। हिंदी भाषा के साथ उनका एक रिश्ता जोड़ा जा सके।

जिम्मेदारी वाला काम है शिक्षक होना

इस क्लास की शिक्षिका की तारीफों के पुल बांधने का मन होता है, जिस उत्साह और ऊर्जा के साथ वे पूरी क्लास को पढ़ा रही थीं, वह माहौल देखने लायक था। उनकी साथी शिक्षिकाएं पूछ रही थीं कि क्या जादू हुआ है कि मैम पहली कक्षा के बच्चों की इतनी परवाह करने लगी हैं। उनको पढ़ाने में इतनी रुचि लेने लगी है। इन नन्ही कोशिशों का श्रेय उनकी ख़ुद की अच्छाइयों और छोटे बच्चों से स्नेह को जाता है।

थोड़ा सा श्रेय उस टीम को भी जाता है जो प्रशिक्षण के सत्र के दौरान तल्लीनता से काम कर रही थी। एक शिक्षक होना कितनी जिम्मेदारी भरा काम होता है, यह आज देखने और महसूस करने को मिला। सच्ची मेहनत का हासिल एक मुकम्मल ख़ुशी होती है, यह सबक सिखाने के लिए मैम का बहुत-बहुत शुक्रिया।

कैसे हैं कृष्ण कुमार

कृष्ण कुमार राजस्थान के एक सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं। यह डायरी उस समय लिखी थी, जब पहली कक्षा में उनसे मिला था। अभी कृष्ण कुमार दूसरी कक्षा पास करके तीसरी कक्षा में पहुंच रहे हैं। उनको हिंदी की कहानी की किताबों से बहुत लगाव है। वे किताब बड़े आनंद के साथ मन लगाकर पढ़ते हैं। इनको क्लास में शरारत करने का मौका मिल जाता है क्योंकि कोई भी काम हो बड़े रफ़्तार के साथ कर लेते हैं। इनकी सबसे अच्छी आदत है साथ के बच्चों को भी विभिन्न विषयों के सवालों को हल करने में औऱ पढ़ना सीखने में मदद करते हैं। ऐसे बच्चों का व्यवहार हमें प्रेरित करने वाला है।

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