Site icon एजुकेशन मिरर

एक प्रभावशाली शिक्षक के तीन गुण क्या हैं? पढ़िए इस पोस्ट में।


एक शिक्षक चाहें कितना ही ज्ञानी क्यों न हों, अगर वह सहज, सरल और सौम्य नहीं है तो उसका ज्ञान स्वयं उसके लिए लाभकारी हो सकता है, लेकिन छात्रों के लिए वह निरर्थक होगा। बच्चे आपके पात्र हैं और पात्र में कुछ भी डालने या उसे भरने के लिए झुकना पड़ता है।

क्या कहती हैं महादेवी वर्मा?

महादेवी वर्मा अपनी पुस्तक ‘संस्कृति’ में शिक्षक के लिए कहती हैं, “आप अपने बच्चों को कोई ज्ञान देने से पूर्व अपने वात्सल्य से बच्चे का पात्र इतना भर दें कि उसमें राई भर स्थान भी रिक्त न रह जाये। फिर आपके ज्ञान की एक-एक बूँद बच्चे के पात्र में ही जायेगी।”

‘एक शिक्षक को बच्चों जैसा बनना होगा’

बच्चे स्वयं बहुत सहज, सरल और सौम्य होते हैं, इसलिये शिक्षक को पहले बच्चों जैसा बनना होगा। बच्चों के उठने-बैठने पर अधिक ध्यान नहीं देकर उसकी सुविधा पर अधिक ध्यान देते हुए उनके साथ समय व्यतीत करें। क्योंकि छोटे बच्चों को स्वयं करके ही सिखाना सही होगा। वे हमारा अवलोकन करके खुद ही बहुत सी बातें सीख लेंगे। पर यह काम इतना आसान नहीं है क्योंकि यह काम है ही नहीं। यह तो स्वभाव है, अभ्यास है, व्यक्तित्व है। इसे एक दिन में नहीं गढ़ा जा सकता है, परंतु इच्छाशक्ति हो तो निरंतर सजग प्रयास से ऐसा करना संभव है।

‘शिक्षक का व्यवहार ही बच्चे का ज्ञानमार्ग है’

शिक्षक की महानता और पुस्तकीय ज्ञान से बच्चों को को कोई लेना-देना नहीं है। शिक्षक का व्यवहार ही बच्चे का ज्ञानमार्ग है। मैं अपने अनुभव से कहती हूँ कि बच्चा अपने शिक्षक से इतना प्रभावित होता है कि वह अपने शिक्षक के कपड़ों, उसके रंग, उसकी सिलाई, बालों की स्टाइल, नाखून, नेलपॉलिश, बिंदी, चप्पल, जूते, जेवर, तीज, त्योहार, लंच, आपकी पसंद और नापसंद सभी कुछ अपना लेता है और शिक्षक को इसकी खबर तक नहीं होती। इस विस्तृत लेख का अगला हिस्सा अगली पोस्ट में पढ़िए।

(एजुकेशन मिरर के लिए यह पोस्ट लिखी है रीता कुमारी धर्मरित ने। एजुकेशन मिरर के लिए यह आपकी पहली पोस्ट है। पोस्ट पढ़ने के बाद अपनी टिप्पणी जरूर लिखें ताकि लेखक को पहले प्रयास के लिए प्रोत्साहन मिले।)

Exit mobile version