वर्तमान शिक्षा की पूरी परिस्थिति से अवगत होने के लिए हमें विद्यालय द्वारा अपनाए जाने वाले पाठ्यक्रम को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। पाठ्यक्रम का सही सही अर्थ जानने के लिए हमें कुछ उदाहरण को अच्छी तरह समझना पड़ेगा, पहला बगीचा और माली के बीच संबन्ध, दूसरा शिल्पकार की शिल्प। इन वाक्यांशों से शिक्षा, शिक्षक और शिक्षार्थियों के बीच के संबंधो को पूरी तरह से जाना जा सकता है।
बाग और माली का उदाहरण
पहले उदाहरण को समझने की कोशिश करते है। मैंने बगीचे का नाम यहां इसलिए लिया क्योंकि बगीचा जो कि नर्सरी से अलग है जहां नवजात पौधों को उनके पोषण, रखरखाव एवं सतत वृद्धि हेतु नियमितता का पालन किया जाता है इनमें माली का योगदान अतुलनीय है। चूंकि नर्सरी में बीजों का अंकुरण होता है जिसमे पर्यावरण, परिवेश, वातावरण आदि को ध्यान में रखते हुए बौद्धिक विकास जो कि मिट्टी को ढ़ीला करने एंव खाद-पानी देने जैसा होता है।इस बीच कई नवांकुरित पौधे अत्यधिक पानी या नमी एंव मिट्टियों के गीली होने की वजह से सीधी वृद्धि नहीं कर पाते है जिसे अक्सर बगान के देखभाल करने वाले माली सहारे के तौर पर किसी लाठी या करची (बांस की पतली छड़ी) का उपयोग करते हैं ताकि उनका विकास ठीक से हो सके।
बच्चे का रोना यहां आम बात है। ऐसे समय ठीक वैसा ही समानांतर फिट बैठाना जैसा कि उन्हें घर के माहौल में मिलता है या से अलग जैसे,उन्हें मनाने के लिए तरह तरह के नुस्ख़े अपनाना जैसे कि टॉफियां, गुड़ियाँ आदि देने के अलावा और भी कई साधन दे कर कोशिश यही की जाती है कि वह अपने परिवेश में ढलें और साथ ही साथ समकक्षी के साथ घुलें-मिलें।
इस तरह से धीरे-धीरे बच्चे आपस में एक दूसरे के साथ घुलमिल जाते है और फिर इसी बीच उन्हें शब्दों व संरचनाओं से परिचय कराया जाता है जो प्राथमिकी स्तर पर पूर्ण होने के बाद उन्हें दैनिक जीवन की वो सभी चीजें समझ आने लगती है जो ग्रामीण क्षेत्र के बच्चे यूं ही सिख जाते है, पर अधिकतर बातें ये बच्चे भी नहीं जानते जैसे कि उठना,बैठना,बातें करना,खाना,पहनना आदि। अब दूसरे उदाहरण की तरफ रुख करते है,वैसे पहले उदाहरण से भी बहुत कुछ समझ आ चुका होगा।
शिल्पकार और शिल्प
हमने दूसरे उदाहरण में शिल्पकार और उनके शिल्प से ताल्लुक़ात करने की सोचा। एक शिक्षक में आज के आधुनिक समय में सिर्फ बच्चों को अध्ययन कराना ही नहीं रहता या पाठ्यक्रम को समयावधि पर पूरा कर बच्चों को आगे की कक्षा में प्रवेश करना ही नही रहता। आज के आधुनिक समय में हम शिक्षा को हरेक चीजों से जोड़कर देखने लगे है जिनमे बच्चों के समूल विकास,सतत विकास, बौद्धिक विकास, सामाजिकी-मानविकी तार्किक चिंतन आदि समाहित है।
आप बखुबी जानते होंगे एक शिल्पकार का कार्य क्या रहता है। चिकनी मिट्टी जो पूर्णतः गुथी, सुलझी व नरम एंव गीली होती है, उसको शिल्पकार एक मनचाहा आकार,रूप प्रदान करता है ठीक इसी तरह एक शिक्षक बच्चों के अंदर इन सभी गुणो को सराहे जैसे मुक्त सम्प्रेषण,सदाचार,व्यवहार, नैतिकता, संहिता आदि। यह सभी शिक्षकों का पहला दायित्व और पवित्र कर्तव्य भी रहता है कि वह सच्चे निष्ठा के साथ इस चयनित कार्य का निर्वहन करे और अधिकतर शिक्षक करते भी है पर यहां एक संशय है जो समयानुसार गुरु व शिष्य के बीच दूरियां बढ़ाई है। यह मूल्यांकन और विश्लेषण का विषय है इसे मैं दूसरे अध्य्याय में शामिल करूँगा।
दूरगामी असर
अतः एक शिल्पकार की शिल्पियों से उक्त समय मे समाज की संरचना, संस्कृति व नीतिशास्त्र से पूर्ण आंतरिक परावर्तन होता है जिसका असर दूरगामी रहता है। हम आज जो भी कर रहे है वो हमारे भविष्य की उड़ान तय करता है परन्तु हमारा आज का वर्तमान कैसा है,इन्हें हम कैसे नकार सकते है। एक विवेकशील विद्यार्थियों का यह नैतिक कर्तव्य होता है कि वह समय के मूल्यों को कैसे मापता है। इसे एक छोटे से उदाहरण से समझें, जिस तरह अच्छे उत्पाद की पहचान उनमें पाई जाने वाली विशेषताओं से लगाया जाता है ठीक वैसे ही हमने कितनी संलग्नता व तल्लीनता से विषयवस्तु को लिया या कठिन परिश्रम की, वह समय जरूर एक दिन परिभाषित कर देता है जो कि परिणाम के तौर पर मिले सम्मान से लगाया जा सकता है।
अर्थात वर्तमान परिदृश्य में वस्तुओं के बाजार में कीमत और उत्पाद की विशेषता एक दूसरे के पूरक है। ठीक ऐसे ही परिवार, समाज, राज्य या एक राष्ट्र को भविष्य निर्माताओं की हमेशा कमी खलती है, जिसका पाइपलाइन वही अध्ययनकेन्द्र है जहां से प्रत्येक साल ऐसे बच्चे उभर कर सामने आतें है जो या तो दूसरे देश पलायन कर जाते है या विदेशी कम्पनियों द्वारा हायर कर लिए जाते है, शेष बचते है कौन? कला संकाय ,वाणिज्य संकाय के बच्चे!
अर्थशास्त्र में एक नियम है उत्पाद ‘मांग और पूर्ति’ को प्रभावित करता है जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है अर्थात मांग की पूर्ति न होने से वितरण की प्रणाली पर असर पड़ता है और इनसे बाज़ार मूल्य पर भारी असर पड़ता है जिनसे मुद्रास्फीति आती है और वस्तु की कीमत सामान्य से बढ़ जाती है। यदि भौगोलिक आंकलन किया जाय तो पता चलता है वस्तु की क़ीमत अचानक बढ़ने से उत्पाद श्रृंखला प्रभवित हुई और सामान्य वर्ग पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा अतः बच्चे कुपोषण के शिकार हुए। इसी कुपोषण के कारण भारत मे प्रत्येक साल दस में चार ऐसे बच्चे होते है जो मानसिक असंतुलन के कारण कई तरह के व्याधियों से गुजर रहे होते है। ऐसे बच्चों का समग्र विकास तात्कालिक प्रभाव में रहता है जिनका वास्तविक असर बच्चे के शिक्षा पर पड़ता है और अंशतः और पूर्णतः यह एक रुकावट भी है जिनका दूरगामी परिणाम हमें अन्य रूपों में देखना पड़ता है।
कक्षा में पीछे बैठने वाले बच्चे
कक्षा में पीछे बैठे बच्चे को हो रही समस्या में भी श्यामपट पर धुँधला दिखना,सही से सुनाई न पड़ना, शिक्षक का ध्यान आकर्षित न होना आदि है, मसलन कक्षा में यदि चालीस बच्चे है तो आपको अधिक से अधिक एक या दो ऐसे बच्चे दिखने को मिलेंगे जो अव्वल रहा बाद बाकी आखिर क्यों नहीं,क्या शिक्षक में कमी थी या शिक्षा पैटर्न में,या अन्य में क्या? क्या आज शिक्षा के पैमाने बदल गये, तो इनमे कोई दोराय नहीं कि हमारे शिक्षा में बहुत सुधार की जरूरत है! मूल बात यहां दो तरह की है पहला- मानव जीवन और उनका समाज दोनो के बीच अन्योन्याश्रय संबन्ध एंव इनके बदलते आयाम में व्यक्ति का दृष्टिकोण। दूसरा- परिवेश,वातावरण और दवाब। इन सबके अलावा जो शेष बचा है वो सिर्फ एक भीड़ है जो उत्साही और अनुत्साहि है,जो पूर्णतः समूहवाद का शिकार है। निष्कर्ष बदलने चाहिए!
निष्कर्ष बदलने के लिए हमें आख़िर करना क्या होगा तो इस पर भी एक नजर अवश्य ही डाल देना चाहिए। जो आधार है आपके विचार का उनमें परिवर्तन अपडेटिंग की विशेष जरूरत है। जो एक दर्शन है भविष्य के समाज का जिनको मूलतत्वों को अवश्य ही स्वीकार करना चाहिए। दूरदृष्टि लक्षित है आपके तार्किक विश्लेषण व बुद्धिमत्ता पर की बदलते परिवेश को आप कैसे देख रहे,दिशा व दशा व बदलते परिमाण पर आपकी पैनी दृष्टि है या नहीं आदि। यदि है तो आप किस पाठ्यक्रम को सही मान रहें, क्या यह आपके सामाजिक व आर्थिक आधार पर अनुकूलित है,यह प्रश्न आज प्रत्येक को खुद से अवश्य ही पूछना चाहिये और जागरूक नागरिक की भूमिका अदा करनी चाहिए।